पलवल में लुप्त होने के कगार पर खिरनी के पेड़
संजीव मंगला, पलवल एक समय था, जब क्षेत्र में खिरनी फल के पेड़ काफी बड़ी संख्या में थे। बाजार में भी
संजीव मंगला, पलवल
एक समय था, जब क्षेत्र में खिरनी फल के पेड़ काफी बड़ी संख्या में थे। बाजार में भी यह फल काफी बिकता था। अब हालात यह है कि किसी किसी गांव में ही खिरनी का पेड़ देखने को मिलता है। नई पीढ़ी को तो शायद ही यह मालूम हो कि खिरनी नाम का भी कोई फल होता है। खिरनी का फल आयुर्वेद में काफी स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। इसे राजदान, क्षिरिणी व राजफल भी कहा जाता है। इसका फल नीम की निवोली के आकार का होता है। खिरनी के पेड़ जिले में अब लुप्त होने के कगार पर हैं। घोड़ी, दूधौला जैसे गांवों में दो-चार खिरनी के वृक्ष देखने को मिल जाएंगे।
विशालकाय आकार वाला खिरनी फल की खासियत यह है कि इसका रंग पीला होता है और फल व पत्तों से दूध निकलता है, जिसका स्वाद मीठा होता है। इसमें अप्रैल से जून माह के बीच फल लगते हैं। बरसात के मौसम में इसके फल में कीड़े पड़ने लगते हैं। इसकी लकड़ी चिकनी व मजबूत मानी जाती है। इस वृक्ष की आयु भी लंबी होती है।
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पहले हमारे इलाके में खिरनी के काफी पेड़ होते थे। वे या ता नष्ट हो गए या काट दिए गए। वन विभाग ने नए पौधे कभी रोपने का प्रयास नहीं किया।
-देव रतन बैसला, गांव भवाना।
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खिरनी का फल शरीर के लिए बलवर्धक होता है। इससे दातों में लगे कीड़े मर जाते हैं। इसके बीज पीसकर लगाने से बिच्छ़ू काटे का दर्द ठीक होता है व नेत्र के जाले दूर होते हैं। इसके बीज का चूर्ण फोड़ों व तपेदिक रोग में लाभ पहुंचाता है। खिरनी के वृक्ष के नीचे बैठने से मानसिक व तनाव रोग के पीड़ितों को लाभ होता है। वन विभाग को खिरनी के पेड़ ज्यादा से ज्यादा लगवाने चाहिए।
-डॉ.धर्म प्रकाश आर्य, आयुर्वेदाचार्य, पलवल।
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हां यह बात सही है पहले पलवल क्षेत्र में खिरनी के पेड़ काफी संख्या में थे। सिहौल व पेलक के बीच एक विशेष क्षेत्र, जिसे रख्या कहा जाता है में अभी कुछ पेड़ इसके नजर आ जाते हैं। इसका पौधा अपने आप भी उग जाता है। इसकी पौध मध्य प्रदेश में मिलती है। इन पेड़ों की संख्या बढ़ाने कोशिश की जाएगी।
-किरण ¨सह रावत, खंड वन अधिकारी, पलवल।
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