घाटे की मार ने कम कर दी बासमती की महक
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : वर्ष 2013 में बासमती के दामों ने किसानों को मालामाल कर दिया था, वही ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र :
वर्ष 2013 में बासमती के दामों ने किसानों को मालामाल कर दिया था, वहीं दो वर्षो से दाम में आई गिरावट के बाद लगातार बासमती की महक किसानों के लिए अच्छी नहीं रही। लगातार हो रहे घाटे का असर इस बार बासमती पर पड़ता दिखाई दे रहा है। इसकी बानगी किसानों की ओर से बीजी जाने वाली धान की पनीरी से ही लगने लगती है। हो सकता है कि इस बार पिछले वर्षों की अपेक्षा क्षेत्र में आधी बासमती लगे। जिससे क्षेत्र के निर्यात पर सीधा असर होना संभावित है। अगर ऐसा हुआ तो भाजपा सरकार के उद्योगों को बढ़ावा देने के सपने को भी धक्का लगेगा।
देश में करनाल और कुरुक्षेत्र को धान का कटोरा कहा जाता है। सबसे बड़ी बात यहां की बासमती धान की है। जिसमें से महक आती है और विदेशों में इसकी ही कीमत है। इसका बड़ा हिस्सा विदेशों में निर्यात किया जाता है। जिससे देश को करोड़ों डालर की आय होती है, लेकिन पिछले दो वर्षो से क्षेत्र के किसानों को बासमती की महक शायद रास नहीं आ रही है। आलम ये है कि कभी पीआर को नजदीक भी नहीं आने देने वाली बासमती आज घाटे का सौदा बन गई है। वर्ष 2013 में बासमती के मंडी के दाम छह हजार रुपये से साढ़े सात हजार रुपये तक पहुंच गया था। जिसको देखते हुए क्षेत्र के लोगों ने वर्ष 2014 में इसका क्षेत्र भी बढ़ा दिया था, लेकिन वर्ष 2014 में खुशबुदार बासमती की कम हो गई और दाम आधे से भी कम यानि तीन हजार पर आ डटे। यहां तक किसानों को फायदा नहीं तो घाटा नहीं हो पाया था, लेकिन नुकसान यहां तक नहीं रुका और वर्ष 2015 में मंडियों में इस महकदार धान की दुर्गति सभी को याद है। कभी अमीरों की शान रही बासमती की महक गरीबों की झोपड़ी से भी आने लगी थी, ऐसा नहीं था कि गरीबों के पास इतने पैसे आ गए थे कि वो बासमती को खरीद सकते थे बल्कि इसलिए कि बासमती का दाम गरीबों की पहुंच में आ गया था। ऐसे में किसानों को मोटा नुकसान हुआ। अब किसानों को बासमती के नाम से भी डर लगने लगा है। इसलिए बीज की दुकानो पर बासमती की बजाए पीआर यानि मोटी धान के बीज के खरीददार बढ़ रहे हैं।
वर्ष 2013-14 में बढ़ा था बासमती का रकबा
जिले में वर्ष 2013-14 में बासमती का क्षेत्र बढ़ा था। करीब 50 प्रतिशत क्षेत्र में बासमती की किस्में लगती थी। एपडा नई दिल्ली के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2013 में कुरुक्षेत्र में लगभग एक लाख 14 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में से 48 हजार 590 हेक्टेयर में बासमती की किस्मों को लगाया गया था। जिसमें किसानों को लाभ भी हुआ था। वहीं वर्ष 2014 में यह क्षेत्र बढ़कर लगभग 60 हजार हेक्टेयर को पार गया था। जिसमें किसानों को घाटा उठाना पड़ा था। वर्ष 2015 के आंकड़े कृषि विभाग जुटा नहीं पाया है। इसके अलावा कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि 2015 में भी बासमती का क्षेत्रफल घटा था, लेकिन इतना नहीं। इस बार किसानों को बासमती से डर लगने लगा है। किसान सुरेश कुमार, गोपाल चौहान, हाकम ¨सह उदारसी का कहना है कि बासमती के कारण किसानों को घाटा हुआ है। इसके कारण इस बार किसान बासमती से दूर भाग रहे हैं।

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