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    कपास की फसल पर 'मोरपंजा' का कहर

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 11 Jul 2017 06:52 PM (IST)

    सुरेंद्र यादव, नारनौल : क्षेत्र में 'सफेद सोना' के नाम से प्रसिद्ध कपास की फसल 'मोरपंजा' बीमारी क ...और पढ़ें

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    कपास की फसल पर 'मोरपंजा' का कहर

    सुरेंद्र यादव, नारनौल : क्षेत्र में 'सफेद सोना' के नाम से प्रसिद्ध कपास की फसल 'मोरपंजा' बीमारी की चपेट में आ रही है। इसके चलते इसके पौधों की बढ़त रुक गई है तथा फूल आना बंद हो गए हैं। पौधे के नाजुक हिस्से में लगने वाले इस रोग से बचने के लिए किसान पौधे के प्रभावित हिस्से को काटकर जमीन में दबा दें। साथ ही दवा का छिड़काव भी करें। ऐसा कर फसल में नुकसान को रोक सकते हैं।

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    नकदी फसल के रूप में जानी जाने वाली कपास का रकबा इस बार जिला में पिछले वर्ष की अपेक्षा करीब दो गुना हो गया है। इसका प्रमुख कारण है पिछले वर्ष रेट ठीक मिलना। इससे उत्साहित होकर किसानों ने अकेले जिला महेंद्रगढ़ में करीब 19,315 हैक्टेयर भूमि पर कपास की काश्त की है जबकि पिछले साल इसका रकबा 10,330 हैक्टेयर ही था। इस बार समय पर अच्छी बारिश होने से किसानों के सपने सातवें आसमान पर पहुंचे हुए हैं। इसी बीच फसल पर मोरपंजा (अंग्रेजी में मालफार्मेशन) नामक बीमारी का प्रकोप बढ़ जाने से किसानों में मायूसी है।

    कृषि विभाग में सहायक पौध संरक्षण अधिकारी डॉ. हरपाल ¨सह के अनुसार उन्होंने जिला के पांच गांवों में दौरा करके बीमारी का जायजा लिया है, जिनमें से तीन गांवों में फसल पर मोरपंजा का प्रकोप है। किसानों से शिकायत मिलने पर उन्होंने गांव सिहमा, तिगरा शाहपुर अव्वल (मांदी), नंगली और खातोली अहीर में जाकर कपास की फसलों का जायजा लिया। इसमें सिहमा, तिगरा और मांदी गांवों में फसल को मोरपंजा से संक्रमित पाया। इनके अलावा खातोली अहीर और नंगली में इस रोग का असर नहीं है।

    क्यों होता है मोरपंजा

    क्षेत्र में मोरपंजा बीमारी का मुख्य कारक गेहूं की फसलों में खरपतवार नाशक के तौर पर प्रयोग की जाने वाली दवा 'टू, फोर-डी' (टू फोर डाइक्लोरोफीनोक्सीएसिटिक एसिड) मानी जाती है। इस दवा के छिड़काव से चौड़े पत्ते वाले पौधे मुरझाकर खत्म हो जाते हैं। यदि किसान इस दवा का कपास पर छिड़काव करते हैं, अथवा इस दवा का प्रयोग की गई मशीन को साफ किए बिना दवा का छिड़काव किया जाता है तो उससे भी यह रोग लग जाता है। मोरपंजा बीमारी में पौधे के ऊपरी हिस्सा और पत्ते सिकुड़ने लगते हैं।

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    बीमारी अभी शुरुआती स्टेज में है। अभी इससे कितना प्रभाव पड़ा है, बता पाना संभव नहीं है। किसान घबराएं नहीं, बचाव के लिए पौधे के ऊपर के प्रभावित 10-15 सेंटीमीटर के हिस्से को तोड़कर उन्हें मिट्टी में दबा दें। इसके अलावा प्रति एकड़ फसल के लिए 2.5 किलो यूरिया व 500 ग्राम ¨जक सल्फेट को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

    - डॉ. हरपाल ¨सह, एपीपीओ।