Wheat New Variety: कम पानी में खेतों में लहलहाएगी गेहूं की फसल, मध्य और पूर्वी भारत के लिए दो किस्में ईजाद
हरियाणा के गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान ने मध्य और पूर्वी भारत के लिए गेहूं की दो नई किस्में विकसित की हैं। इन किस्में की खासियत है कि यह कम पानी में तैयार हो जाएंगी। एक नवंबर से बीज का वितरण शुरू किया जाएगा। पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर बीज बांटा जाएगा। दोनों फसलें 112 से 120 दिनों में दो सिंचाई में ही पककर तैयार हो जाएगी।

करनाल, कपिल पूनिया। Wheat New Variety 2023 गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान ने देश के मध्यवर्ती और पूर्वी राज्यों के लिए गेहूं की दो किस्में विकसित की हैं। इनमें डीडीबी-55 और डीबीडब्ल्यू-316 शामिल हैं। खासियत यह है कि ये अन्य किस्मों की अपेक्षा आधे पानी में तैयार हो जाएंगी। इन्हें मध्य, उत्तरी मध्य प पूर्वी भारत के मौसम के अनुकूल तैयार किया गया है।
डीडीबी-55 मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और गुजरात के लिए सबसे अनुकूल किस्म है। एक नवंबर से बीज का वितरण शुरू किया जाएगा। पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर बीज बांटा जाएगा। दोनों फसलें 112 से 120 दिनों में दो सिंचाई में ही पककर तैयार हो जाएगी।
ऐसे होगी पानी की बचत
संस्थान के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि डीडीबी-55 को भूजल बचाने के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है। इसकी जड़ें अन्य किस्मों से लंबी हैं। इसमें जमीन और वातावरण से नमी सोखने की क्षमता ज्यादा है। दोनों किस्मों में गर्मी सहने की ताकत भी ज्यादा है। मध्य भारत में उत्तरी राज्यों की अपेक्षा ज्यादा तापमान रहता है। यही वजह है कि दोनों किस्मों को वहां के वातावरण में आजमाया गया। प्रयोग सफल रहा है। इस प्रजाति को सामान्य रोगों से लड़ने में सक्षम बनाया गया है। किसानों का खर्च भी कम होगा।
डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि डीबीबी 55 के साथ अन्य किस्मों का भी वितरण होगा। करनाल के साथ भोपाल स्थित संस्थान में भी किस्मों का वितरण किया जाएगा।
अगेती किस्म है डीबीबी-55
आइआइडब्ल्यूबीआर के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि डीबीबी-55 किस्म अगेती है। यह फसल 112 दिन में पककर तैयार हो जाती है। सामान्य तौर पर गेहूं की फसल में चार से पांच पानी लगाने होते हैं। इसके बाद किसान कोई अन्य फसल की काश्त कर सकता है। इससे उसका लाभ भी बढ़ जाएगा।
ऐसे किया गया परीक्षण
कम पानी में गेहूं की फसल उगाने के लिए कृषि विज्ञानियों ने अलग-अलग राज्यों के वातावरण में शोध किए गए। मध्य भारत में पानी की कमी के कारण डीडीबी-55 को विशेष रूप से तैयार किया गया है।
पूर्वी भारत के लिए डीबीडब्ल्यू 316 सबसे उचित
डा. ज्ञानेंद सिंह ने बताया कि पूर्वी भारत के क्षेत्र लिए संस्थान ने डीबीडब्ल्यू 316 प्रजाति विकसित की है। यह प्रजाति बेहतर उपज देने के साथ रोगों से लड़ने में भी सक्षम है। आगामी सत्र से बीज का वितरण किया जाएगा। इसमें भी पानी की कम आवश्यकता होगी।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।