मेजर चंद्रभान ने द्वितीय विश्व युद्ध के साथ देश की आजादी में निभाई अहम भूमिका
वैसे तो दुनिया में कई व्यक्ति प्रेरणा के स्त्रोत हैं परंतु जब किसी सामान्य परिवार के एक साधारण व्यक्ति अपने जीवन की गाथाओं की अमिट छाप छोड़ जाता है तब इतिहास उसे अमर बना देता है।

जागरण संवाददाता, नारनौल: वैसे तो दुनिया में कई व्यक्ति प्रेरणा के स्त्रोत हैं, परंतु जब किसी सामान्य परिवार के एक साधारण व्यक्ति अपने जीवन की गाथाओं की अमिट छाप छोड़ जाता है, तब इतिहास उसे अमर बना देता है।
आजाद हिद फौज के सच्चे सिपाही मेजर चंद्रभान का जन्म ऐतिहासिक स्थल नारनौल के मोहल्ला बावड़ीपुर में सन् 1908 में यादव परिवार में हुआ। 19 वर्ष की अल्पायु में ही वह भारतीय सेना में शामिल हो गए। विभिन्न युद्ध परिस्थितियों का सामना करते हुए और साक्षी बनते हुए, द्वितीय विश्व युद्ध में जांबाज सैनिकों के साथ युद्ध में बंदी हो गए। सन् 1942 में आजाद हिद फौज का गठन हुआ और वह इसका हिस्सा बन गए। उनके साहस, जज्बे, नेतृत्व क्षमता और जोश को देखते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें मेजर के पद पर नियुक्त किया।
नेताजी के नेतृत्व में ही उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में युद्ध का मौका मिला। पगान की लड़ाई में उन्होंने आजाद हिद फौज की एक कंपनी का नेतृत्व किया। मेजर चंद्रभान आजाद हिद फौज में अपने जिले के इकलौते अफसर थे। जैसा कि विदित है खराब मौसम व खाद्य पूर्ति सप्लाई के टूटने के कारण आजाद हिद फौज के जांबाज मेजर चंद्रभान को उनके साथियों के साथ युद्ध बंदी बनाकर अंग्रेजों ने लाल किले की दीवारों में कैद कर दिया।
1946 में लाल किले के बंदियों को रिहा किया गया, जिसके बाद वह वापस घर लौट सके। आजीवन उन्होंने सुभाष चंद्र बोस की हवाई दुर्घटना के दुखद मृत्यु को सही नहीं माना। संपूर्ण जीवन वह नेताजी के आदर्शों पर चलते रहे। आजादी प्राप्ति के पश्चात जनसेवा के लिए उन्होंने दो बार चुनाव जनसंघ से लड़ा। स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को देखते हुए भारतीय सरकार में अनेकों बार उन्हें सम्मान पत्र से अलंकृत किया। अहीर कालेज दक्षिण हरियाणा का एक प्रमुख शिक्षण संस्थान है, वह उसकी भी कोर कमेटी के सदस्य रहे।
उन्होंने अपने जीवनकाल में एक सफल समाजसेवी, जुझारू व दबंग व्यक्तित्व और नेताजी के आदर्शों के साथ जीवन यापन किया। मेजर साहब के तीन पुत्र व तीन पुत्रियां हैं। उनकी धर्मपत्नी कमला देवी भी बड़े सरल स्वभाव की थी। उन्होंने मेजर का हर मोड़ पर साथ दिया। अब तीनों पुत्रों में से केवल एक पुत्र ओमप्रकाश यादव जीवित हैं। जो अभी भी समाज सेवा में बढ़ चढ़कर भाग ले रहे हैं। मेजर चंद्रभान ने 13 जनवरी 1989 को ब्रह्म मुहूर्त में इस संसार को अलविदा कह दिया। उनकी कार्यशैली जुझारूपन एवं सफल व्यक्तित्व सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत रहेंगे।
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