कैथल जिले में पराली जलाने की घटनाओं को शून्य का लक्ष्य, सरपंच से लेकर थाना प्रभारी की भी होगी जवाबदेही
कैथल की डीसी प्रीति ने पराली प्रबंधन को सामूहिक जिम्मेदारी बताते हुए पराली जलाने पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी। उन्होंने बैंकर्स और बीमा कंपनियों से पराली प्रबंधन करने वाली फर्मों को लोन और बीमा में सहयोग करने का निर्देश दिया। डीसी ने किसानों से पराली न जलाने की अपील की और कहा कि उल्लंघन होने पर सरपंचों और एसएचओ की जवाबदेही तय की जाएगी।

जागरण संवाददाता, कैथल। इस बार जिले में पराली जलाने की घटनाओं को शून्य का लक्ष्य रखा गया है। किसी गांव में पराली या फलस कटाई के बाद बचे अवशेष जलाए जाते हैं तो संबंधित व्यक्ति के साथ-साथ उस गांव के सरपंच की जवाबदेही होगी। इतना ही नहीं, संबंधित थाने के प्रभारी और जिम्मेदार विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। लघु सचिवालय स्थित सभागार में पराली का प्रबंधन करने वाली फर्म मालिकों, बैंकर्स व बीमा कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ हुई समन्वय बैठक में डीसी प्रीति ने यह जानकारी दी।
डीसी ने कहा कि पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए सभी अपनी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करें। उन्होंने किसानों से भी आह्वान किया कि पराली प्रबंधन में सहयोग करें। सरकार की हिदायत अनुसार पराली न जलाएं, ताकि पर्यावरण संरक्षण किया जा सके। जिला प्रशासन का प्रयास है कि पराली जलाने के बजाए पराली प्रबंधन में काम करने वाले लोगों को प्रोत्साहित किया जाए, ताकि उन्हें पराली एकत्रित करके उसे मार्केट तक पहुंचाने में परेशानी न हो और किसानों को भी पराली प्रबंधन में मदद मिल सके।
बैठक का उद्देश्य पराली प्रबंधन करने वाली फर्म संचालकों की बैंकों से ऋण दिलवाए जाने व पराली प्लांट का बीमा करवाए जाने में आने वाली परेशानियों को दूर करना था। डीसी ने बैंकर्स को सख्त हिदायत देते हुए कहा कि वे पराली प्रबंधन करने वाली फर्म संचालकों को नियमानुसार लोन दिलवाएं। यदि नियमों के संबंध में कोई बाधा है तो अपने मुख्यालय स्तर से पता करवाएं। नियमों के तहत पराली प्रबंधन करने वाली फर्मों को ऋण दिलवाएं।
इसी प्रकार से बीमा कंपनियां इनसे प्रोजेक्ट बनवाकर बीमा संबंधी आवेदन स्वीकार करें। अपने मुख्यालय स्तर पर संपर्क करें, ताकि ये लघु एवं मध्यम उद्योग संचालकों को एक सुरक्षा कवर मिल सके और वे पराली प्रबंधन में और अधिक मेहनत करें। पराली प्रबंधन ठीक ढंग से होगा तो किसान को भी राहत मिलेगी। साथ ही पराली को आग लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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