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दसाश्वमेद मंदिर तीर्थ

संवाद सहयोगी, असंध : सालवन गांव स्थित दसाश्वमेद मंदिर तीर्थ महाभारतकालीन है। महाभारत युद्ध में विजय

By Edited By: Published: Sun, 02 Aug 2015 08:39 PM (IST)Updated: Sun, 02 Aug 2015 08:39 PM (IST)
दसाश्वमेद मंदिर तीर्थ

संवाद सहयोगी, असंध : सालवन गांव स्थित दसाश्वमेद मंदिर तीर्थ महाभारतकालीन है। महाभारत युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए पांडवों ने एकादशी रुद्र महादेव की विशेष पूजा अर्चना की थी। पांडवों द्वारा ही शिव¨लग की स्थापना की गई थी। यहां के पानी में स्नान करने से कुष्ठ रोग नष्ट होते हैं।

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इतिहास

महाराज युधिष्ठर द्वारा स्थापित शिव¨लग अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। शिवालय का पुनर्निर्माण किया जा चुका है। कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड द्वारा करीब 84 लाख रुपये की ग्रांट इसके लिए दी गई थी। मंदिर का भवन लोगों के आकर्षण का केंद्र है। इसकी दीवारों पर बनाए गए चित्र दुर्लभ हैं। मान्यता है कि यहां शिव उपासना से सभी कष्ट नष्ट हो जाते हैं। मंदिर की मान्यता दूर-दूर तक है। शिवरात्रि महापर्व पर श्रद्धालुओं की भीड़ देखते ही बनती है।

तैयारियां

महाशिवरात्रि पर्व को श्रद्धापूर्वक मनाने के लिए मंदिर को विशेष रूप से सजाया जा रहा है। कांवड़ियों द्वारा हरिद्वार, ऋषिकेश व गंगोत्री से लाए गए पावन गंगा जल से शिव¨लग का जलाभिषेक किया जाता है। सावन के महीने में भोलेनाथ का जल, दूध, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से भी अभिषेक श्रद्धालु करते हैं।

फोटो-----36 नंबर है।

शिव उपासना विशेष फलदायी

डॉ. बुटी राम ने कहा कि दसाश्वमेद तीर्थ भक्तों के लिए कलयुग मे वरदान साबित हो रहा है। यहा शिव की पूजा अर्चना करने से मनुष्य हर प्रकार के पापों से छूट जाता है। रमणीक स्थल होने पर मानव स्वत: एकाग्रचित हो जाता है व भगवान शिव का ध्यान करते हुए उसकी पूजा में लीन हो जाता है। सावन के इस विशेष माह में शिव उपासना विशेष फलदायी है।

फोटो-----37 नंबर है।

शिव पूजा सबसे पुरानी

मंदिर में महादेव के पुजारी संत बाबा गंगादास महाराज ने बताया कि ¨हदू धर्म में शिव की पूजा सबसे पुरानी है। समुद्र मंथन के दौरान निकले 14 रत्नों में से एक विष था। जिसे भगवान शिव ने लोक कल्याण के लिए पी लिया था। जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा से आता है उसपर भगवान शिव कृपा जरूर करते हैं।


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