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    मेवात में 1857 से पहले ही फिरंगियों के खिलाफ उपजा था असंतोष

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    Updated: Sun, 14 Aug 2016 05:01 PM (IST)

    एसडी जैन, नगीना 1857 के संग्राम में अन्य देशवासियों की तरह जी जान से बाजी लगा देने वाली मेवात

    एसडी जैन, नगीना

    1857 के संग्राम में अन्य देशवासियों की तरह जी जान से बाजी लगा देने वाली मेवाती कौम में सन 1800 के प्रारंभ से ही अंग्रेज हुक्मरानों व उनके देशी पिट्ठू राजाओं के खिलाफ नफरत के बीज पड़ने लगे थे।

    लसवाड़ी के युद्ध में पहली धमक :

    सन 1803 के अंग्रेज व मराठों के बीच हुए लसवाड़ी के युद्ध में मेव छापामारों ने दोनों को ही नुकसान पहुंचाया और खूब लूटा भी। लसवाड़ी युद्ध के दौरान मेवों द्वारा की गई लूट को अंग्रेजों ने याद रखा और मेवातियों को सबक सिखाने के लिए मेवात इलाके पर शिकंजा कसना शुरू किया।

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    नौटकी के वीर से अंग्रेज भी घबराए :

    सन 1806 में नगीना के नौटकी गांव निवासी मौलवी ऐवज खां की रहनुमाई में मेवों ने अंग्रेज फौज का जमकर मुकाबला किया तथा सेना को जबरदस्त मार लगाई। कमिश्नर कार्यालय गुड़गांव की फाइल नंबर आर 89 गवाह है कि इस मार से आहत होकर दिल्ली के रेजीडेंट मिस्टर सेक्टन को सन 1807 में अपने अधिकारियों को लिखना पड़ा कि मेवातियों के साथ नरम तथा हमदर्दाना व्यवहार किया जाए।

    भू-करों की मार :

    मेवाती किसानों पर भू करों की मार अलग पड़ रही थी। 1842 में मेवात क्षेत्र का राजस्व 11 लाख 14 हजार रुपये आंका गया जो परिस्थितियों के अनुसार काफी अधिक था। स्वयं लार्ड कनींघम ने माना था कि प्रथम दो भू व्यवस्थाएं काश्तकारों के लिए बड़ी भारी व कठिन थी।

    नगीना जनपद के चौधरियों को पकड़ा :

    इसके बाद 1854 की एक घटना ने आग में घी का काम कर दिया। इस साल कुछ अंग्रेज अधिकारी शिकार के बहाने मेवात आए। बहाना शिकार का था, वास्तविक मकसद मेवात के बढ़ते असंतोष को दबाना था। ये अधिकारी नगीना जनपद के कई मेव चौधरियों को पकड़ कर दिल्ली ले गए।

    गदर की शुरुआत में भी आगे रहा मेवात का सपूत :

    बताते हैं कि 10 मई 1857 की बगावत में अंग्रेजों के खिलाफ मेरठ छावनी में पहली गोली मेवात के एक सैनिक चांद खा ने ही चलाई थी।

    बदला :

    1858 में नगीना के एक सिपाही उदय ¨सह मेव एवं पड़ोस के घागस गांव के गरीबा पुत्र चूना मेव को अंग्रेजों ने फांसी पर लटकाकर बदले की भड़ास निकाली। पिनगवां के विद्रोही नेता सदरुद्दीन को पकड़ने के लिए 27 नवंबर को अंग्रेज कैप्टन रामसे पिनगवां पहुंचा। वह नहीं मिला तो अंग्रेज सैनिक टुकड़ी ने अगले दो दिन तक रास्ते के गुजरनंगला, बाइखेड़ा, शाहपुर, चित्तोड़ा, नाहरिका,खेड़ी आदि गांवों को आग लगा दी। 1857 के गदर में क्षेत्र के ऐसे भूले बिछड़े शहीदों की याद में ही मेवात विकास प्राधिकरण ने 2007 में 12 गांवों में शहीद मीनारें भी बनवाई थी, ताकि नई पीढ़ी गौरवशाली अतीत को याद रख सके। इनमें से एक कस्बे के राजकीय कॉलेज परिसर में बनी हुई है।