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    लुप्त हो रहा आध्यात्मिक व औषधीय डूंगर का पेड़

    By Edited By:
    Updated: Sat, 20 Feb 2016 05:36 PM (IST)

    संजीव मंगला, पलवल ब्रज क्षेत्र माने जाने वाले पलवल जिले में आध्यात्मिक व औषधीय पौधा डूंगर अब लुप्त

    संजीव मंगला, पलवल

    ब्रज क्षेत्र माने जाने वाले पलवल जिले में आध्यात्मिक व औषधीय पौधा डूंगर अब लुप्त होने के कगार पर है। डूंगर के पेड़ पर जो फल लगता था, उसे पीलू भी कहा जाता है, इसलिए इसे पीलू का पेड़ भी कहा जाता है। एक समय पलवल में पीलू के काफी पेड़ थे, जो समय के साथ साथ नष्ट होते चले गए। पीलू की संख्या यानी वन क्षेत्र भी थे, जो आज देखने को भी नहीं मिलते। पीलू को लेकर इलाके में कई कहावत भी मशहूर हैं।

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    औषधीय है यह पौधा

    डूंगर यानी पीलू को औषधीय पौधा भी माना जाता है। इसकी दातुन करने से दांत के रोग नहीं लगते। यह पीलिया जैसे रोगों में रामबाण का काम करता है। इसका फल शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है। यह लू से भी बचाता है। इसके पत्ते भी खटटे- मीठे होते हैं तथा इसे कुदरती पौधा माना जाता है। इसकी छाल का काढ़ा लीवर रोगों में भी फायदेमंद होती है। इसका वनस्पतिक नाम डाइओरपाइरोस कांडीफोलिया है। इसे पटवन भी कहते हैं तथा इसके फल को पक्षी भी बड़े चाव से खाते हैं।

    आध्यात्मिक महत्व है पीलू का

    पीलू को आध्यात्मिक यानी धार्मिक पौधा भी माना जाता है। कुछ लोग इसे योगीराज श्रीकृष्ण से जोड़ते हैं तो कुछ राधारानी से। इसे पांडवों की पसंद का पौधा भी बताते हैं। इसकी टहनियां हवन में भी काम में लाई जाती हैं। संतों के कमंडल के निर्माण में भी इसकी लकडी का प्रयोग होता है। गुरू गो¨बद ¨सह से भी इस पेड़ को जोड़ा जाता है।

    हुई है अंधाधुंध कटाई

    डूंगर के पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के कारण ये नष्ट होते चले गए। चकबंदी के समय ये वृक्ष काफी काटे गए। बाद में भी ये धीरे धीरे नष्ट होते गए। वन विभाग द्वारा नए पेड़ न लगाए जाने के कारण इनका अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है।

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    पीलू के पेड़ों का समाप्त होना ¨चता का विषय है। हमारा संगठन शीघ्र ही वन विभाग के आला अफसरों से मिलकर मांग करेगा कि इनकी पौध मंगवा कर लगवाई जाए। आने वाले दिनों में इनका रोपण किया जाए। वैसे भी सरकार औषधीय व धार्मिक पौधों पर काफी ध्यान दे रही है।

    - बिजेंद्र दलाल, प्रधान प्रगतिशील किसान क्लब जिला पलवल

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    पीलू का फल बहुत ही स्वादिष्ट होता है। अब तो इसके फल खाना तो दूर इसके वृक्ष भी देखने को नहीं मिलते। कहीं यदि एक-दो पेड़ भी हैं तो उनपर फल नहीं लगते। वन विभाग को इन पेड़ों को ज्यादा से ज्यादा लगाना चाहिए।

    - किरण ¨सह चौधरी, पलवल।

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    पहले इलाके में पीलू या डूंगर के काफी पेड़ थे। रजौलका व दुर्गापुर आदि गांवों सहित अनेक गांवों में ये काफी संख्या में थे। अब ये पेड़ ना के बराबर हैं। राजस्थान में इसकी पौध उपलब्ध है। हल्द्वानी के वन अनुसंधान केंद्र में भी इसकी पौध मिल जाती है। जैव विविधता की ²ष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण पेड़ है। मैं अपने आला अधिकारियों तक लोगों की इस मांग को पहुंचाऊंगा।

    - किरण ¨सह रावत, खंड वन अधिकारी पलवल।