हरनंदी के भात ने नम की दर्शकों की आखें
जागरण संवाद केंद्र, कुरुक्षेत्र
विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर स्थानीय जागड़ा धर्मशाला में मल्टी आर्ट कल्चरल सेंटर द्वारा हरियाणवी साग नरसी का भात की कहानी ने दर्शकों को भावविहोर कर दिया। सागी धर्मबीर की प्रस्तुति देख दर्शकों की आंखें भी नम हो गई।
सागी धर्मबीर द्वारा पेश किए गए साग नरसी का भात की कहानी जूनागढ़ गुजरात के सेठ नरसी के घर से शुरू होती है। जूनागढ़ में एक सेठ के चार लड़के थे, जिनमें एक लड़के का नाम नरसी होता है। जब चारों लड़के अपने परिवार से अलग होते है तो प्रत्येक के हिस्से ग्यारह सौ करोड़ की संपत्ति आती है। नरसी बेहद कंजूस प्रवृत्ति का होता है। एक समय जूनागढ़ के कुछ लोग परिवार सहित गंगा स्नान के लिए जाते हैं। उनमें से कुछ महिलाएं नरसी की पत्नी को भी गंगा स्नान के लिए तैयार कर लेती है। नरसी की पत्नी को भी गंगा स्नान के लिए तैयार कर लेती है, किंतु नरसी इस शर्त के साथ जाने के लिए तैयार हो जाता है कि वह गंगा स्नान के दौरान एक नया पैसा भी दान नहीं करेगा। किंतु जब नरसी गंगा स्नान के लिए गंगा में उतरते है तो भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण का वेश धारण करके नरसी से दान मागने आ जाते है। किंतु नरसी बिना स्नान किए उस घाट से दूसरे घाट पर चले जाते है और ब्राह्मण का भेष धारण किए भगवान श्रीकृष्ण भी उन्हे हर घाट पर मिलते है। ऐसे में नरसी गंगा किनारे बहुत दूर स्थित एक घाट पर स्नान के लिए चले जाते है। उक्त ब्राह्मण भी वहीं पहुच जाता है। ब्राह्मण नरसी को कहता है कि नरसी तुम्हे दान तो करना ही पड़ेगा। ऐसे में नरसी ब्राह्मण से कहता है कि मैं सिर्फ एक धैला दान कर सकता हू और वह भी ब्राह्मण को उसके घर आकर लेना पड़ेगा। ब्राह्मण नरसी की बात मान लेता है और कुछ दिनों बाद नरसी के राज्य में पहुच जाता है। नरसी ब्राह्मण से मिलने में आना कानी करता है तो ब्राह्मण भी नरसी से मिलने का हट कर लेता है। ऐसे में नरसी स्वयं को मृत घोषित कर अर्थी पर बैठ श्मशान की ओर चल देता है। जब ब्राह्मण वहा भी पहुच जाता है। जब नरसी की चिता को अगन्ी देने लगते है तो ब्राह्मण बने श्रीकृष्ण अपने असली रूप में प्रकट हो जाते है और नरसी को मोह-माया तजने का ज्ञान देते है। तब से नरसी अपनी कंजूस वाली प्रवृत्ति को छोड़कर बेहद दयालु और दानी बन जाते है और श्रीकृष्ण की भक्ति में लग जाते है। श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन नरसी भगत अपनी पुत्री हर नंदी की लड़की की शादी में साधुओं के साथ भात में शामिल होते हैं और भगवान कृष्ण भात में अनगिनत समान देते हैं और आसमान से हीरे-जवाहरातों की बरसात होती है, जिसे देखकर सभी दंग रह जाते है।
इस अवसर पर उपभोक्ता फोरम के पूर्व जज एवं लोकपाल श्याल लाल जागड़ा बतौर मुख्यातिथि कार्यक्रम में उपस्थित रहे तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता जागड़ा धर्मशाला के प्रधान सुभाष जागड़ा ने की। कार्यक्रम में मंच संचालन नाथूराम पाचाल द्वारा किया गया।
इस अवसर पर देवीदयाल जागड़ा, राम निवास जागड़ा, हुक्मीराम जागड़ा, जयंत पाचाल, बिसनू दत्त पाचाल, संतोष पाचाल, सोमदत्त पाचाल, हरचरण सिंह चन्नी मुख्य रूप से उपस्थित थे।
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