पंचकर्मा विभाग में थैरेपी लेने के लिए मरीजों को करनी पड़ रही जेब ढीली
जागरण संवाददाता कुरुक्षेत्र श्रीकृष्णा राजकीय आयुर्वेदिक अस्पताल के पंचकर्मा विभाग में थैरेपी

जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र
श्रीकृष्णा राजकीय आयुर्वेदिक अस्पताल के पंचकर्मा विभाग में थैरेपी कराने के नाम पर मरीजों को जेब ढीली करनी पड़ रही है। दूसरे राजकीय अस्पतालों में जहां बीपीएल मरीजों को उपचार निशुल्क मिलता है वहीं श्रीकृष्णा आयुष विश्वविद्यालय के अंतर्गत कालेज स्थित अस्पताल में कोई फर्क नहीं समझा जा रहा। यहां आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों तक को पंचकर्मा थैरेपी लेने के लिए पैसे देने पड़ रहे हैं। इतना ही नहीं पैसे लेने के बाद भी थैरेपी देने के लिए मरीजों को अपने पास से तेल, काढ़े और आटा गूंदकर लाना पड़ रहा है। इन चार्जिज को हटाने के लिए शिक्षक के मार्गदर्शन में विद्यार्थियों ने श्रीकृष्णा आयुष विश्वविद्यालय कुलपति डा. बलदेव धीमान को ज्ञापन भी सौंपा लेकिन समस्या का हल नहीं हुआ। पंचकर्मा शिक्षक डा. अशोक राणा ने कहा कि कुलपति के आश्वासन के बाद भी समस्या का हल नहीं हुआ, बल्कि उसके बाद से कुलपति मिलने तक का समय नहीं दे रहे। मरीजों के हित में उपचार के पैसे नहीं लेने चाहिए : डा. अशोक राणा
डा. अशोक राणा ने कहा कि प्रदेश भर के राजकीय अस्पतालों में आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों को निशुल्क इलाज मिलता है। मगर श्रीकृष्णा आयुर्वेदिक अस्पताल में थैरेपी का पैसा बीपीएल मरीजों को भी देना पड़ रहा है। इतना ही नहीं मरीज पैसे भी दे रहे हैं और अपने साथ थैरेपी देने के लिए कषाय और तेल भी लाने पड़ रहे हैं। ऐसा कहां पर होता है कि मरीज को पैसे भी देने पड़े और दवाएं भी घर से लेकर आनी पड़े। मरीजों के साथ यहां पर गलत हो रहा है। यहां पर भावी चिकित्सकों को प्रेक्टिस के लिए मरीजों की जरूरत होती है। जहां पर चिकित्सक के सान्निध्य में भावी चिकित्सक इलाज कर सकें। विद्यार्थियों के हित में मरीजों से उपचार के पैसे नहीं लेने चाहिए, क्योंकि जितने ज्यादा मरीजों का उपचार यहां पर होगा भावी चिकित्सकों को उतना ही ज्यादा सीखने का मौका मिल सकेगा। कुलपति के पास मिलने का समय नहीं : डा. राणा
राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय शिक्षक संघ के प्रधान डा. अशोक राणा ने बताया कि वे जब भी कुलपति से मिलने के लिए जाते हैं उनके कर्मचारी कार्यालय में होने की बात नहीं करते। सायं को कुलपति अपने कार्यालय में बैठकर मरीजों का इलाज करते हैं, जबकि प्रदेश भर के महाविद्यालयों के विद्यार्थियों और शिक्षकों की समस्या सुनने के लिए उनके पास समय नहीं है। उनका समाधान कौन करेगा।
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