याद आया मनोज-बबली हत्याकांड
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अश्विनी शर्मा, करनाल
मनोज व किरण की जिंदगी प्यार के नाम पर फना हो गई। दोनों प्रेमियों ने मनोज-बबली हत्याकांड की यादें ताजा करा दी। हालांकि दोनों मामलों में काफी अंतर है। मनोज-बबली के मामले में मनोज की मां चंद्रपति व बहन सीमा ने इंसाफ की लड़ाई लड़ी, लेकिन भैणीकलां में प्रेमी जोड़े की हत्या को लेकर स्थितियां विपरीत हैं। कोई गवाह नहीं और न ही कोई सुबूत।
सात बरस पहले कैथल के करोड़ा गांव निवासी मनोज व बबली ने प्रेम विवाह किया था। दोनों को अदालत ने सुरक्षा भी प्रदान की, लेकिन प्यार के दुश्मनों ने उनकी हत्या कर दी। 15 जून 2007 को समानाबाहू टोल प्लाजा के समीप मनोज व बबली का अपहरण कर लिया गया। इसके बाद उन दोनों के शव नरवाना के समीप नहर से मिले थे। ऑनर किलिंग का मामला सामने आने पर पुलिस हरकत में आई। बबली के परिजनों ने दोनों की हत्या कर सुबूत खुर्द-बुर्द करने के लिए शव नहर में फेंक दिए। हत्याकांड की गूंज पूरे देश में 30 अप्रैल 2010 को उस समय गूंजी, जब करनाल जिले में न्यायाधीश वाणी गोपाल शर्मा ने पांच दोषियों को फांसी की सजा सुनाई। इस निर्णय के बाद पूरे प्रदेश में संदेश गया कि प्रेमियों के हत्यारों को इस तरह की सजा भी भुगतनी पड़ सकती है। दोषियों को सजा दिलाने के लिए मनोज की मां चंद्रपति ने 33 माह तक संघर्ष किया। इस लड़ाई में समाज का कोई भी व्यक्ति उनके साथ आने को तैयार नहीं हो रहा था, लेकिन जनवादी महिला समिति ने इस मसले को अंजाम तक पहुंचाने के लिए संघर्ष की राह चुन ली। 41 गवाह व 76 पेश के बाद करनाल की अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था।
अब सवाल यह है कि क्या मनोज-बबली की तरह ही मनोज व किरण को इंसाफ मिलेगा। मनोज-बबली के मामले में लड़ाई मां चंद्रपति, बहन सीमा व जनवादी महिला समिति ने लड़ी, लेकिन इस मसले पर कोई भी संगठन या व्यक्ति उस समय तक सामने नहीं आ सकता, जब तक कोई अपनी पीड़ा जाहिर नहीं करता।

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