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    काटने के 72 घंटे के अंदर लगवाएं एंटी-रैबीज इंजेक्शन

    By Edited By:
    Updated: Tue, 27 Sep 2016 06:16 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, नारनौल : रेबीज कुत्ता, बिल्ली, नेवला, चमगादड़ के काटने के साथ-साथ गर्म रक्तयुक्त जान

    जागरण संवाददाता, नारनौल : रेबीज कुत्ता, बिल्ली, नेवला, चमगादड़ के काटने के साथ-साथ गर्म रक्तयुक्त जानवरों के काटने से होता है। ये मनुष्य को काटते समय अपनी लार में लिसा नामक वायरस को शरीर में छोड़ देते हैं, जिससे यह वायरस मनुष्य के मस्तिष्क पर सीधा असर डालता है। रोगी को समय पर उपचार प्रदान हो जाए तो उसको बचाया जा सकता है।

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    विदित रहे कि किसी भी व्यक्ति को कुत्ते, बंदर, सुअर, चमगादड़, लोमड़ी या किसी जंगली जानवर ने काट लिया है तो उसके लिए जरूरी है। कि वह जानवर के काटे जाने के 72 घंटे के अंतराल में एंटी रेबीज वैक्सीन का इंजेक्शन अवश्य ही लगवा लेना चाहिए। अगर 72 घंटे के अंतराल में मरीज इंजेक्शन नहीं लगवाता है तो वह रेबीज रोग की चपेट में आ सकता है। ऐसा होने के बाद रेबीज का कोई भी इलाज उपलब्ध नहीं हैं। साथ जंगली जानवर के काटे जाने के बाद मरीज को चाहिए कि अगर घाव अधिक गहरा नहीं हो तो उसको साबुन से कम से कम पंद्रह मिनट तक अवश्य धोएं। इसके बाद बीटाडीन से उसकी ठीक तरह से सफाई करे व घाव को कभी भी गलती से ढ़क कर नहीं रखे। अगर घाव अधिक गहरा हो तो तुरंत ही चिकित्सक की सलाह से उसकी साफ-सफाई का ध्यान रखे। घरों में पालतू कुत्तों को एंटी रेबीज का टीका अवश्य ही लगवाया जाए। अगर किसी घाव पर गलती से कुत्ते की लार गिर जाती है तो उससे भी रेबीज हो जाता है। मरीज रेबीज की चपेट में आ गया तो उसका कोई ईलाज नहीं हैं। हालांकि उपचार के माध्यम से मरीज को कुछ राहत प्रदान कि जा सकती है। रेबीज रोग 11 वर्षों तक रोगी को अपनी गिरफ्त ले सकता है।

    रेबीज रोग के लक्षण :

    रेबीज रोगी को सबसे अधिक पानी से डर लगता है, क्योंकि जिस किसी को रेबीज हो जाता है, यह रोग दिमाग के साथ-साथ गले को भी अपनी चपेट में ले लेता है। जिससे अगर रोगी पानी पीने मात्र की भी सोचता है तो उसके कंठ में जकड़न महसूस होती है। जिससे उसको सबसे अधिक पानी से ही खतरा होता है।

    रोगी के नाक, मुंह से लार निकलती है

    रोग की एक ऐसी भी अवस्था होती है कि वह अपने आपको निडर महसूस करता है।

    रोगी को रोशनी से ड़र लगता है।

    रोगी हमेशा शांत व अंधेरे वातावरण में रहना पसंद करता है।

    रोगी किसी भी बात को लेकर भड़क सकता है।

    कुत्ते के काटे जाने के बाद अकसर देखा जाता है कि गांवों के मरीज आते है वे 72 घंटे के बाद आते है। व घाव पर पिसी हुई लाल मिर्च लगाकर आते है। जिससे ठीक होने का खतरा कम तो घाव में इंफेक्शन होना खतरा अधिक होता है। अकसर इस तरह के रोगी ग्रामीण इलाकों से आते है। कुत्ते या अन्य किसी जानवर के काटे जाने के बाद 72 घंटे के अंदर एंटी रेबीज वैक्सीन का इंजेक्शन अवश्य ही लगवाए। चिकित्सक की सलाह के बाद किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं करे।

    - डॉ. हिमांशु बड़कोदिया, एमओ, नागरिक अस्पताल, नारनौल।