गुजरात का प्रभास क्षेत्र मुख्य प्रदर्श के लिए चुना
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जागरण संवाद केंद्र, कुरुक्षेत्र
श्रीकृष्ण संग्रहालय में इस वर्ष महाभारत से संबंधित पुरास्थलों को 'एक्जीबीट्स ऑफ द मंथ' की श्रृंखला में प्रदर्शित किया जा रहा है। इसी श्रृंखला में माह नवंबर के लिए प्रभास क्षेत्र (गुजरात) को मुख्य प्रदर्श के लिए चुना गया है।
गुजरात के सौराष्ट्र में अरब सागर से लगता हुआ तटवर्ती क्षेत्र प्रभास या प्रभास पाटन के नाम से प्रसिद्ध है। महाभारत में इसे देवतीर्थो में गिना गया है। भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिगों में से एक सोमनाथ नामक ज्योर्तिलिंग के इस क्षेत्र में स्थित होने के कारण इसे सोमतीर्थ भी कहा गया जाता है। महाभारत के आदि पर्व के अनुसार इस तीर्थ में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भी तपस्या की थी। तीर्थयात्रा के अवसर पर यहीं अर्जुन की भेंट भगवान श्रीकृष्ण से हुई थी। कहा जाता है कि इस क्षेत्र में अगिन् का वास है। इस तीर्थ के सेवन एवं स्नान से मानव को अतिरात्र एवं अगिन्ष्टोम यज्ञ का फल मिलता है। तीर्थयात्रा के समय भाइयों सहित युधिष्ठिर भी यहा आये थे। यह पुण्य क्षेत्र पाप नाशक माना जाता है।
महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद इसी तीर्थ में यदुवंशी आपस में लड़े थे जिसमें लगभग सारे यदुवंशियों का विनाश हुआ था। लौकिक आख्यानों के अनुसार इस गृह युद्ध में करोड़ों युदवंशी मारे गए थे। धीरे-धीरे इसने भयानक युद्ध का रूप ले लिया था। संयाग से साम्ब के पेट से निकले मूसल को जब भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से रगड़ा गया था तो उसके चूर्ण को इसी तीर्थ के तट पर फेंका गया था जिससे उत्पन्न हुई झाड़ियों को यादवों ने एक-दूसरे को मारना शुरू किया था। ऋषियों के श्राप से उत्पन्न हुई इन्हीें झाडि़यों ने तीक्ष्ण अस्त्र-शस्त्रों का काम किया ओर सारे प्रमुख यदुवंशियों का यहा विनाश हुआ। महाभारत के मौसल पर्व में इस युद्ध का रोमाचकारी विवरण है। सारे यादव प्रमुख इस गृह युद्ध में मारे गए। अन्त में आज के भालका तीर्थ कहे जाने वाले स्थल पर जब भगवान श्रीकृष्ण लेटे हुए थे, तो जरा नामक एक शिकारी ने भगवान श्रीकृष्ण के हिलते चरण को हिरण समझ कर उनके पाव के तलवे को अपना निशाना बनाया। शिकारी का यही भूलवश प्रहार भगवान श्रीकृष्ण के परमधाम सिधारने का कारण बना।
इस प्रकार हम देखते है कि प्रभास तीर्थ या प्रभास क्षेत्र अथवा प्रभास पाटन कहलाने वाले इस क्षेत्र का वर्णन महाभारत में उपलब्ध है तथा ऐतिहासिक कालों में भी इस क्षेत्र का ऐतिहासिक, सास्कृतिक एवं धार्मिक महत्व बरकरार रहा।
इसी प्रभास क्षेत्र में ही भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक सोमनाथ का ज्योर्तिलिंग स्थित है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार क्षय रोग से ग्रस्त चन्द्रमा ने यहीं भगवान शिव की अराधना कर स्वास्थय लाभ प्राप्त किया था।
प्रभास क्षेत्र में ही महाभारत कालीन भालका तीर्थ है। कहा जाता है कि इसी स्थल पर जरा नामक शिकारी का बाण भगवान श्रीकृष्ण के पॉंव में लगा था। भालका तीर्थ प्रसिद्ध सोमनाथ मन्दिर से लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित है। यहा तीर्थ महाप्रभुजी की बैठक भी कहलाता है। जिस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण को बाण लगा था वहा पर एक पीपल वृक्ष है।
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