वैशंपायन ने सुनाई थी जनमेजय को महाभारत कथा
जागरण संवाद केंद्र, कुरुक्षेत्र :
कृष्ण अर्थात वह सभी जो आकर्षक हैं। वह उन सभी में समाहित है जो सौंदर्यपूर्ण, महक व शाश्वत है। कृष्ण ही जगत की सृष्टि , स्थिति एवं प्रलय के कारण हैं तथा वही सृष्टि के आदि, अन्त एवं मध्य हैं। महाभारत के महानायक एवं श्रीमद्भगवद्गीता के दृष्टात श्रीकृष्ण को समर्पित है कुरुक्षेत्र का श्रीकृष्ण संग्रहालय। श्रीकृष्ण संग्रहालय में नव निर्मित महाभारत एवं गीता गैलरी की विषय वस्तु से जन सामान्य को जोड़ने की दृष्टि से महाभारत के अट्ठारह पर्वों के मुख्य कथा प्रसंगों को गीता जयंती के अवसर पर पर प्रचार एवं प्रसार के लिए प्रकाशित किया जा रहा है। यहा महाभारत के उन प्रसंगों का विवेचन प्रस्तुत किया जायेगा जिनके प्रदर्श संग्रहालय की महाभारत गैलरी में मौजूद हैं। महाभारत के अट्ठारह प्रसंग पाठकों को संग्रहालय की महाभारत गैलरी देखने के लिए प्रेरित करेंगे।
जनजेमय के नाग की कथा महाभारत के आदि पर्व में आस्तीक पर्व के अंतर्गत आती है। महाराज परीक्षित शिकार खेलने वन में गए, वहा शिकार खेलते हुए एक मृग राजा के बाण से घायल हो कर उनके दृष्टिपथ से ओझल हो गया। मृग की खोज करते राजा अत्यधिक घने जंगल में जा पहुचे, उन्होंने समाधिस्थ महर्षि शमीक को देखा। राजा बहुत अधिक थके हुए एवं प्यास से पीड़ित थे, उन्होंने महर्षि शमीक से उस आहत मृग के विषय मे पूछा , लेकिन महर्षि ने ध्यानस्थ होने के कारण एक बार भी राजा के प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। तब उसने भूख एवं प्यास से दुखी होने के कारण राजा ने एक मरे हुए सर्प को उठाकर महर्षि के कन्धों पर डाल दिया। तत्पश्चात वे राजधानी लौट आए। महर्षि शमीक के श्रृंगी नामक पुत्र ने जब अपने मित्रों से महाराज परीक्षित द्वारा अपने पिता के अपमान की बात सुनी तो क्रोधावेश में आकर उसने महाराज परीक्षित को शाप दिया कि जिसने मेरे पिता के कंधे पर मृतक सर्प डाला है, उस व्यक्ति की मृत्यु आज से ठीक सातवें दिन तक्षक नाग के डसने से हो जाएगी। अनेक सावधानिया बरतने के बाद भी सातवें दिन तक्षक नाग के डसने से महाराज परीक्षित की मृत्यु हो गई। पिता के देहान्त से व्याकुल महाराज परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने पिता की मृत्यु का बदला तक्षक से लेने के उद्देश्य से संपूर्ण नागजाति को नष्ट करने के लिए ऋषियों एवं ब्राह्मणों के परामर्श से सर्पदमन नामक यज्ञ किया। मंत्रों के चमत्कारिक प्रभाव से बडे़-बड़े शक्तिशाली सर्प यज्ञ कुण्ड में आकर गिरने लगे। संपूर्ण वातावरण विषैला हो उठा, तब अपनी मृत्यु के भय से भयभीत हुआ तक्षक इंद्र की शरण में गया। पहले तो इंद्र ने तक्षक को निर्भय रहने को कहा, लेकिन जब मंत्रों के प्रभाव से स्वयं इंद्र तक्षक सहित यज्ञ कुण्ड में गिरने ही वाले थे कि जरत्कारु ऋषि के पुत्र आस्तीक के कहने पर यज्ञ रोक दिया गया। इस यज्ञ के पश्चात ही वैशंपायन ने राजा जनमेजय को महाभारत की कथा सुनाई। महाभारत की इस कथा के प्रसंगों को कई एपीसोड में चित्रों के माध्यम से श्रीकृष्ण संग्रहालय की महाभारत गैलरी में प्रदर्शित किया जा रहा है।
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