India-Pakistan War: '1971 में पाकिस्तान के लोगों से भरवाई थी चिलम', नायक पलटू राम ने सुनाई उन 13 दिनों की कहानी
1971 India-Pakistan War में जोरासी के वीर जवानों ने पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नायक पलटू राम और अन्य सैनिकों ने पाकिस्तान को घुटनों पर लाने पर मजबूर कर दिया और पाकिस्तान के लोगों से चिलम भरवाने के अनुभवों को साझा किया। इस युद्ध में दिलीप सिंह धारीवाल बलिदान हुए थे। पूर्व सैनिक ने अपने परिवारजनों को सिविल डिफेंस की जानकारी भी दी।

शिशपाल सहरावत, तावडू। वर्ष 1971 में पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कर बांग्लादेश बनाने में भारत की आज भी चर्चा की जाती है। जब मात्र 13 दिन तीन दिसंबर से 16 दिसंबर तक चली इस लड़ाई में पाकिस्तान को नाकों चने चबा अपने अधिकार में ले लिया।
तब पूर्वी पाकिस्तान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने ढाका में भारतीय सेना के पूर्वी कमान जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल जेएस अरोड़ा की मौजूदगी में 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने हथियार डाल दिए। हालांकि भारत-पाकिस्तान के बीच हुई 71 की लड़ाई में गांव का बेटा दिलीप सिंह धारीवाल बलिदान हो गया।
पाकिस्तान को घुटनों पर लाए थे भारतीय जांबाज
71 की लड़ाई में आगे रहे जोरासी के नायक पलटू राम (84 वर्ष), सरदारा सिंह, चतर सिंह, सूबेदार रामकुमार (89 वर्ष) ने बताया कि यह वह समय था जब हिंदुस्तान ने वैश्विक पटल पर पाकिस्तान को घुटनों पर लाकर उसे उसकी औकात दिखाई थी। भारतीय सेना के हौसले इतने बुलंद थे कि पाकिस्तानी सैनिक अपने आप को छुपाए फिर रहे थे।
13 दिनों तक चले युद्ध में पाकिस्तान ने मानी हार
करीब 13 दिनों तक चले इस युद्ध में आखिर में पाकिस्तान को हार माननी पड़ी। उन्हें एक समय भी कभी ऐसा नहीं लगा कि तुम्हारे साथ क्या होगा। बल्कि उस समय करीब एक महीने तक उनकी पलटन बांग्लादेश में रही और वहां के लोगों से उन्होंने अपने लिए हुक्का की चिलम भरवाई। नायक पलटू राम ने बताया कि उन्होंने सन् 1965 और सन् 1971 की दोनों लड़ाइयां लड़ी, उस समय वह युवा थे।
वहीं बीती रात हुए ऑपरेशन सिंदूर को लेकर जब कप्तान राजेंद्र सिंह और अन्य सैनिकों से बात की तो बताया कि शायद ही कोई ऐसा घर हो जिनके परिवार से कोई न कोई सेना में न हो, हर परिवार से सैनिक हैं।
वह शुरू से ही अपने बच्चों को युद्ध के समय बरती जाने वाली सावधानियों को लेकर अवगत कराते रहते हैं। मॉक ड्रिल के दौरान क्या सावधानियां बरतनी हैं ,उनकी पूरी युवा पीढ़ी को यह सब अच्छी तरह से पता है। क्योंकि सैनिक जब बीच-बीच में छुट्टी लेकर घर आता है तभी बच्चे सब कुछ सीख लेते हैं।
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