विदेशी हॉट योगा के सामने जगाई भारतीय योग की अलख
योग और ध्यान के प्रति जीवन समर्पित कर चुके 74 वर्षीय पुरुषोत्तम पवन शर्मा करनाल कल्पना कीजिए कि पूरी तरह बंद शीशे के किसी हॉल में हीटर चलाकर खासे ता ...और पढ़ें

पवन शर्मा, करनाल
कल्पना कीजिए कि, पूरी तरह बंद शीशे के किसी हॉल में हीटर चलाकर खासे तापमान पर योग कराया जाए तो कुछ ही देर में पसीने से तरबतर होकर आपका क्या हाल हो जाएगा? ब्रिसबेन व सिडनी सहित आस्ट्रेलिया के कई शहरों में इस चलन को बाकायदा हॉट योगा नाम दिया गया है और इसके लिए लोग वहां सैकड़ों डॉलर का पैकेज तक ले रहे हैं। भारत से गए 74 वर्षीय पुरुषोत्तम अरोड़ा ने यह हाल देखा तो हैरान रह गए। उन्होंने महसूस किया कि ऑक्सीजन रहित हॉल में ऐसा करने से लोगों को लाभ के बजाय नुकसान ज्यादा हो रहा है। लिहाजा, उन्होंने इसके समानांतर न सिर्फ विदेशी सरजमीन पर पार्को या अन्य खुले क्षेत्रों में ओपन योग सेशन शुरू किए बल्कि, आज उनकी यह पहल बड़े मिशन का स्वरूप भी ले चुकी है।
करनाल निवासी पुरुषोत्तम एयरफोर्स व एलआइसी में सेवा दे चुके हैं। अब रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहे पुरुषोत्तम का सक्रियता में प्रबल विश्वास है। इसीलिए, उन्होंने 2006 में हरिद्वार में पतंजलि योगपीठ से गहन प्रशिक्षण लेकर शेष जीवन योग, ध्यान व प्राणायाम की अलख जगाने के प्रति समर्पित कर दिया। बड़े पुत्र विजय फार्मेसी व मंझले राजेश ने चिकित्सा क्षेत्र में करियर बनाकर आस्ट्रेलिया बसने का फैसला किया तो छोटे बेटे धीरज ने कनाडा के टोरंटो में हाउसिग कॉम्पलेक्स का फ्रंटलाइन ऑफिस संभालकर जीवन को नई दिशा दी। पुरुषोत्तम और उनकी सेवानिवृत्त शिक्षिका पत्नी सुमिता अक्सर बच्चों से मिलने विदेश जाते हैं तो वहां भी योग की अलख जगाना नहीं भूलते।
पुरुषोत्तम बताते हैं कि, गहन योग प्रशिक्षण लेने के बाद वह आस्ट्रेलिया गए तो कौतूहलवश वहां योगा क्लास में दाखिला लिया। क्लास में प्रतिदिन एक घंटे तक शीशे के बंद हॉल में हीटर चलाकर उच्च तापमान पर योगा कराया जाता। इससे खूब पसीना बहता, जिसे विदेश में हॉट योगा का नाम देकर टॉक्सिन निकालने की प्रक्रिया कहा जाता है। बेशक, ऐसा जरूर होता है मगर बंद कमरे में इसके अलग नुकसान भी हैं। न शरीर को ऑक्सीजन मिलती है और न प्राकृतिक ऊर्जा। जबकि, हॉट योगा में लोग खुशी-खुशी बीस से लेकर सैकड़ों डॉलर तक चुकाते हैं। लिहाजा, पुरुषोत्तम ने तय किया कि वह खुले में योग प्रशिक्षण देंगे। उन्होंने ब्रिसबेन में संत निरंकारी मिशन के प्रांगण व सिडनी के केलीबेरी पार्क में सत्र शुरू किए, जहां अनेक प्रतिभागी जुटने लगे। कनाडा के टोरंटो स्थित नानकसर गुरुद्वारा परिसर में यही सिलसिला दोहराया तो काफी साधक आ गए। पुरुषोत्तम विदेश जाते हैं तो लोग उनके सत्रों में उमड़ आते हैं। वह भारत से भी वाट्सएप ग्रुप के जरिए विदेशी साधकों को प्रशिक्षित करते हैं जबकि, आस्ट्रेलिया में उनसे प्रशिक्षित दो शिक्षिकाएं योग की अलख जगा रही हैं।
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बनाते थे लड़ाकू विमान
1962 में चीन से युद्ध के बाद भारत ने सैन्य शक्ति बढ़ाने का फैसला किया और बड़े पैमाने पर भर्ती अभियान चलाया तो करियर की राह तलाश रहे पुरुषोत्तम एयरफोर्स में शामिल हो गए। बतौर मैकेनिकल इंजीनियर उन्होंने लड़ाकू विमान तैयार करने वाली टीम में अहम जिम्मेदारी निभाई। बांग्लादेश से युद्ध हुआ तो ढाका पर इन्हीं विमानों ने खूब उड़ान भरी। 17 वर्ष की उत्कृष्ट सेवा के बाद वह एलआइसी से जुड़े और 2006 में रिटायरमेंट के बाद उन्होंने गहन योग प्रशिक्षण लेकर शेष जीवन इसी के प्रति समर्पित कर दिया। लॉकडाउन में रची पुस्तक
2015 से योग पत्रिका संपादित कर रहे पुरुषोत्तम ने लॉकडाउन में योग फॉर ऑल पुस्तक रची है। इसमें प्रार्थना में शक्ति, मोटापा, इम्युनिटी, दिव्यांग बच्चों व कॉरपोरेट स्टाफ के लिए योग, ध्यान, डिप्रेशन और कोरोना से बचाव में भस्त्रिका, कपालभांति, अनुलोम-विलोम और भ्रामरी प्राणायाम के महत्व पर आलेख हैं। बकौल पुरुषोत्तम, योग सकारात्मकता लाता है। योगी के चेहरे पर तेज, ओज, आभा व चमक रहती है। वजन संतुलित रहता है, पाचन क्रिया अच्छी होती है, मन शांत रहता है।

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