दुर्गुण और दुर्व्यसन हैं कष्टों के कारण: सविता
संवाद सहयोगी, पलवल : वैदिक विदूषी कुमारी सविता शास्त्री ने कहा है कि मनुष्य दुगुर्ण व दुर्व्यसन का ...और पढ़ें

संवाद सहयोगी, पलवल : वैदिक विदूषी कुमारी सविता शास्त्री ने कहा है कि मनुष्य दुगुर्ण व दुर्व्यसन का शिकार होने के कारण जीवन में कई कष्ट उठाता है। दुर्गुण जिनमें काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि आते हैं, व्यक्ति के अंत:करण में उत्पन्न होते हैं जबकि दुर्व्यसन जिनमें धूमपान, मद्यपान, नशीले पदार्थों का सेवन दुष्चरित्र आदि शामिल हैं, जो दूसरों के द्वारा आते हैं। अत: मनुष्य को चाहिए कि वे इन्हें दूर करने के प्रयास करें।
सविता शास्त्री कृष्णा कॉलोनी में मंगलवार को सत्य नारायण वैदिक कथा में प्रवचन कर रही थी। उन्होंने कहा कि बाहरी व्यसनों से ज्यादा अंत:करण के दुर्गुणों के कारण मनुष्य की बड़ी हानि होती है। दुर्व्यसन तो दूर कर लेते हैं लेकिन दुर्व्यसन तो विरले लोग ही दूर कर पाते हैं।
उन्होंने कहा कि मनुष्य अपनी अविद्या के कारण दुख उठाता है, जिस प्रकार शहद और घी अछ्वुत पदार्थ हैं, परंतु यदि किसी को इनके अनुपात का ध्यान नहीं होता तो वह इन्हें विष के रूप में पान कर जाता है। परंतु ज्ञानी लोग, इन दोनों का अमृत रूप में पान करते हैं। उन्होंने कहा कि ईश्वर हमारा मित्र के समान भी है। मित्र बनाते समय यह अवश्य देख लें कि मित्र में गुण क्या है, मित्र पाप से बचाने वाला, अच्छे कामों से जोड़ने वाला, कमी को कान में कहने वाला, गुणों को समाज में प्रकट करने वाला, आपसी साथ न छोड़ने वाला होता है। जैसे राजा द्रुपद व सुदामा कृष्ण के मित्र थे। परमात्मा में ये सभी गुण है, इसीलिए परमात्मा हमारा मित्र है। पाप करने से पहले घृणा, लज्जा व शंका हमारे अंदर आ जाती है और अच्छे काम करते समय उमंग व उल्लास अंत:करण में पैदा होता है।
इस अवसर पर जिला वेद प्रचार मंडल के अध्यक्ष राधेलाल आर्य, संयोजक समरपाल आर्य, तुलाराम, राजवीर आर्य, करतार डागर, जयप्रकाश, शेर ¨सह, हरि ¨सह, मंजीत आर्य, रामबीर आर्य, बीर ¨सह आर्य, नारायण ¨सह, जगदीश, सुमेर ¨सह, ऋषिपाल फौजी, शन्नो कालड़ा, पूनम, हरेंद्री देवी, मधुबाला, सुनीता, राजबाला, नेहा, तन्नू डागर, सोनू, मोनू आर्य, मीनू जाखड़, योगेंद्र जाखड़ मौजूद थे।

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