नारनौल ने तोड़ी थी दोहरी गुलामी की जंजीर
14 अगस्त 1947 का दिन। देश भर में आजादी का जश्न मनाने की तैयारी चल रही थी। पाकिस्तान से हिदुओं के शवों से भरी ट्रेन जैसे ही पंजाब में आई तो यह खबर नारनौल में भी पहुंच गई। नारनौल में उन दिनों पुलिस कप्तान मुस्लिम और डीसी हिदू थे।

बलवान शर्मा,नारनौल
14 अगस्त 1947 का दिन। देश भर में आजादी का जश्न मनाने की तैयारी चल रही थी। पाकिस्तान से हिदुओं के शवों से भरी ट्रेन जैसे ही पंजाब में आई तो यह खबर नारनौल में भी पहुंच गई। नारनौल में उन दिनों पुलिस कप्तान मुस्लिम और डीसी हिदू थे।
नारनौल शहर उस समय मुस्लिम बाहुल्य था और हिदू गिने चुने ही थे। मुस्लिम एसपी होने की वजह से हिदुओं पर हमले की साजिश चल रही थी। इसकी भनक तत्कालीन डीसी को लगी तो उन्होंने महाराजा पटियाला को सूचना दे दी। महाराजा पटियाला ने तुरंत संज्ञान लिया और सेना भेजकर एसपी को बंदी बना लिया।
जीवन मौत के मातम में बदल गया: जश्न की जगह दोनों समुदायों के बीच कत्ल-ए-आम शुरू हो गया। शहर में कुएं, बावड़ियां और सड़कें सभी लाशों में तब्दील हो गए। देखते ही देखते जीवन मौत के मातम में बदल गया। नफरत की आग में शहर जल उठा। यदि कोई जीवित थी तो वह केवल नफरत। एक दूसरे को मौत के घाट उतारने की सनक सिर चढ़कर बोल रही थी। शहर का छोटा-बड़ा तालाब एरिया हो या फिर नारनौल की पीर तुर्कमान की मजार हर कोना खून से सने शवों से अटा पड़ा था।
1857 की नसीबपुर क्रांति के बाद सबसे बड़ा कत्ल-ए-आम 1947 में हुआ था। नारनौल में यह खून खराबा दक्षिण हरियाणा में सर्वाधिक होने का कारण यह भी था, क्योंकि नारनौल पर मुगलों का लंबे समय तक शासन रहा था। मुस्लिम बाहुल्य होने की वजह से हिदुओं पर लगातार अत्याचार हो रहे थे। रही सही कसर बंटवारे के दौरान पाकिस्तान में हिदुओं का कत्ल-ए-आम होने की खबर ने पूरी कर दी। नतीजा खून खराबे के रूप में शहरवासियों को भुगतना पड़ा।
इतिहासकार एडवोकेट रतनलाल सैनी बताते हैं कि असल में नारनौल में हालात तो बंटवारे से 10 दिन पहले ही नारनौल में तनावपूर्ण हो गए थे। कुछ लोग नारनौल को छोड़कर जयपुर तो कोई हैदराबाद और कराची चले गए। बंटवारे के दौरान नारनौल के बाशिदे दोहरी गुलामी की जंजीर तोड़कर 15 अगस्त को देश के साथ ही आजाद होने में कामयाब हुए थे। ऐतिहासिक धरोहरों का खजाना है
नारनौल: नारनौल शहर ऐतिहासिक धरोहरों का खजाना है। बीरबल का छत्ता, जलमहल, चोर गुबंद जैसी मुगलकालीन इमारतें आज भी अपना वजूद बचाए हुए हैं। इतिहासकार रतनलाल सैनी बताते हैं बीरबल का छत्ता राय मुकुंद दास ने शाहजहां के काल में बनवाया था। राय मुकुंद दास ने ही नारनौल में बड़ी सराय का निर्माण करवाया था। 1857 के नसीबपुर युद्ध के बाद नारनौल और कानौड़ (वर्तमान महेंद्रगढ़) महाराजा पटियाला की रियासत में शामिल कर लिए गए। महाराजा पटियाला ने बड़ी सराय में ही डीसी, एसपी व अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के कार्यालय स्थापित कर दिए। इसी स्थान पर उनकी कोठियां भी होती थीं। वर्तमान में कई एकड़ यह भूमि शहर के बीचोबीच बेकार पड़ी है। ग्रंथी और पुजारी को सरकार देती थी वेतन: महाराजा पटियाला ने कानौड़ के कैदियों की हड़ताल और मांग पर पुरानी सराय (पुरानी कोर्ट) के मुख्यद्वार के ऊपर गुरुद्वारा स्थापित करवा दिया। वर्तमान विश्रामगृह के पास स्थित मंदिर की पूजा करने वाले पुजारी और इस गुरुद्वारे के ग्रंथी दोनों को सरकार की ओर से वेतन देने की शुरुआत भी उस समय की गई थी। भू माफिया की है नजर: शहर के बीचोबीच स्थित कई एकड़ इस भूमि पर वर्तमान में भू माफिया की नजर है। शहर के समाजसेवी आरके जांगड़ा और टाइगर क्लब के प्रधान राकेश यादव ने बताया कि पुरानी कोर्ट की इस कीमती भूमि पर भू माफिया की नजर है। इस जगह का इस्तेमाल बेहतर कार्य के लिए किया जा सकता है। या फिर इसे पुरातत्व विभाग को सौंप कर पर्यटन केंद्र के रूप में भी विकसित किया जा सकता है।
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