देश में 'मीठी क्रांति' लाने वाली गन्ने की प्रजाति पर संकट, भारी बारिश से लग रहे लाल सड़न और चोटी बेधक जैसे रोग
देश में गन्ना क्रांति के जनक कहलाने वाले डॉ. बक्शीराम ने अपनी कर्मभूमि करनाल में यह उपलब्धि अर्जित की थी। कुछ समय से अन्य गन्ना किस्मों के साथ इस क्रांतिकारी किस्म को भी रोगों की चुनौती से जूझना पड़ रहा है। वैज्ञानिकों ने अनुसंधान में पाया कि अस्वस्थ बीज के प्रयोग से ऐसी स्थिति बनी है। वहीं गन्ना बुआई की प्रक्रिया में भी किसान पूरी सावधानी नहीं बरत रहे हैं।

करनाल, पवन शर्मा। देश में 'मिठास क्रांति' लाने वाली गन्ने की उन्नत वैरायटी 0238 संकट से जूझ रही है। करनाल स्थित गन्ना प्रजनन संस्थान क्षेत्रीय केंद्र ने पद्मश्री डॉ. बक्शीराम के मार्गदर्शन में इस बेहद लोकप्रिय प्रजाति को विकसित किया था। 0238 ने देश में गन्ने की पैदावार और चीनी रिकवरी में अप्रत्याशित वृद्धि की थी। लेकिन कुछ समय से इसमें भी लाल सड़न व चोटी बेधक जैसे रोगों का प्रकोप देखने को मिला है। ये रोग मुख्यत: मानसून सीजन में व्यापक वर्षा के बाद शिकंजा कसते हैं।
उत्तर प्रदेश के पूर्वी व मध्य क्षेत्रों में इसका प्रकोप देखा गया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में भी ऐसी स्थिति है। लिहाजा विशेषज्ञों ने किसानों को सचेत रहने, स्वस्थ बीज का प्रयोग करने और नुकसान से बचने के लिए बीज की अन्य वैरायटी (किस्म) के उपयोग का विकल्प खुला रखने की सलाह दी है।
गन्ना अनुसंधान के क्षेत्र में पद्मश्री डॉ. बक्शीराम ने अतुलनीय योगदान दिया है। वर्ष 2009 में गन्ने की विशेष वैरायटी सीओ-238 विकसित करके उन्होंने किसानों को एक तरह से वरदान दे दिया। इसे करन फोर भी कहा जाता है। आज देश में गन्ने के कुल रकबे में 84 प्रतिशत से अधिक भूभाग पर इसी किस्म को बोया जाता है। इसके प्रयोग से किसानों को अपनी आय बढ़ाने की दिशा में कारगर मदद मिली।
देश में गन्ना क्रांति के जनक कहलाने वाले डॉ. बक्शीराम ने अपनी कर्मभूमि करनाल में यह उपलब्धि अर्जित की थी। कुछ समय से अन्य गन्ना किस्मों के साथ इस क्रांतिकारी किस्म को भी रोगों की चुनौती से जूझना पड़ रहा है। वैज्ञानिकों ने अनुसंधान में पाया कि अस्वस्थ बीज के प्रयोग से ऐसी स्थिति बनी है। वहीं, गन्ना बुआई की प्रक्रिया में भी किसान पूरी सावधानी नहीं बरत रहे हैं, जिससे देश-प्रदेश में गन्ने की पैदावार व गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है। ऐसे में वैज्ञानिकों ने स्वस्थ बीज चयन और विकल्प के रूप में 15023 व 118 जैसी किस्मों को आगे बढ़ाने की सलाह दी है। देश भर में इनका रकबा तेजी से बढ़ रहा है।
पहले भी बन चुकी ऐसी स्थिति
यह पहली बार नहीं है, जब 0238 जैसी उन्नत वैरायटी को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। तीन वर्ष पहले भी मानसून सीजन में व्यापक वर्षा होने और गन्ने के खेतों में पानी जमा होने से इसमे रेड राट जैसी फंगल बीमारी के लक्षण देखे गए थे। आम तौर पर इसका सबसे ज्यादा प्रभाव पूर्वी व मध्य उत्तर प्रदेश और बिहार में देखा जाता है। यह रोग फैला तो किसानों के साथ चीनी उद्योग की मुश्किलें बढेंगी। हालांकि फिलहाल स्थिति नियंत्रित मानी जा रही है।
इस कारण बढ़ती समस्या
-स्वस्थ बीज न अपनाना
-यूरिया या रेत में मिलाकर अनावश्यक दवाओं का प्रयोग
-भूमि शोधन व समय प्रबंधन की अनदेखी
-गन्ने के पूरे हिस्से का बुआई में प्रयोग
-कटाई के समय पोंगले आदि न छोड़ें
ऐसे किया जा सकता है बचाव
-स्वस्थ बीज का ही उपयोग करें
-गन्ने के पेडी प्रबंधन पर पर्याप्त ध्यान दें
-रसायनों या दवाओं का अनावश्यक प्रयोग न करें
-बुआई में गन्ने का ऊपरी हिस्सा ही प्रयुक्त करें
-वैकल्पिक प्रजातियों में 118 या 13023 अपनाएं
उपज और पैदावार बढ़ाने में कारगर देश के जिन पांच राज्यों में सबसे ज्यादा गन्ना पैदा होता है, उनमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड व बिहार शामिल हैं। इनमें पिछले पांच वर्ष के औसत के अनुसार 0238 वैरायटी की मदद से किसानों की उपज में 21 प्रतिशत प्रति हेक्टेयर और पैदावार में ढाई प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि संभव हुई। इसे विकसित करने में दस वर्ष लगे थे। देश में लखनऊ, शाहजहांपुर, मुजफ्फरनगर, पंतनगर, करनाल, लुधियाना, फरीदकोट, श्रीगंगानगर, कोटा आदि में अलग-अलग जलवायु व मिट्टी के क्षेत्रों में इसने गजब की पैदावार दी। देश में गन्ने के कुल रकबे के करीब 84 प्रतिशत भाग में इसे ही प्रयुक्त किया जाता है।
मौसमी परिस्थितियों के साथ ही बीज प्रबंधन व बुआई के तरीकों पर समुचित ध्यान न देने से भी उन्नत किस्में रोगों या कीटों की शिकार बनती हैं। किसानों को स्वस्थ बीज अपनाने के साथ ही भूमि शोधन व पेडी प्रबंधन पर फोकस करना चाहिए। इससे काफी हद तक बचाव संभव है। - पद्मश्री डॉ. बक्शीराम, वरिष्ठ गन्ना विज्ञानी
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