कथा में सुनाया वराह अवतार प्रसंग
जागरण संवाद केंद्र, कुरुक्षेत्र : श्रीअखंड गीतापीठ शाश्वत सेवाश्रम में आयोजित श्रीमदपितरमोचनी भागवत कथा में कथाव्यास डॉ. शाश्वतानंद गिरि ने भागवत के दस लक्षण का विस्तार से व्यख्यान किया। उन्होंने ब्रह्मा जी की उत्पत्ति एवं सृष्टि का विस्तार, वराह अवतार, विष्णु द्वारपाल जय-विजय को सनकादि का श्राप, हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष का जन्म, देवाहुति के साथ कर्दम प्रजापति का विवाह प्रसंगों के साथ सति अनुसूइया की तपस्या और उनके प्रताप से ब्रह्मा, विष्णु, महेश को शिशु बनाने उपकथा गुणगान किया।
कथा के यजमान बलवंत राय गोयल व डॉ. विजय भारद्वाज ने सर्वदेव और पितृ पूजन करवाया। कथा प्रवचनों में शाश्तानंद ने कहा कि जब सनकादिक ऋषियों ने बैकुंठ धाम के द्वारपालों जय और विजय को तीन-तीन जन्म होने तक राक्षस होने का श्राप देकर भगवान विष्णु के हाथों मृत्यु होकर उद्धार का उपाय बताया। सतयुग में भगवान ने हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु का उद्धार करने के लिए वाराह और नरसिंह का अवतार लिया। त्रेता युग में यही जय-विजय रावण और कुंभकरण बन कर आए जो श्रीराम के हाथों मृत्यु को प्राप्त हुए। द्वापर युग में कंस और शिशुपाल बने तो श्रीकृष्ण के हाथों इनका उद्धार हुआ। इस तरह तीन जन्मों के पश्चात जय-विजय पुन: बैकुंठ धाम में भगवान विष्णु के पार्षद के रुप में लौट आए। कथा के दौरान सुनाए गए भजनों पर श्रद्धालु झूम उठे। कथा की आरती में सत्यानंद महाराज, सत्यप्रेम जिज्ञासु, कमल भारद्वाज, हरिद्वार से निधिश तिवारी, अवधेश कुमार, ज्ञान सिंह, सुदामा, मधु शर्मा, सावित्री, निर्मल देवी और सुदेश गोयल ने भाग लिया।
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