तोता कहानी नाटक ने दिखाया शिक्षा जगत का सच
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कुरुक्षेत्र, जागरण संवाद केंद्र : गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर द्वारा कई दशकों पूर्व लिखी गई कहानी तोता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितने गुरुदेव के समय में थी। ये शब्द कुवि हिदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुभाष ने कहे। वे मल्टी आर्ट कल्चरल सेंटर में नाटक तोता कहानी के मंचन के बाद दर्शकों से बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज की स्कूल की बड़ी-बड़ी इमारतें गुरुदेव की कहानी में दर्शाए सोने के पिंजरे की तरह ही है। डॉ. सुभाष ने कहा कि आज शिक्षा में मूलभूत परिवर्तन की आवश्यकता है ताकि तोते जैसे कोमल आज के स्कूली बच्चे कहीं इन सोने के पिंजरों में अपना बचपन, अपनी मासूमियत और अपनी सारी प्रतिभा न भूल बैठे। उन्होंने कहा कि शिक्षा का मतलब मात्र सौ फीसदी अंक हासिल करना नहीं है बल्कि अपने आस-पास के सामाजिक, सास्कृतिक, राजनीतिक एवं आर्थिक परिवेश को समझने की सूझबूझ हासिल करना शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए।
चंडीगढ से आए कलाकारो ने जहा अपनी अद्भुत प्रस्तुति से दर्शकों को अचंभित कर दिया वहीं जब नाटक के निर्देशक ने जुल्फीकार ने बताया कि मंच पर अभिनय करने वाले ये सभी कलाकार आज से कुछ साल पहले बूट पॉलिश करते थे, कूड़ा बीनते थे, चाय या ढाबे पर काम करने को मजबूर थे और जिनका शिक्षा से दूर दूर का भी वास्ता नहीं था। किंतु आज नाटक करने के साथ-साथ ये बच्चे न केवल अभिनय में निपुणता हासिल कर रहे है बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी अपनी बेहतरीन प्रस्तुति दे रहे है। जुल्फीकार ने बताया कि इन्हीं बच्चों में से 16 बच्चे ऐसे है जो मेडिकल और नॉन मेडिकल की पढ़ाई कर रहे है, कुछ इजीनियरिंग की और कुछ बच्चे तो चंडीगढ़ आर्ट कॉलेज से बीएफए कर रहे है। इसके अलावा बहुत से बच्चों ने कई अच्छे मुकाम हासिल किए है। उन्होंने बताया कि कोई बूट पॉलिश करने वाला बच्चा सोच भी नहीं सकता कि एक दिन वह इजीनियरिग की पढ़ाई करेगा। किंतु थियेटर ने इसे संभव बनाया। 1992 में स्थापित चंडीगढ़ की संस्था थियेटर ऐज गु्रप ने ऐसे 50 बच्चों को अपने साथ जोड़ा और उन्हे न सिर्फ नाटक करना सीखाया बल्कि उन्हे पढ़ाई करने के लिए भी प्रेरित किया।
चंडीगढ़ से आए इन्हीं नन्हे कलाकारों ने मल्टी आर्ट कल्चरल सेंटर के ओपन एयर थियेटर में गुरु रविंद्र नाथ टैगोर की कहानी तोता पर आधारित नाटक तोता कहानी का मंचन किया। शिक्षा व्यवस्था पर आधारित इस नाटक में आज की शिक्षण पद्धति पर व्यंग्य है कि आज कैसे शिक्षा साधनों पर तो विशेष जोर दिया जा रहा है किंतु शिक्षा हासिल करने वाले बच्चों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।
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