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    रोजाना हो रही बूंदाबांदी से बाजरे की अगेती फसल पर संकट

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 01 Sep 2017 06:48 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, नारनौल : जिले में इस बार बारिश की अनिश्चितता के चलते खरीफ फसलों के अनु

    रोजाना हो रही बूंदाबांदी से बाजरे की अगेती फसल पर संकट

    जागरण संवाददाता, नारनौल : जिले में इस बार बारिश की अनिश्चितता के चलते खरीफ फसलों के अनुमान गड़बड़ा गए हैं। खरीफ फसलों की बिजाई के समय जिले के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग समय पर बरसात होने से सभी क्षेत्रों में फसलों की बिजाई एक साथ नहीं हो पाई थी। अब कटाई के समय फिर बरसात होने से अगेती फसल खराब होने का खतरा है।

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    क्षेत्र में कहीं बिजाई जून माह के अंतिम दिनों में ही कर दी गई तो काफी क्षेत्र में बिजाई कुछ विलंब से हुई। उसके बाद भी बरसात औसत से काफी कम होने से खरीफ की सभी फसलों में काफी नुकसान हुआ। समय पर बरसात न होने से जहां काफी बड़े क्षेत्र में फसलें सूखने के कगार पर पहुंच गई थीं तो अब रोज-रोज हो रही बूंदाबांदी से बाजरे की पककर तैयार खड़ी अगेती फसल पर भी संकट छाने लगा है।

    जिले की कुल एक लाख 55 हजार 481 हेक्टेयर कृषि योग्य जमीन में से इस बार बड़े रकबे में बाजरे की बिजाई की गई थी। इसके अलावा कुछ क्षेत्र में ग्वार, दलहन व कपास की बिजाई भी हुई है। इस बार बारिश कम होने से जहां शुरू में फसलों की बढ़वार रुक गई थी तो बाद में सावन का अधिकांश समय व आषाढ़ के शुरुआती दिन भी सूखे गुजर जाने से खेतों में खड़ी सभी खरीफ फसलें सूखने लगी थीं।

    जिन किसानों के नलकूपों में पानी था उन्होंने समय-समय पर ¨सचाई कर अपनी फसलों को सूखने से बचाया था। इसकी वजह से इस समय पककर तैयार खड़ी बाजरे की अगेती फसल की कटाई शुरू की गई थी। लेकिन तीन-चार दिन से हल्की बूंदाबांदी का दौर शुरू होने से किसान परेशान हैं। पिछले कई दिनों से जिले के कुछ इलाकों में हो रही बूंदाबांदी से बाजरे की काटी गई फसल खेतों में ही पड़ी भीग रही है और उसके खराब होने के आसार बढ़ते जा रहे हैं।

    इन हालात में जहां जिले के किसानों के लिए खरीफ फसलों की बिजाई पर आई लागत निकालना भी मुश्किल हो गया है, वहीं मोटे अनाज व पशुचारे की किल्लत बढ़ना भी तय है। इससे पशुपालकों की मुश्किलें भी बढ़ेंगी। भूजल स्तर काफी नीचे जाने से जिले के अधिकांश इलाके में अब फसलों की ¨सचाई तो क्या पीने लायक पानी भी उपलब्ध नहीं है। जिले की कृषि मानसून पर निर्भर होकर रह गई है। ऐसे में रबी के मौसम में गेहूं की बिजाई का रकबा लगातार घटते जाने से अब पशुचारे की मांग खरीफ फसलों से ही पूरी हो पाती है।

    बिजाई के समय हुई ठीकठाक बरसात से क्षेत्र में पशुचारे का संकट हल होने की उम्मीद बनी थी, मगर अब उस पर पुन: पानी फिरने के आसार बनते जा रहे हैं। इसकी वजह से जहां कर्ज के जाल में फंसे किसानों का संकट गहराता दिखाई दे रहा है, वहीं पशुपालक भी ¨चतित हैं। क्षेत्र में पशुचारे का भाव पहले ही छह-सात सौ रुपये कुंतल के आसपास चल रहा है।