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    साझेदारी फर्म : क्या है तथा कैसे बनाएं

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    Updated: Tue, 15 May 2012 06:00 PM (IST)

    करनाल, जागरण संवाद केंद्र : किसी भी व्यापार को कई प्रकार से अर्थात प्रोप्राइटरशिप, प्राइवेट लिमिटेड कंपनी, एचयूएफ तथा साझेदारी फर्म के रूप में चलाया जा सकता है। प्रत्येक व्यापार के स्वरूप एवं आकार पर निर्भर करता है कि उसका संचालन किस रूप में किया जाए। व्यापार का क्षेत्र, आकार अगर बड़ा हो तो उसे अकेला व्यक्ति नहीं संभाल सकता। सुचारु रूप से चलाने के लिए दो या इससे अधिक व्यक्तियों को आपस में मिलकर यानि साझेदारी के रूप में व्यापार चलाना होता है। साझेदारी फर्म क्या है तथा इसे कैसे बनाया जाता है, जानकारी दे रहे हैं अखिल भारतीय कर व्यवसायी संघ के सदस्य शक्ति सिंह एडवोकेट।

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    साझेदारी का अर्थ

    भारतीय साझेदारी अधिनियम की धारा 4 के अनुसार साझेदारी व्यक्तियों के बीच एक संबंध है जिसमें वे व्यापार का लाभ उनके या उनमे से किसी एक के द्वारा चलाया जाता हो, आपस में बांटने के लिए सहमत हों। जो व्यक्ति साझेदारी में शामिल होता है उसे व्यक्तिगत रूप से साझेदार कहा जाता है और जिस नाम से वे व्यापार करते हैं उसे फर्म कहा जाता है। वैद्य साझेदारी फर्म में किसी व्यापार का होना आवश्यक है।

    अधिकतम तथा न्यूनतम साझेदार

    किसी साझेदारी के न्यूनतम साझेदारों की संख्या दो होनी चाहिए। बैंकिंग का व्यापार करने वाली फर्म में 10 से अधिक तथा अन्य व्यापार करने वाली फर्मो में 20 से अधिक साझेदार नहीं हो सकते। अगर कोई एचयूएफ किसी फर्म में साझेदार है तो उसके आवयस्क सदस्यों को छोड़कर बाकी सभी सदस्य उपरोक्त गिनती में शामिल होंगे।

    साझेदार कौन बन सकता है और कौन नहीं

    वह व्यक्ति जो अनुबंध करने की क्षमता रखता है, फर्म का साझेदार बन सकता है और जिसमें अनुबंध करने की क्षमता नहीं होती, वह साझेदार नहीं बन सकता। एक व्यक्ति एचयूएफ के कर्ता और उस परिवार के अन्य सदस्यों के बीच साझेदारी हो सकती है। कोई भी अव्यस्क साझेदार नहीं बन सकता, किंतु उसे फर्म के अन्य साझेदारों की सहमति के अनुसार केवल प्राकृतिक तथा कानूनी कृत्रिम व्यक्ति ही साझेदारी अनुबंध कर सकते हैं। एक साझेदारी फर्म कानूनी कृत्रिम व्यक्ति की परिभाषा में नहीं आती। इसलिए वह किसी अन्य फर्म में साझेदार नहीं बन सकती। इसी प्रकार व्यक्तियों का संघ एवं व्यक्तियों का समूह भी साझेदारी अनुबंध नहीं कर सकते।

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