Gond Ke Laddu: सर्दियों की शान बने गोंद के लड्डू, कनीना से अमेरिका तक पहुंच रही देसी मिठास
सर्दियों में गोंद के लड्डूओं की मांग बढ़ जाती है, खासकर कनीना में बने लड्डू अमेरिका तक अपनी पहचान बना रहे हैं। ये लड्डू न केवल शरीर को गर्मी देते हैं, ...और पढ़ें
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गोंद के लड्डू बनाती हुई बनारसी देवी। जागरण
संवाद सहयोगी, कनीना। सर्दियां शुरू होते ही कनीना और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में एक मीठी सुगंध हवा में घुलने लगती है गोंद के लड्डुओं की। हर रसोई में कड़ाही चढ़ जाती है, घी की खुशबू तैरने लगती है और महिलाएं लग जाती हैं एक परंपरा को जीवित रखने में। गोंद के लड्डू यहां सिर्फ मिठाई नहीं हैं, बल्कि सर्दियों की ऊर्जा, घरेलू कारीगरी और पीढ़ियों से चली आ रही लोक संस्कृति का स्वाद हैं।
गांवों में मान्यता है कि सर्दी के मौसम में शरीर को गर्म रखने और मजबूत बनाने में इन लड्डुओं का कोई मुकाबला नहीं। यही वजह है कि जहां भी घर पर कोई बच्चा पढ़ने या नौकरी के लिए बाहर जाता है, उसकी पोटली में गोंद के लड्डू जरूर रखे जाते हैं। मेहमान आएं तो पहले लड्डू परोसे जाते हैं, बाद में आने का कारण पूछा जाता है , इतना सम्मान है इस देसी व्यंजन का।
बवानिया की बनारसी देवी-गोंद के लड्डुओं की मशहूर कारीगर
कनीना उप-मंडल के गांव बवानिया में रहने वाली बनारसी देवी इन लड्डुओं को नई पहचान देने वाली शख्सियत बन चुकी हैं। देसी घी, बाजरा, तिल, गोंद, खांडसारी और ड्राई फ्रूट से बने उनके गोंद के लड्डू अब न केवल हरियाणा के शहरों में, बल्कि देशभर और विदेशों तक अपनी मिठास फैला रहे हैं। सर्दियों के मौसम में वह 10 क्विंटल तक लड्डू तैयार करती हैं। स्थानीय स्तर पर ये 500 से 600 रुपये किलो बिकते हैं, जबकि विदेशों में 5000 रुपये किलो तक के दाम पर खरीदे जाते हैं।
उन्होंने बताया कि वह कई देशों में अपने लड्डू भेज चुकी हैं और विदेशी लोग भी इनके स्वाद और पौष्टिकता की तारीफ करते हैं। उनकी मेहनत और हुनर को देखते हुए हरियाणा सरकार भी उन्हें दो बार सम्मानित कर चुकी है। बनारसी देवी ने बवानिया पिकल्स नाम से एक एनजीओ बनाया हुआ है, जहां 24 महिलाओं को रोजगार मिला है। उनकी यह पहल ग्रामीण महिलाओं के लिए स्वरोजगार का मजबूत माध्यम बन चुकी है।
कैसे बनते हैं इतने स्वादिष्ट और पौष्टिक लड्डू?
गोंद के लड्डू तैयार करना आसान काम नहीं। इसके लिए हुनर, समय और धैर्य की जरूरत होती है। कड़ाही में देसी घी गर्म होता है, गोंद फूलकर कुरकुरे मोती बन जाता है। फिर बाजरे या गेहूं के आटे को भूनकर इसमें तिल, ड्राई फ्रूट, खांडसारी, गोखरू और खंरीटी जैसे पौष्टिक तत्व मिलाए जाते हैं। इन्हीं के मिश्रण से बनता है वह लड्डू जो सर्दियों में शरीर को ऊर्जा देता है, हड्डियों को मजबूत करता है और पूरे दिन सक्रिय रखता है। दुकानों पर भी इसकी इतनी मांग रहती है कि ये 500 रुपये किलो तक आसानी से बिक जाते हैं।
अमेरिका में वैज्ञानिक बेटे के लिए ले जाते हैं कवि राम अवतार
गुढ़ा निवासी प्रसिद्ध कवि राम अवतार बताते हैं कि उनके बच्चे अमेरिका में वैज्ञानिक हैं। जब भी वे अमेरिका जाते हैं, सबसे पहले बनारसी देवी से गोंद के लड्डू बनवाते हैं और बच्चों के लिए ले जाते हैं। उनका मानना है कि देसी खान-पान से बढ़कर पौष्टिक कुछ नहीं। कनीना क्षेत्र में गोंद के लड्डू सिर्फ स्वाद का प्रतीक नहीं, बल्कि परंपरा, पोषण और ग्रामीण महिलाओं की आर्थिक मजबूती की कहानी भी हैं। सर्दियां आएंगी और जाएंगी, लेकिन हर बार गोंद के लड्डू कनीना की संस्कृति में नई मिठास घोलते रहेंगे।
क्या कहते हैं ग्रामीण?
ग्रामीणों, अजीत कुमार, मोहन सिंह, सूबे सिंह, राजेंद्र सिंह और कृष्ण कुमार का कहना है कि सर्दियों की सुबह गोंद के लड्डू और गर्म चाय या दूध मिल जाए तो पूरे दिन शरीर में जोश भरा रहता है। मेहमान आएं तो सबसे पहले यही परोसा जाता है। उनके अनुसार सर्दियों के खाने में बदलाव आता है, लेकिन गोंद के लड्डुओं का स्थान कभी नहीं बदलता।
डॉक्टर भी बताते हैं फायदेमंद
कनीना उप-नागरिक अस्पताल के डॉक्टर जितेंद्र मोरवाल बताते हैं कि गोंद के लड्डू कैल्शियम, आयरन, फाइबर और औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। ये शरीर को गर्म रखते हैं, प्रतिरक्षा बढ़ाते हैं और थकान कम करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इनका चलन स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद लाभकारी है।

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