जल संरक्षण पर नाटक का मंचन कर बताया पानी का महत्व
जागरण संवाददाता, करनाल : केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान में कृषि विशेषज्ञों ने भूमिगत जल बचा
जागरण संवाददाता, करनाल :
केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान में कृषि विशेषज्ञों ने भूमिगत जल बचाने के तरीकों के बारे में मंथन किया। वैज्ञानिकों ने आंकड़े पेश कर किसानों का आह्वान किया कि वह भूमिगत जल को बचाने में सहयोग करें, ताकि आने वाली पीढ़ी के लिए पानी को बचाया जा सके। जल संरक्षण पर नाटक का मंचन कर किसानों को इसे बचाने के लिए प्रेरित किया गया। संस्थान में शुक्रवार को केंद्रीय भूमि जल बोर्ड चंडीगढ़ की ओर से जन भागीदारी द्वारा जलभृत प्रबंधन एवं स्थानीय भूजलीय मुद्दों पर प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया था। जिसका उद्घाटन संस्थान के निदेशक डॉ. दिनेश कुमार शर्मा ने किया। इसमें 200 किसानों, वैज्ञानिकों व प्रसार कार्यकर्ता ने भाग लिया।
डॉ. दिनेश कुमार शर्मा ने कहा कि 1951 में 5177 घन मीटर व 2011 में 1750 घन मीटर पानी की उपलब्धता प्रति मानव थी। जोकि 2025 में 1147 घन मीटर होने की संभावना है। इन आकड़ों के मद्देनजर पानी की उपलब्धता दिन प्रतिदिन घटती जा रही है, जोकि चिंता का विषय है। इसके साथ ही भूजल की गुणवत्ता भी दिन प्रतिदिन खराब जा रही है। इससे जन जीवन के स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है। आज चिंता का सबसे बड़ा विषय पानी को बचाना है, ताकि आगामी पीढ़ी को भी पानी उपलब्ध हो सके। डॉ. पीके नायक, वरिष्ठ जल भू वैज्ञानिक ने कहा कि केंद्रीय भूमि जल बोर्ड पानी की बचत पर जन भागीदारी की भूमिका अहम होती है। हमें इसे बचाने के लिए सामुदायिक जागरूकता पर जोर देना होगा। भूमि जल बोर्ड पानी की उपलब्धता, उसकी गुणवत्ता पर कार्य कर रहा है। किसानों को कम पानी में अधिक उत्पादन लेने के तरीके अपनाने होंगे। 90 प्रतिशत निचली भूमि चिकनी है। जिसमें पानी की मात्रा नहीं होती केवल 10 प्रतिशत रेतीली मिट्टी होती है जिसमें पानी की उपलब्धता होती।
हर साल 33 प्रतिशत ज्यादा हो रहा दोहन
हर वर्ष हरियाणा व पंजाब में 33 प्रतिशत अधिक भू जल का प्रयोग हो रहा है। जो केवल 10 प्रतिशत रेतीली मिट्टी से उपलब्ध है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि अगर जल की बचत पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में भूजल की उपलब्धता एक चिंता का विषय बन जाएगा।
तकनीक अपनाकर करें बचत
उन्होंने कहा कि संस्थान द्वारा विकसित तकनीक जैसे धान की सीधी बिजाई एवं फव्वारा सिंचाई से लगभग 50 प्रतिशत पानी की धान की खेती में बचत की जा सकती है। उन्होंने गेहूं की शून्य जुताई से बुवाई का जिक्र करते हुए कहा कि कि इस तकनीक से बोई गई गेहूं पर वर्तमान में हुई लगभग 110 एमएम बरसात का कोई विपरीत प्रभाव नहीं देखा गया है। इसलिए किसानों को इसे अपनाना चाहिए। हम सब को मिलकर जल बचाने का संदेश देना होगा जिससे हमारी परियोजनाएं सफलता से लागू हो सकें। हरियाणा व पंजाब की देश की खाद्य उत्पादन में अहम भूमिका है, लेकिन यहां पानी का स्तर काफी नीचे चला गया है। इसको बचाने के लिए हमें जागरूकता अभियान चलाना होगा।
तकनीक से करें खारे पानी का इस्तेमाल
कृषि विशेषज्ञों ने कहा कि हरियाणा व पंजाब के कई जिलों में खारे पानी की उपलब्धता होने से उसे प्रयोग में नहीं लाया जा सकता है। इसके लिए किसानों को तकनीक को अपनाना होगा, ताकि खारे पानी से भी उत्पादन लिया जा सके। प्रशिक्षण मे केंद्रीय भूमि जल बोर्ड, चंडीगढ़ से एसके सहगल, संजय पाडे व संस्थान के डॉ. सुशील कुमार कामरा ने हरियाणा में भूजल परिदृश्य, भूजल पुनर्भरण व भूजल प्रबंधन योजना व भूजल प्रबंधन में सहभागिता पर व्याख्यान प्रस्तुत किए।
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