करनाल की NDRI में क्लोन मादा भैंस गरिमा द्वितीय फिर बनी मां, सातवें कटड़े को दिया जन्म, पढ़ें विशेष रिपोर्ट
करनाल के एनडीआरआइ में क्लोन मादा भैंस गरिमा-द्वितीय का जन्म 22 अगस्त 2010 को हस्त क्लोनिंग तकनीक द्वारा भ्रूण स्टेम कोशिकाओं का उपयोग से किया गया था। गरिमा-द्वितीय आज भी स्वस्थ है। उसकी वृद्धि एवं प्रजनन व्यवहार भी सामान्य है।

करनाल, जागरण संवाददाता। करनाल स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान की अनुसंधान यात्रा अनवरत जारी है। इसी के तहत संस्थान में विकसित क्लोन मादा भैंस गरिमा-द्वितीय ने सातवें कटड़े को सफलतापूर्वक जन्म दिया। गरिमा ने 25 जनवरी 2013 को दो वर्ष पांच महीने की उम्र में कृत्रिम गर्भाधान विधि से महिमा नामक पहले कटड़े को जन्म दिया था। उसने एक ब्यांत में 2025 लीटर दूध देकर नया आयाम स्थापित किया था।
उल्लेखनीय है कि एनडीआरआइ में क्लोन मादा भैंस गरिमा-द्वितीय का जन्म 22 अगस्त 2010 को हस्त क्लोनिंग तकनीक द्वारा भ्रूण स्टेम कोशिकाओं का उपयोग से किया गया था। गरिमा-द्वितीय आज भी स्वस्थ है। उसकी वृद्धि एवं प्रजनन व्यवहार भी सामान्य है। वहीं, इससे पूर्व यह क्लोन भैंस कृत्रिम गर्भाधान विधि से छह सामान्य व स्वस्थ कटड़ों को जन्म दे चुकी है, जिनमें तीन मादा और तीन नर शामिल हैं। पहले उत्पादित सभी तीन मादाएं भी प्रजनन रूप से सामान्य हैं और उन्होंने दो से तीन कटड़ों को जन्म दिया था। अब नौ अक्टूबर को गरिमा ने सातवें कटड़े (मादा) को जन्म दिया, जिसका वजन 30 किलोग्राम है और वह शारीरिक रूप से स्वस्थ है।
परियोजनाओं को मिलेगी गति: निदेशक
संस्थान के निदेशक डा. धीर सिंह ने इस उपलब्धि पर कहा कि राष्ट्रीय कृषि विज्ञान निधि की परियोजना के तहत किए गए इस कार्य की सफलता ने साबित कर दिया कि क्लोन किए गए पशु और उनसे पैदा हुए कटड़े भी शारीरिक रूप से स्वस्थ तथा वृद्धि में सामान्य हैं। साथ ही वे प्रजनन की दृष्टि से गैर-क्लोन वाले पशुओं के समान ही हैं। इससे अगली अनुसंधान परियोजनाओं को गति देने में कारगर मदद मिल सकेगी।
टीम में ये वैज्ञानिक शामिल
कटड़े के उत्पादन में शामिल वैज्ञानिकों की टीम में डा. मनोज कुमार सिंह (परियोजना अन्वेषक), वर्तमान में गोविंद वल्लभ पंत विश्वविद्यालय पंतनगर के कुलपति डा. मनमोहन सिंह चौहान, डा. नरेश सेलोकर, डा. एसएस लठवाल, डा. सुभाष चन्द और कार्तिकेय पटेल शामिल हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार यह परीक्षण पशु उत्पादकता बढ़ाने के साथ देश में अधिक दुग्ध उत्पादन में भी सहायक सिद्ध होगा।
2010 में जन्मी थी गरिमा-द्वितीय
संस्थान के प्रवक्ता एवं प्रधान वैज्ञानिक डा. एके डांग ने बताया कि 2009 में संस्थान में हैंड गाइडेड क्लोनिंग तकनीक से कटड़ी का जन्म हुआ था। 2010 में दूसरी क्लोन कटड़ी गरिमा पैदा हुई, जो सात बच्चे दे चुकी है। केंद्र सरकार ने 2025 के अंत तक कृत्रिम गर्भाधान के कवरेज को मौजूदा 30 से बढ़ाकर 90 प्रतिशत करने का लक्ष्य दिया है। ऐसे में प्रजनन के लिए उच्च आनुवंशिक वाले सांडों के वीर्य की भारी आवश्यकता है।
क्या है क्लोनिंग तकनीक
वैज्ञानिकों के अनुसार इस प्रक्रिया में जिस भैंस का क्लोन करना है, उसकी कोशिकाओं को प्रयोगशाला में संवर्धन (कल्चर) करते हैं। संवर्धित सेल का मिलाप स्लाटर हाउस से प्राप्त ओवरी में केंद्रक रहित अंडाणु से करते हैं। वह आठवें दिन भ्रूण बनता है। फिर भ्रूण भैंस के गर्भाशय में स्थानांतरित करते हैं। उसके बाद करीब दस महीने दस दिन में क्लोन बच्चे का जन्म होता है। इस प्रक्रिया में जिस पशु की कोशिकाएं ली गई थी यह बच्चा हूबहू उसके समान होता है। तकनीक में लिंग निर्धारण पहले से तय है। नर का सेल लेंगे तो नर और मादा का सेल लेंगे तो मादा का ही जन्म होगा।
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