मिट्टी न मिलने से कम बन पा रहे हैं मटके-सुराही
चिलचिलाती धूप में प्यास बुझाने के लिए गरीबों का मटका ही फ्रिज है लेकिन क्षेत्र में उन्हें बनाने के काम को गति नहीं मिल पा रही है।

जागरण संवाददाता, हसनपुर: चिलचिलाती धूप में प्यास बुझाने के लिए गरीबों का फ्रिज मटका ही है, लेकिन क्षेत्र में उन्हें बनाने के काम को गति नहीं मिल पा रही है। कारण कि मटके-सुराही व मिट्टी के बर्तन बनाने वाले प्रजापत समाज के लोगों को मिट्टी की उपलब्धता नहीं है। मिट्टी न मिलने से मटका व सुराही कारीगरों (कुम्हार) को आर्थिक तंगी से जूझना पड़ रहा है।
मिट्टी के बर्तन बनाना प्रजापत (कुम्हार) समाज का पुश्तैनी कारोबार है। प्रदेश सरकार ने एक वर्ष पूर्व हर गांव में प्रजापत समाज के लोगों के लिए मिट्टी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए जमीन आरक्षित करने संबंधी निर्देश जारी किए थे, लेकिन वे अभी तक भी अमल में नहीं आ पाए हैं। प्रजापत समाज के राजेंद्र, वीरभान, सुरेश, गोला देवी आदि लोगों का कहना है कि एक मटका तैयार करने में लगभग 40 से 45 रुपए का खर्चा आता है जो कि 70 से 80 रुपये तक बिकता है। पहले गांव की जोहड़ में मिट्टी मिल जाती थी परंतु अब जोहड़ों का अस्तित्व खत्म होने के कारण दूरदराज से मिट्टी भाड़े से मंगानी पड़ती है जो कि काफी महंगी पड़ती है। मिट्टी नहीं मिलने के कारण प्रजापत समाज के ज्यादातर लोग अपना पुश्तैनी धंधा छोड़ चुके हैं। साल भर पूर्व प्रदेश सरकार ने कुम्हारों के लिए पांच एकड़ जमीन उपलब्ध कराने की घोषणा की थी, परंतु वह कागजी घोषणा बन कर रह गई। मिट्टी नही मिलने के कारण हमारे समाज के लोगों को यह काम छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। सरकार को मजदूरों को बचाने के लिए कोई ठोस कदम उठाना चाहिए ताकि वे अपने परिवार का गुजारा कर सकें।
सुरेश गोला, मटका कारीगर सरकार की अनदेखी के कारण हमारा समाज आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। सरकार द्वारा की गई पांच एकड़ जमीन की घोषणा पर अमल करना चाहिए, ताकि गरीब परिवारों का गुजारा चल सके।
गंगा लाल प्रजापत, प्रधान प्रजापत समाज हसनपुर

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