पौराणिक मंदिरों से समाप्त हो रहे भित्ति चित्र
बृजेश द्विवेदी, कुरुक्षेत्र प्राचीन काल से ही भित्ति चित्रों का विशेष स्थान रहा है। मंदिर व महलों
बृजेश द्विवेदी, कुरुक्षेत्र
प्राचीन काल से ही भित्ति चित्रों का विशेष स्थान रहा है। मंदिर व महलों को आकर्षक बनाने में भित्ति चित्रों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जब हम किसी मंदिर या पौराणिक स्थल के दर्शन को जाते हैं तो मंदिर की दीवारों, गुंबद व अंदरूनी हिस्सों में बने देवी-देवताओं के भित्ति चित्र देखने के बाद उनसे संबंधित पूरी घटना मन में अंकित हो जाती है।
विडंबना है कि पौराणिक मंदिरों के नवीनीकरण के नाम पर इन भित्ति चित्रों को नष्ट किया जा रहा है। जो बचे हैं वह भी नष्ट होने के कगार पर हैं। इन भित्ति चित्रों को बचाकर मंदिरों और पुरातन स्थलों के आकर्षण को बचाया जा सकता है जो कि निसंदेह पर्यटकों के भी आकर्षण का केंद्र होंगे।
चित्रकला मानव की कलात्मक अभिव्यक्ति का सबसे प्राचीन माध्यम माना जाता है। प्राचीन काल से ही मानव ने उन गुफाओं की भित्तियों पर चित्र बनाने शुरू किए जिनमें वह निवास करता था। बाद में उसने शिलाओं एवं पत्थरों पर कोयले या गेरु जैसे प्राकृतिक रंगों की सहायता से चित्र बनाए जिनमें मुख्यत: आखेट के दृश्य, सामूहिक भोजन, नृत्य आदि की प्रधानता दिखती हैं।
कालांतर में मानव सभ्यता के विकास के साथ उसने अन्य प्राकृतिक रंगों से शिलाओं की सतह को समतल बनाकर चित्र बनाने शुरू किए। यह चित्र आज शिलाचित्र कहलाते हैं।
भारत में भी भित्ति चित्रकला प्राचीन काल से ही अस्तित्व में आ गई थी। भीमबेटका तथा मिर्जापुर से भी इस प्रकार के कई चित्र मिले हैं। सभ्यता के विकास के साथ भित्ति चित्रों के निर्माण में भी नई तकनीकें अपनाई जाने लगीं। ऐतिहासिक काल में राजमहलों, मंदिरों, मानव निर्मित गुफाओं व अन्य व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक भवनों की भित्तियों व छतों पर धार्मिक व धर्म निरपेक्ष चित्र बनाने की परंपरा चल पड़ी जो समय व स्थान विशेष की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं सामाजिक परंपराओं को स्वयं में समेटती रही।
48 कोस कुरुक्षेत्र भूमि जिसे आज महाभारत की रणस्थली तथा धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है, ऐतिहासिक कालों में कलात्मक गतिविधियों के केंद्र के रूप में भी प्रसिद्ध थी। स्थापत्य कला के साथ यहां के मंदिरों, हवेलियों, चौपालों आदि की भित्तियों व छतों पर भित्ति चित्र बनाने की परंपरा रही है। 48 कोस कुरुक्षेत्र भूमि जो कि आज हरियाणा के कुरुक्षेत्र, कैथल, करनाल, जींद व पानीपत जिलों में विस्तृत है, के मंदिरों में उत्तर-मध्य कालीन भित्ति चित्र आज भी देखने को मिलते हैं। लेकिन मंदिरों के आधुनिकीकरण के नाम पर कई मंदिरों की यह धरोहर नष्ट होने के कगार पर है। यहां स्थित तीर्थ मंदिरों के भित्ति चित्रों में रामायण, महाभारत एवं पौराणिक आख्यानों की प्रधानता है।
इन तीर्थो में कई महत्वपूर्ण मंदिर उत्तर मध्यकालीन वास्तुशिल्प के सुंदर एवं सजीव उदाहरण हैं। इनमें से कुछ मंदिरों में मूर्तिकला के साथ-साथ उत्तर मध्यकालीन भित्ति चित्र भी मिलते हैं। इनमें से दशाश्वमेध तीर्थ, सालवन के बहुस्तंभीय घाट कक्ष में 18वीं सदी के भित्ति चित्रों में रामायण से संबंधित चित्रों का अंकन एवं पराशर तीर्थ, भलोलपुर के भित्ति चित्रों में विष्णु व मुख्यत: शिव से जुड़े अनेक प्रसंगों का चित्रण है।
इसी भूमि में स्थित कुछ हवेलियों की दीवारों पर निर्मित भित्ति चित्रों में धार्मिक एवं लौकिक दोनों विषयों की कथावस्तु पर आधारित चित्रण समसामयिक हरियाणवी भित्ति चित्रकला के अनूठे उदाहरण हैं। अत: महान संास्कृतिक धरोहर के इस अपूर्व कोष की रक्षा करना हम सबका नैतिक कर्त्तव्य बन जाता है।
कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड की बात करें तो वह तीर्थो के सरोवरों के रखरखाव की ही जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा पा रहा, ऐसे में मंदिरों में बने भित्ति चित्रों की तरफ कहां से ध्यान देगा। बहुत से पौराणिक मंदिर ऐसे भी हैं, जिसके देखरेख की जिम्मेदारी वहां के पुजारी व धार्मिक संस्थाओं की है। ऐसे में केडीबी की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।
इसी सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण संग्रहालय में आयोजित निश्शुल्क हॉबी कक्षाओं में स्कूली विद्यार्थियों द्वारा संग्रहालय एवं नगर के कलाविदों के मार्ग दर्शन व सरंक्षण में विलुप्त होती है. इस चित्रकला को काली कमली परिसर व संग्रहालय परिसर के बीच की दीवार पर चित्रित किया गया है। यह एक सराहनीय प्रयास है और प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है कि वह इस तरह के प्रयासों को प्रोत्साहन दे ताकि और भी कला संस्थाएं आगे आएं जो लुप्त होती इस कला को जान फूंकने का कार्य करे। यदि इस कला को प्रोत्साहन दिया जाए तो जहां भित्ति चित्र परंपरा को बचाया जा सकता हैं वहीं इससे जुड़े लोगों को रोजगार भी दिया जा सकेगा।
काउंसिलिंग की जरूरत
पुरातत्ववेताओं का कहना है कि पौराणिक मंदिर और पुरातन स्थल में बने भित्ति चित्रों को बचाने की आवश्यकता है। सैकड़ों साल पुराने भित्ति चित्र आज भी आकर्षण का केंद्र हैं। जिनके ऊपर इन पौराणिक मंदिरों व पुरातन स्थलों के रखरखाव की जिम्मेदारी है उनको काउंसिलिंग की जरूरत है। उन्हें यह बताने की आवश्यकता है कि इन भित्ति चित्रों का क्या महत्व है। उनको समझाने की जरूरत है कि ये भित्ति चित्र भारत की समृद्ध प्राचीन विरासत का अभिन्न अंग हैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।