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    क्यों मनाई जाती है बकरीद? मौलानाओं ने मुस्लिम समुदाय से की ये खास अपील

    Updated: Fri, 06 Jun 2025 03:18 PM (IST)

    नूंह में बकरीद का त्योहार त्याग और बलिदान की भावना के साथ मनाया जा रहा है। ईदगाहों और मस्जिदों में नमाज की तैयारियां चल रही हैं। मौलानाओं ने प्रतिबंधित पशुओं की कुर्बानी से बचने और आपसी भाईचारे को बनाए रखने की अपील की है। यह त्योहार हजरत इब्राहिम के खुदा के प्रति समर्पण की याद दिलाता है जिसमें उन्होंने अपने बेटे को कुर्बान करने की तैयारी दिखाई थी।

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    जिले के झिमरावट का मकतब जहां पर पढ़ी जाएगी बकरीद की नमाज। जागरण

    मोहम्मद हारून, नूंह। बकरीद (ईदुल जुआ या ईदुल अजहा) का त्योहार का मुसलमानों में विशेष महत्व हैं। अल्लाह के हुक्म के आदेशों पर अमल करना , उसकी राह में सब कुछ कुर्बान कर देना ही बकरीद के त्योहार का मुख्य मकसद है। आज बकरीद के त्योहार को लेकर लोगों ने विशेष रूप से तैयारी शुरू कर दी है। बकरीद की तैयारी को लेकर ईदगाह, मस्जिद व मकतबों की सफाई शुरू कर दी है। ताकि विशेष नमाज अदा की जा सके। बकरीद के मौके पर होने वाली कुर्बानी को लेकर मौलानाओं ने कुर्बानी में प्रतिबंधित पशुओं की कुर्बानी न करने को कहा है।

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    इस त्योहार पर होने वाली कुर्बानी वर्षों पहले खुदा के प्यारे हजरत इब्राहीम अस्सलाम के बेटे हजरत इस्माइल की अल्लाह के रास्ते में कुर्बान किए जाने के उपलक्ष्य में होती है। हर उस अजीज चीज इंसान खुदा के रास्ते में कुर्बान कर दे, जो उसे सबसे ज्यादा प्यारी हो तो अल्लाह ताला बहुत खुश होते है।

    मुसलमानों में ईद के बाद बकरीद के त्योहार खास महत्व रखता है। वर्षों पहले ख्वाब में अल्लाह के अजीज हजरत इब्राहीम अस्सलाम को खुदा की तरफ से हुक्म आया कि वे अपनी सबसे प्यारी चीज को अल्लाह के रास्ते में कुर्बान करें। बताते हैं कि हजरत साहब ने अपने पशुओं की बली अल्लाह के नाम पर दे दी।

    लेकिन अल्लाह राजी नहीं हुए। अल्लाह हजरत इब्राहीम अस्सलाम का इम्तिहान लेना चाहते थे। एक दिन फिर उसे ख्वाब में खुदा की तरफ से आदेश मिला की तुम अपने एकलौते बेटे हजरत इस्माइल को उनके (खुदा) के रास्ते में कुर्बान करें। चूंकि मामला इकलौते बेटे को कुर्बान करने का था।

    घर आने पर हजरत की बीवी हाजरा ने पूछा। तो इब्राहीम अस्स्लाम ने अल्लाह के आदेशों की बात बताई। इस्लाम के जानकार कहतें कि हजरत हाजरा ने तुरंत हजरत इब्राहीम से कहा कि खुदा के हुक्म को नहीं टाला जाएगा। उन्होंने खुदा के हुक्म को पूरा करने के लिए अपने इकलौते बेटे का नहलाकर साफ कपड़े पहनाकर अपने शौहर (हजरत इब्राहीम अस्स्लाम) के हवाले कर दिया।

    बेटे इस्माइल ने भी खुदा के हुक्म को पूरा करने के लिए बाप से इंकार नहीं किया। बल्कि बाप की हाैंसला अफजाई की। चूंकि अल्लाह इम्तिहान ले रहे थे। जैसे ही इब्राहीम अस्सलाम ने जंगल में ले जाकर अपने बेटे इसमाइल को खुदा के रास्ते में जिभे (कुर्बान) करने के लिए उनकी गर्दन पर तेजधार छुरी चलाई तो खुदा की तरफ से छुरी को हुक्म आया कि अगर छुरी तूने इस्माइल का एक बाल भी काटा तो ठीक नहीं होगा।

    दरअसल, अल्लाह ताला ने हजरत इब्राहीम अस्सलाम का जो इम्तिहान लिया था वह उसमें पास हो गए । उसी वक्त अल्लाह ने फरिश्ते जिब्राइल को हुक्म दिया कि वह जन्नत से दुम्मा (अरब क्षेत्र में एक विशेष पशु) लेकर इब्राहीम अस्स्लाम को दें।

    अल्लाह के हुक्म के मुताबिक ऐसा ही हुआ। हजरत इब्राहीम अस्सलाम ने दुम्मा की कुर्बानी की। अल्लाह के रास्ते में, उसके हुक्म पर अपनी प्यारी चीज को कुर्बान करने की एवज में बकरीद का त्योहार मनाया जाता है।

    गाय की कुर्बानी कतई जायज नहीं हैं। हमारी सभी क्षेत्र के लोगों से कहना है कि वे गलती से भी ऐसा कोई काम न करे जिससे आपसी भाईचारे में खलल पहुंचे। इस बात पर सभी लोग अमल करें।

    मौलाना कारी मोहम्मद हाशिम , इमाम जामा मस्जिद

    गाय पर सरकार ने सख्त कानून बनाया हुआ है। हमारे पड़ोसी भाईयों को गाय की हत्या से ठेस पहुंचती है। इसलिए यह कतई जायज नहीं। गाय की कुर्बानी कतई नहीं की जाए।

    मौलाना नजीर अहमद

    जिस चीज से आपस में बेवजह तनाव हो ऐसा कार्य हमें हरगिज नहीं करना चाहिए। यह कानून भी जायज नहीं। इसलिए क्षेत्र के लोग बकरीद के त्योहार पर गाय की कुर्बानी से दूर रहें।

    मौलाना अहमद अली