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    चूल्हा वो माटी गार का,सारे कुनबे के प्यार का..

    By Edited By:
    Updated: Mon, 08 Aug 2016 08:01 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, पलवल : न्यू सोहना रोड पर स्थित शहर के महाराणा प्रताप भवन में रविवार की शाम का ...और पढ़ें

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    जागरण संवाददाता, पलवल :

    न्यू सोहना रोड पर स्थित शहर के महाराणा प्रताप भवन में रविवार की शाम काव्य रस की ऐसी गंगा बही कि बृज क्षेत्र के वासी उसमें गोते लगाते रहे, आधी रात होते-होते काव्य गंगा कब सागर की लहरों में परिवर्तित हो गई और श्रोता उसमें डूबते नजर आए, इसका उन्हें पता ही नहीं चला।

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    मौका था दैनिक जागरण की ओर से दिल्ली एनसीआर व हरियाणा में 26वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित विराट कवि सम्मेलन का। कवि सम्मेलन आठ बजे शुरू हुआ और रात्रि दो बजे खत्म हुआ। इस तरह साढ़े पांच घंटे से भी अधिक समय तक श्रोता हास्य, श्रृंगार, वीर, ओज रसों की कविताओं सुनते हुए सुध-बुध खोए रहे। कवि सम्मेलन में लाफ्टर चैलेंज चैंपियन प्रताप फौजदार, डा.सुरेश अवस्थी, गजलकारा अना देहलवी, गजेंद्र सोलंकी, महेंद्र अजनबी, जगबीर राठी व गीतकार दिनेश रघुवंशी ने हास्य के साथ-साथ देशभक्ति, धर्म, राजनीति, ¨जदगी, मां का महत्व जैसे पक्षों पर मर्मस्पर्शी रचनाओं से भाव विभोर किया। पेश है उनकी रचनाओं के कुछ अंश।

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    हरियाणवी कवि व महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से आए हास्य कवि जगबीर राठी ने अपनी प्रसिद्ध रचना माटी का चूल्हा सुनाई, जिसकी बानगी कुछ यूं थी :-

    चूल्हा वो माटी-गार का

    सारे कुनबे के प्यार का,

    सीली बॉल छणया करती

    सारयाँ की रोटी बणया करती,

    धोरै धरया रहता एक पलॅवा

    कदे पूरी अर कदे हलवा,

    गुलगुले, पूड़े, कदे राबड़ी

    आग तै पकी मॉटी की पापड़ी,

    राम की थाली, लछमण का टूक

    पेट सबके न्यारे, साझली सबकी भू़ख,

    मां जब लाकड़ी सहलाया करती

    चूल्हे की आग भी बतलावा करती,

    बाबू भी तो उड़ै खाया करता

    दु:ख-सुख की बतलाया करता,

    चाहे घर हो, चाहे हो गमीणे की तैयारी उस चूल्हे की थी हर जगहां भागीदारी,चूल्हे की आग जब फड़फड़ाया करती कोय करै सै चुगली थारी उननैं बताया करती, पर उसनै कदे कराई जग-हंसाई ना

    घर का हो या बाहर का, काची रोटी खुवाई ना

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    हास्य कवि प्रताप फौजदार ने शुरूआत हंसोड़ अंदाज के साथ की और सभी को खूब हंसाया। जेएनयू कांड से लेकर कश्मीर के मुद्दे पर उन्होंने बहुत ही गंभीर परंतु सरल शब्दों में चोट की, साथ ही कहा कि किस तरह से कश्मीर में अमन की हत्या हो रही है। उन्होंने अफजल की बात कहने वालों को ललकारा और सख्त कार्रवाई की बात की।

    उनकी एक रचना की बानगी कुछ यूं थी कि-

    आगे आगे एक नंगा आदमी भाग चला जा रहा था

    उसके पीछे एक कच्छा पहन कर चला आ रहा था

    मेरे मित्र ने कहा प्रताप ¨सह ये क्या क्लेश है

    यह कैसा भेष है। मैंने कहा मित्र आगे वाला विकसित

    और पीछे वाला विकासशील देश है।

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    गीतकार व गजलकारा अना देहलवी की रचना की बानगी कुछ यूं थी कि

    मासूम मोहब्बत का बस इतना फ़साना है,

    काग•ा की हवेली है, बारिश का •ामाना है।

    क्या शर्ते-मुहब्बत है, क्या शर्ते-•ामाना है,

    आवा•ा भी •ाख्मी है और गीत भी गाना है।

    उस पार उतरने की, उम्मीद बहुत कम है,

    कश्ती भी पुरानी है, तूफ़ां को भी आना है।

    समझे या न समझे, वो अंदा•ा मुहब्बत के,

    इक शख्स को आंखों से एक शेर सुनाना है।

    भोली सी 'अना' कोई फिर इश्क की •ादि पर है

    फिर आग का दरिया है, फिर डूब के जाना है।

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    हास्य कवि महेंद्र अजनबी ने अपनी कविताओं से लोटपोट किया, उनकी एक कविता की बानगी कुछ यूं थी कि

    एक दिन हम भारी भीड़-भरी

    भारतीय रेल में चढ़े

    चढ़े क्या, चढ़ाए गए

    कई कंधों पर धरकर

    भीतर सरकाए गए।

    भीड़ का ये हाल था

    मत पूछिए, कमाल था

    सीट पर भी आदमी थे

    बर्थ पर भी आदमी थे

    और तो और

    छत पर भी आदमी थे

    वो तो रेल वालों ने

    उससे ऊपर कोई जगह ही नहीं बनाई

    वरना आदमी वहां भी होते भाई।

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    ओज कवि गजेंद्र सोलंकी ने जहां देशप्रेम को समर्पित अपनी रचनाएं सुनाई, वहीं भावनात्मक कविता सुना कर भी मन मोहा। जिसकी बानगी कुछ यूं थी कि

    'बंधन है अदृश्य, ऐ बंधे हैं जिसमे चांद सितारे

    नाम दिया है प्रेम का जिसमे बंधते हृदय हमारे।

    सृष्टि का कण-कण है संजोये जिस का सुख है स्पंदन

    हो प्रेरित जिससे करती है लता वृक्ष आ¨लगन।

    जिससे प्रेरित रवि वसुधा का आकार देह हटता

    सतरंगी झिलमिल किरणों से प्रकृति को है जगाता।

    जिससे पा कर शक्ति मिलती है नदिया जा सागर से

    आओ मिलकर सब प्याला भरलें उसी प्रेम गागर से।

    सोलंकी ने देशप्रेम की इन पंक्तियों को सुना कर वाहवाही लूटी कि

    हर एक प्रवासी के अंतर में धड़के ¨हदुस्तान,

    भले बसे हो जा कर अमेरिका, रशिया, जापान, यूके या ओमान

    धड़कता प्यारा ¨हदुस्तान नयन का तारा ¨हदुस्तान जहां से न्यारा हिन्दोस्तान।

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    डा.सुरेश अवस्थी की रचनाओं में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने की तस्वीर प्रस्तुत हुई, जिसकी बानगी कुछ यूं थी

    मस्जिद में गीता मिले, मंदिर मिले कुरान

    विश्व गुरू हो जाएगा फिर से ¨हदुस्तान।

    पहनो नहीं नकाब, कांटों का भी घर मिले

    बन कर रहो गुलाब।

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    बखूबी मंच संचालन के साथ-साथ कवि दिनेश रघुवंशी ने किसानों व जवानों को समर्पित अपनी रचनाएं सुना कर पलवल जैसे ग्रामीण बाहुल्य जिले के लोगों की खूब वाहवाही लूटी। जिनकी बानगी कुछ यूं थी।

    किसानों की तबाही पर मुनाफाखोर पनपे हैं

    मुनाफाखोरी जो करते हैं वो चारों ओर पनपे हैं,

    हुए आजाद हम जबसे, हमारे देश में तबसे

    सियासी लोग पनपे हैं या केवल चोर पनपे हैं।

    हमेशा तन गए आगे जो तोपों के दहानों के

    कोई कीमत नहीं होती है, प्राणों की जवानों के

    बड़े लोगों की औलादें तो केवल कैंडल मार्च करती हैं

    जो अपने प्राण देते हैं वो बेटे हैं किसानों के