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    कृषि सलाह: कांग्रेस घास की नियंत्रण के मिलकर उपाय करें: डॉ.मलिक

    By Edited By:
    Updated: Thu, 11 Aug 2016 05:04 PM (IST)

    फोटो 1 संवाद सहयोगी, पलवल: कांग्रेस घास देश के अन्य हिस्सों की तरह जिले के किसानों के लिए भी

    फोटो 1

    संवाद सहयोगी, पलवल:

    कांग्रेस घास देश के अन्य हिस्सों की तरह जिले के किसानों के लिए भी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। पारथेनियम प्रजाति का यह विदेशी खरपतवार खेतों के अलावा रेलवे लाइन, सड़कों, नहरों, नालियों, चारागाह और खाली पड़ी भूमियों पर उगकर परेशानियां खड़ी कर रहा है। कांग्रेस घास से किसानों को त्वचा एलर्जी व सांस संबंधित तकलीफ होती है। इसलिए इसकी रोकथाम के लिए सामूहिक प्रयास बेहद जरूरी हो गए हैं।

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    कांग्रेस घास का जीवन चक्कर

    यह खरपतवार मुख्य रूप से फरवरी-मार्च माह में उगता है, जून-जुलाई में अधिकतम बढ़वार होती है तथा सितंबर-अक्टूबर में इसके बीज बनकर पक जाते हैं और बीज भूमि में गिरकर उचित नमी मिलने पर एक सप्ताह में ही उग आते हैं। उगने के एक माह बाद फूल बनने शुरू हो जाते हैं, जो पांच-छह माह तक बनते रहते हैं। एक पौधे पर करीब सात हजार फल बनते हैं, जिससे लाखों बीज तैयार हो जाते हैं और यही बीज पानी, हवा तथा पशुओं से लिपटकर दूसरे स्थानों पर पहुंच जाते हैं।

    कांग्रेस घास से हानि

    इससे मनुष्यों में एग्जीमा, खुजली, एलर्जी, दमा, बुखर तथा त्वचा का कैंसर हो सकता है। पशुओं में सांस रोग व एलर्जी के अलावा दूध भी प्रदूषित हो सकता है। सब्जियों तथा फसलों में उगाकर यह उनका खाद, पानी व स्थान घेरकर तथा गुणवत्ता को कम कर देता है। कपास का मिली बग तथा कई कीड़ों व रोगों की शरणगाह बनकर फसलों के उत्पादन को प्रभावित करता है।

    रोकथाम के उपाय

    मानसून की वर्षा के तुरंत बाद अभियान चलाकर इसमें बीज व फूल बनने से पहले फावड़े या कस्सी से उखाड़कर गड्ढे में डालकर कंपोस्ट खाद बनाई जा सकती है। फसलों और मेढ़ों पर से समय-समय पर उखाड़ते रहना चाहिए। चारे में इसे न मिलन दें। खाली पड़ी जगह पर पनवाड़, जंगली बथुआ, जांडी, कसौंदी आदि के बीज डाल दें, जिससे ये कांग्रेस घास को उभरने ना दें। जाइकोग्रामा ब्राइकोलाइटा नामक पैरासाइट कीट इसे खाकर नष्ट कर देते है। उसकी पहचान कर बढ़ावा दें।

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    खाली प्लाटों, अन्य खाली पड़ी सार्वजनिक स्थानों पर शाकनाशी रसायन ग्लाइफोसेट राउंड अप 41 प्रतिशत की 150 से 200 मि.ली. मात्रा या मैट्रीबुंजीन 0.3 प्रतिशत की 45 ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी से बने घोल का छिड़कर करना चाहिए। 15 प्रतिशत नमक के घोल का स्प्रे करने से भी अच्छा नियंत्रण होता है। फसलों के बीच उगे इस खरपतवार पर रसायनिक दवा का इस्तेमाल न करें। हो सके तो मिलकर अभियान के रूप में प्रयास करें।

    - डॉ.महावीर ¨सह मलिक, कृषि विशेषज्ञ।