जिले के रूप में नामकरण से नूंह को मिली पहचान
प्रवीण कुमार, मेवात कई ऐतिहासिक घटनाओं के गवाह और अंग्रेजी हुकूमत के समय से तहसील का दर्जा लि
प्रवीण कुमार, मेवात
कई ऐतिहासिक घटनाओं के गवाह और अंग्रेजी हुकूमत के समय से तहसील का दर्जा लिए नूंह को जिले के रूप में नामकरण होने के बाद असली पहचान मिली है। नूंह प्रदेश ही नहीं देश के ऐतिहासिक शहरों में शुमार है। लेकिन इसकी पहचान खो गई थी। सरकार ने नूंह का नामकरण जिले के तौर पर कर दोबारा से पहचान दिलाई है।
नूंह के इतिहास की बात करें तो इसका इतिहास करीब 1200 साल पुराना बताया जाता है। हरियाणा से राजस्थान और उत्तर प्रदेश तक फैले मेवात क्षेत्र की राजधानी के नाम से प्रसिद्ध नूंह शहर को किशनधज नामक ब्राह्मण ने इंदौर से आकर बसाया था। इसका उल्लेख मेवात के शोध पर लिखी गई किताबों में मिलता है। बाद में अलाउद्दीन खिलजी ने ब्राह्मणों से सारी जमीन छीनकर खानजादों (एक समुदाय)को नूंह की बिसवेदारी सौंप दी। एक समय नूंह में खानजादों और कुरैशियों की सबसे अधिक आबादी थी। बताया जाता है आधे से अधिक आबादी इन दोनों जातियों की ही थी। देश बंटवारे के समय अधिकांश कुरैशी और खानजादे पाकिस्तान चले गए। इस शहर के आसपास देहात में मेव और जाट समाज बसता है। जिनके भाईचारे की मिसाल आज भी कायम है। इसीलिए यहां की तहजीब को देश की सांझी संस्कृति मानकर ¨हदू-मुस्लिम, गंगा-जमुनी तहजीब कहा जाता है।
नमक के व्यापार ने दी पहचान :
नूंह को नमक के व्यापार ने देशभर में पहचान दी। बताया जाता है नमक के कारण ही शहर का नाम नूंह पड़ा। नमक को देहाती भाष में नोन कहा जाता है। इसलिए नोन से शहर का पहले नोहो हुआ बाद में जिसका शुद्धीकरण कर नूंह कर दिया गया। यहां के सेठ चूहीमल संयुक्त पंजाब में नमक के सबसे बड़े व्यापारी हुए हैं। नूंह शहर से एकदम सटे फिरोजपुर नमक में उनका करोबार था। इसी कारण इसे नमक का फिरोजपुर भी कहा जाता है।
दो बार अलग -अलग नाम से जिला बना :
नूंह दो बार अलग -अलग नाम से जिला बना। पहली बार दो अक्टूबर 2004 को तत्कालीन मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने पुन्हाना में एक जनसभा कर इसे गुड़गांव से अलग कर जिले का दर्जा देने की घोषणा की। उस समय इसका नाम सत्यमेव पुरम रखा गया। पांच अप्रैल 2005 को कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद दोबारा से इसे जिला बनाने की अधिसूचना जारीकर इसका नाम बदल कर मेवात कर दिया। चूंकि मेवात कोई शहर नहीं है। यह राजस्थान और यूपी तक फैला एक क्षेत्र था, लेकिन किसी शहर का अस्तित्व नहीं था। बाहर से आने वाले लोगों को इसके शहरों तक पहुंचने में काफी दिक्कत हो रही थी। यहां तक मेवात के नाम से न तो कोई पिन कोड है और न ही दूसरी सहूलियत।
1857 की क्रांति का प्रमुख केंद्र रहा है नूंह :
1857 में हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नूंह प्रमुख केंद्र रहा है। यहां लोगों ने जंग-ए-आजादी में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। बताया जाता है कि मैकफर्सन नामक एक अंग्रेजी अधिकारी को यहां के कुछ युवाओं ने गोली मार दी थी। क्रांति में सक्रिय रहने के कारण नूंह और आसपास के गांवों के 52 लोगों को एक साथ फांसी पर लटका दिया गया था। उनकी याद में यहां शहीद पार्क बनाया गया था। जिसका अस्तित्व समाप्त कर वहां नगर पालिका का कार्यालय बना दिया है।
विकास की दौड़ में शामिल हो रहा नूंह :
नूंह मौजूदा समय में विकास की दौड़ में शामिल हो रहा है। शिक्षण संस्थानों के साथ यहां इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने पर फोकस किया जा रहा है। यहां चमचमाती सड़कें, लघु सचिवालय, जिला अदालत है। इंजीनिय¨रग कालेज है। मेवात मेडिकल कालेज है। प्रदेश की सबसे बड़ी आइटीआइ भी है।
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