सरकारी खरीद में किसानों को करारा झटका, मंडी में बाजरे का एक दाना भी नहीं बिका
मंडी अटेली में सरकारी खरीद व्यवस्था से किसान परेशान हैं। लगातार तीसरे दिन बाजरा रिजेक्ट होने से किसानों में निराशा है। सरकार ने भाव तो बढ़ाया पर खरीद नहीं हो रही जिससे भावान्तर राशि भी घट गई है। किसान उपज लेकर मंडी पहुंच रहे हैं लेकिन खरीदी प्रक्रिया अटकी हुई है। लैब रिपोर्ट में गुणवत्ता मानकों पर खरा न उतरने के कारण बाजरा रिजेक्ट हो रहा है।

संवाद सहयोगी, मंडी अटेली। सरकारी खरीद व्यवस्था किसानों के लिए परेशानी का सबब बन गई है। मंडी में पहुंचे किसानों का बाजरा लगातार तीसरे दिन भी रिजेक्ट कर दिया गया। सरकार ने भले ही बाजरे का भाव 2150 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 2200 रुपये कर दिया हो, लेकिन अब तक एक भी किसान की ढेरी सरकारी भाव पर नहीं खरीदी गई।
इससे किसानों को मिलने वाली भावान्तर राशि भी घट गई है। पहले 625 रुपये प्रति क्विंटल भावान्तर मिलना तय था, लेकिन अब यह घटकर 570 रुपये रह गया है। किसान सवाल कर रहे हैं कि जब सरकार खरीद ही नहीं रही तो रेट बढ़ाने का क्या औचित्य है।
पिछले तीन दिनों से किसान अपनी उपज लेकर मंडी पहुंच रहे हैं, लेकिन खरीदी प्रक्रिया पूरी तरह अटकी हुई है। किसानों का कहना है कि वे सरकारी भाव पर उपज बेचने की उम्मीद से मंडी आए थे, लेकिन लगातार इंतजार और असफल गुणवत्ता जांच के बाद उन्हें मायूस होकर लौटना पड़ा।
खरीद अधिकारी सत्येन्द्र यादव ने बताया कि अब तक मंडी में जितनी भी ढेरियां आई हैं, उनके सैंपल लैब भेजे गए, लेकिन एक भी सैंपल पास नहीं हो सका। लगातार दो दिनों तक भेजे गए नमूने फेल हुए और आज भी सरसों मंडी में आए किसानों का बाजरा रिजेक्ट कर दिया गया।
उन्होंने कहा कि लैब रिपोर्ट में बाजरा गुणवत्ता मानकों पर खरा नहीं उतर रहा है, इसी कारण किसी किसान की उपज सरकारी दर पर खरीदी नहीं जा सकी। दूसरी ओर, किसानों में गुस्सा साफ झलक रहा है। उनका कहना है कि यदि सरकार ने खरीद मानक तय किए थे तो उनकी जानकारी पहले दी जानी चाहिए थी।
कई दिनों से मंडी में डटे किसानों का अनाज जब खरीदा ही नहीं गया तो उन्हें आढ़तियों के भरोसे बेचना पड़ा, जहां उन्हें सरकारी रेट से काफी कम दाम मिले। किसानों का आरोप है कि सरकार सिर्फ भाव बढ़ाकर सुर्खियां बटोर रही है, जबकि मंडियों में खरीद की प्रक्रिया पूरी तरह ठप है। यदि यही हालात रहे तो किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा। मंडी में चर्चा है कि सरकारी खरीद केवल कागजों तक सीमित रह गई है।
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