अपनी शक्ति को पहचाना तथा औरों को भी दी प्रेरणा : सरिता कौशिक
जतिंद्र ¨सह चुघ, शाहाबाद अपनी शक्ति को ही नहीं पहचाना, बल्कि एक मुकाम पर पहुंचने के बाद उन युवाओं ...और पढ़ें

जतिंद्र ¨सह चुघ, शाहाबाद
अपनी शक्ति को ही नहीं पहचाना, बल्कि एक मुकाम पर पहुंचने के बाद उन युवाओं और महिलाओं को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा दी, जिसके मन में कुछ करनी की इच्छा थी। वे अपनी ड्यूटी के बाद भी शिक्षण का धर्म निभाती रहीं। इसी का परिणाम है कि उनसे शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र कोई चिकित्सक, इंजीनियर है, एयरफोर्स में रहकर समाज व देश की सेवा कर रहा है।
..अगर महिलाएं अपनी सोच को मजबूत रखें तो चुनौतियां खुद ही अपना रास्ता बदल लेती हैं और चुनौतियों को परास्त करने वाली वही सोच फिर किसी तेग की धार तरह संघर्ष के रूप में निखर सामने आती है। यह कहना है शाहाबाद के डीएवी शताब्दी स्कूल की प्राचार्या सरिता कौशिक का जो यह मानती है कि भारतीय समाज में स्त्रियां कभी की भी कमजोर न थीं। प्राचीन रीति-रिवाजों, परपंराओं को निभाते हुए स्त्रियों ने त्याग किया व धर्म निभाया है लेकिन समाज ने उनकी इसी कर्तव्य निष्ठा पर कमजोरी की मुहर लगा दी।
सरिता कौशिक का कहना है कि प्राचीन समय में ही झांसी की रानी जैसी महिलाओं ने देश की आजादी के लिए संघर्ष किए हैं और अगर बीती युगों की बात करें तो माता सीता जैसी देवियों ने भी त्याग व धर्म के लिए प्राण न्योछावर किए हैं। प्राचार्या सरिता कौशिक समाज की वह सरीखी शख्सिअत हैं, जिन्होंने उस समय में अध्यापक बनने का सपना संजो लिया था जब जमाने में बेटियों का स्कूल जाना समाज के लोगों को मंजूर नहीं था। सरिता कौशिक ने प्राचीन समाज की रूढि़वादिता को पछाड़ते हुए मुंबई के स्कूल से शिक्षा के सफर को शुरू किया, फिर कभी भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। सरिता कौशिक का कहना है कि उन्हें अपने माता-पिता का पूरा सहयोग रहा, क्योंकि उनके माता पिता ने लोगों की बातों की कोई परवाह नहीं की, बल्कि हर कदम पर अपनी बेटी को सहारा दिया। बस इस सहारे के साथ ही सरिता कौशिक ने एमएसई मैथेमेटिक्स, एमएसई केमिस्ट्री, एमएस एजूकेशन के साथ ही कई डिग्रियां हासिल की। सरिता कौशिक का कहना है कि जब उन्होंने यह डिग्रियां हासिल को तो उनके ग्रुप में वह अकेली महिला थीं, लेकिन उन्होंने कभी भी स्वयं को कमजोर नहीं समझा बल्कि ग्रुप में भी अव्वल आती रहीं। शिक्षा के इस सफर के बाद सरिता कौशिक ने शिक्षण का कार्य शुरू कर दिया तथा स्कूल के साथ-साथ घर पर निश्शुल्क पढ़ाना शुरू कर दिया। उन्होंने बताया कि वर्ष 2002 में उन्होंने सूरजगढ़ में बतौर ¨प्रसिपल डीएवी शताब्दी स्कूल में ज्वाईंनिग की तथा उसके बाद लगातार अलग-अलग प्रदेशों में स्थित डीएवी शिक्षण संस्थानों में बतौर ¨प्रसिपल कार्य जारी रहा। कौशिक कहती है आज उनसे शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र कोई चिकित्सक, इंजीनियर है, एयरफोर्स में रहकर समाज व देश की सेवा कर रहा है। सरिता कौशिक का कहना है कि स्कूल में वह यही चाहती है कि उनके स्कूल का हर विद्यार्थी होनहार बनकर देश व समाज सेवा के लिए एक सफल नागरिक बने। आज भी सरिता कौशिक अपना अधिकतम समय विद्यार्थियों के साथ अपना अनुभव शेयर करने, उन्हें जागरूक करने तथा विशेषकर नारी शिक्षा पर बल देती हैं। आज उनके नेतृत्व में डीएवी शताब्दी स्कूल के विद्यार्थी शिक्षा, हॉकी, खेलों व सांस्कृतिक गतिविधियों में स्कूल व शहर का नाम रोशन कर रहे हैं।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।