उड़द उगाकर कम समय में लें अच्छी पैदावार
संवाद सहयोगी, पलवल : उड़द देश की प्रमुख प्राचीनतम दलहनी फसल है। अपने विशिष्ट स्वाद एवं उच्च पौष्टिकता
संवाद सहयोगी, पलवल : उड़द देश की प्रमुख प्राचीनतम दलहनी फसल है। अपने विशिष्ट स्वाद एवं उच्च पौष्टिकता के कारण प्रदेश में उड़द की दाल सबसे ज्यादा पसंद की जाती है। उड़द की दाल को पीसकर पापड़, बड़ी, इमरती लड्डू आदि विभिन्न प्रकार के भारतीय व्यंजन बनाए जाते हैं। उड़द की फसल भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के साथ-साथ पशुओं के लिए स्वादिष्ट चारा भी है। उड़द की कम समय में पकने वाली किस्मों का चयन करके किसान अच्छी उपज ले सकते हैं।
भूमि, तैयारी व उन्नत किस्में
अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी उड़द के लिए उपयुक्त है। खेत की जुताई करके सुहागा लगातर तैयार कर लेना चाहिए। बिजाई अच्छे पानी से पलेवा करके ही करनी चाहिए। टाइप-9 तथा पंत उड़द-35 शीघ्र पकने वाली किस्मों का चुनाव बसंतकालीन बिजाई के लिए करें। इनका दाना मोटा, फलियां एक साल में पकती हैं तथा पीला मोजेक रोग कम लगता है।
बिजाई समय, बीज मात्रा व बीजोपचार
बसंत ऋतु में उड़द की बिजाई का उपयुक्त समय 15 मार्च तक है। वर्षा ऋतु में इसकी बिजाई जून-जुलाई में की जाती है। उड़द का 10-12 किलो बीज प्रति एकड़ डालें। बिजाई 20-25 सेमी. दूर बनी पंक्तियों में करें। जड़ गलन से बचाव के लिए 4 ग्राम थाइराम प्रति किलो बीज की दूर से सूखा उपचार करें। बोने से थोड़ा पहले राइजोबियम के टीके से उपचारित कर लें।
खाद, गुड़ाई व ¨सचाई
बिजाई के समय उड़द में 18 किलो यूरिया, 100 किलो ¨सगिल सुपर फास्फेट प्रति एकड़ की दर से खेत में पोर दें। खरपतवारों की रोकथाम के लिए 20 से 25 दिन के बाद तथा 30-35 दिन के बाद दो बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। पहली ¨सचाई बिजाई के 20-25 दिन बाद करें। उसके बाद 10-15 दिन के बाद ¨सचाई करें।
जब 50 प्रतिशत फलियां पक जाएं तो फलियों की तुड़ाई कर लें। इसके बाद दूसरी बार फलियां पकने पर कटाई कर लें। फलियों की गहाई करके दाना अलग कर लें। फसल चक्र में उड़द का समावेश करके कम खर्च में दाल उत्पादन के साथ भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ाकर आगे बोई जाने वाली खाद्यान्न फसलों की पैदावार भी आसानी से बढ़ाई जा सकती है। फरवरी-मार्च में बोए गए गन्ने के साथ भी उड़द की फसल ली जा सकती है।
-डा.महावीर मलिक, कृषि विशेषज्ञ।
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