भगवान चैतन्य कलियुग में राधा-कृष्ण के अवतार
जासं, कुरुक्षेत्र : गोडिया मठ प्रभारी प्रपंन कृष्ण दास ने कहा कि मुगल शासकों अर्थात औरंगजेब आदि के वृंदावन धाम स्थलों पर बार बार आक्रमणों से आंतकित ब्राह्माणों ने अपने विग्रह के साथ वहां से पलायन कर दिया। राधा मदन मोहन, राधा गोपीनाथ, राधा गोबिंद, राधा दामोदार व राधा विनोद की सेवा आज भी राजस्थान के राजपरिवारों के प्रेममयी अधिकार में है ऐसी ही कथा नाथ जी विग्रह की है।
प्रपंन कृष्ण दास शुक्रवार को गोडिया मठ में आयोजित कथा प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि एक बार भगवान चैतन्य महाप्रभु कलियुग में राधा कृष्ण के संयुक्त अवतार है उसके परम गुरु महाराज माघवेंद्र पुरी पाद को स्वप्नादेश हुआ कि भगवान नाथ जी का विग्रह काफी अंतराल से धरती के गर्भ में ब्राह्माणों द्वारा यवनों के डर से छिपाया गया है। माघवेंद्र पुरीपाद को उस विग्रह को सेवा करने की आज्ञा हुई। उन्होंने ब्रजवासियों के सहयोग से जातीपुरा में भगवान का सुंदर मंदिर बनाकर सेवा आरंभ कर दी। श्री नाथ जी ने एक बार फिर स्वप्न में आदेश दिया कि नीलांचल जाकर चंदन और कपूर लाओ और मेरे शरीर का ताप शीतल करो। माघवेंद्र पुरीपाद गोवर्धन से पैदल यात्रा करते हुए जगन्नाथपुरी गए और वहां के ब्राह्माणों की सहायता से कपूर और चंदन एकत्रित किया। वापस लौटते हुए भगवान को फिर स्वप्न में आदेश दिया कि रास्ते में डाकू मूल्यामान चंदन को लूट लेंगे वह उड़ीसा के प्रसिद्ध साक्षी गोपाल मंदिर में इस सामग्री से सेवा करने पर वे संतुष्ट हो जाएंगे। माघवेंद्र पुरीपाद ने आज्ञा का पालन किया। तब से आज तक गोडिया वैष्णव समाज के हर कृष्ण मंदिर में अक्षय तृतीय से अगले 21 दिन तक भगवान के संपूर्ण शरीर पर गंगाजल, गुलाब जल, अगरू व अन्य सुगंधित तेलों से मीश्रिम चंदन का लेप किया जाता है और फूलों का भव्य श्रृंगार किया जाता है। इस श्रृंगार दर्शन का विशेष अध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है।

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