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    श्रीआदि ग्रंथ की रचना अनुपम गुरु रूप ग्रंथ : मांडी

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    Updated: Tue, 22 May 2012 07:23 PM (IST)

    लाडवा, संवाद सहयोगी : माडी डेरा के संत बाबा गुरविंद्र ¨सह ने कहा कि गुरु अर्जुन देव जी ने श्री आदि ग्रंथ की रचना कर विश्व को एक अनुपम गुरु रूप ग्रंथ प्रदान किया है। उन्होंने कहा कि पंचम पातशाह ने अपने पहले के चार गुरुओं तथा समकालीन संतों की वाणी का प्रामाणिक पाठ पूछ-पूछ कर तैयार किया, जिनमें लगभग 15 हजार से अधिक बंद और तीन हजार के लगभग शब्द शामिल है। इन रचनाओं को संग्रहीत और संकलित कर उन्होंने श्री आदि ग्रंथ की रचना की।

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    संत बाबा गुर¨वद्र सिंह महाराज मंगलवार को लाडवा में पत्रकारों को जानकारी दे रहे थे। उन्होंने बताया कि श्री आदि ग्रंथ में पांच गुरु साहिबान की वाणी के साथ-साथ 30 भगतों, भटों व सिखों की वाणी संग्रहीत की गई। इसमें बाद में दशम गुरु गोबिंद ¨सह जी ने नौवें गुरु तेग बहादुर की वाणी भी शामिल की। श्री आदि ग्रंथ साहिब में कुल 5894 शब्द है, जिनमें से 2218 शब्दों के रचयिता स्वयं पंचम पातशाह हैं। गुरु ग्रंथ साहिब जी में 305 अष्टपदियां, 145 छंद, 22 वारे, 471 पौड़ी संग्रहीत है। उन्होंने ने बताया कि समस्त वाणी गायन के लिए है, जिसे 31 रागों में गायन करने का विधान है। इसमें प्रमुख विशेषता यह कि शब्द का गायन किस राग में किया जाए उस का उल्लेख भी साथ किया गया है। इस महान ग्रंथ की पृष्ठ संख्या 1430 है। उन्होंने बताया कि इस पवित्र ग्रंथ का संपादन करने में गुरु अर्जुन देव जी को तीन वर्ष का समय लगा था। गुरु ग्रंथ साहिब जी का प्रकाश श्री हरिमंदिर साहिब में 16 अगस्त 1604 में किया गया था। इस अवसर पर कुलदीप ¨सह, लवजोत ¨सह, गुलाब ¨सह, जसविंद्र ¨सह, सतनाम ¨सह, लखबीर ¨सह उपस्थित रहे।

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