अपराधियों की शरणस्थली बना चोर गुंबद
फिरोजशाह तुगलक के जमाने में निर्मित इस गुंबद के संरक्षण के लिए पुरातत्व विभाग व स्थानीय प्रशासन ने बेहतरीन प्रयास किए लेकिन रात के अंधेरे को इस गुबंद ...और पढ़ें

बलवान शर्मा, नारनौल:
बीरबल नगरी की एक और एतिहासिक धरोहर चोर गुंबद भले ही जिलेवासियों के लिए नई नहीं है, लेकिन पुरातत्व विभाग व इतिहासकारों की नजर में यह प्रदेश, देश व विदेशी सैलानियों को बगैर इतिहास पढ़े ही मुगलकाल की यादों को ताजा कर रही है। फिरोजशाह तुगलक के जमाने में निर्मित इस गुंबद के संरक्षण के लिए पुरातत्व विभाग व स्थानीय प्रशासन ने बेहतरीन प्रयास किए, लेकिन रात के अंधेरे को इस गुबंद एरिया में खराब पड़ी स्ट्रीट लाइट और गहरा देती हैं। इससे यह एतिहासिक धरोहर एक बार फिर से अपने चोर गुंबद में चोर के नाम को सार्थक करती दिख रही है। आलम ये है कि इसके आस-पास अंधेरा होने से ये गुंबद अपराधियों की शरणस्थली बन गई है और उन्हें छुपने की जगह देती है।
बता दें कि नगर परिषद प्रशासन ने इस धरोहर के चारों ओर पार्क बनाया है। इसे सुभाष पार्क के नाम से जाना जाता है। प्रशासन ने कहने के लिए तो यहां हाईमास्क लाइट भी लगाई थी, लेकिन जब दैनिक जागरण टीम ने रात को इस पार्क का दौरा किया, तो यहां घुप्प अंधेरा मिला। कोरोना संक्रमण की वजह से गुंबद के द्वार पर ताला लगा था। पार्क की एक दीवार भी टूटी पड़ी है। बॉक्स..
बेहतरीन इमारत को यूं मिला चोर गुंबद नाम
पुरातत्व विभाग के रिकार्ड के मुताबिक, अफगान नवाब जमाल खान ने इसे बनवाया था। इसके नीचे गुंबद और द्विज्या मेहराब से प्रतीत होता हैं कि यह फिरोजशाह तुगलक (1351-88 ई.) के शासनकाल में निर्मित हुआ था। एक कमरे वाले वर्गाकार स्मारक के चारों कोनों पर चार मीनारें जुड़ी हैं। इसके विस्तृत एवं ऊपर से दबे हुए गुंबद, मेहराब शैली एवं अन्य वास्तुगत विशेषताएं इसे तुगलक काल से जोड़ती हैं। वर्तमान में इसमें कोई कब्र मौजूद नहीं है। लंबे समय से उपेक्षित यह जगह आज चोर-लुटेरों की शरणस्थली बन चुकी है। यही वजह है कि इसका नाम चोर गुंबद पड़ गया है। वर्जन..
लाइट खराब होने की जानकारी नहीं है। यहां एक हाई मास्क लाइट भी लगी है। अभी तक कोई शिकायत नहीं मिली है। यदि लाइट खराब हैं, तो उसे जल्द ही ठीक कराया जाएगा।
- अनिल कुमार, सचिव, नगर परिषद

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