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    प्रमाण पत्रों पर गलत तरीके से लिखे गए थे बीमारियों के नाम

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 01 Sep 2018 12:50 PM (IST)

    फर्जी प्रमाण पत्रों से लाखों रुपये लेने के मामले को सिविल सर्जन कार्यालय में कार्यरत डॉक्टर ने उजागर किया। कुछ प्रमाण पत्रों में बीमारी का नाम ही गलत ...और पढ़ें

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    प्रमाण पत्रों पर गलत तरीके से लिखे गए थे बीमारियों के नाम

    जागरण संवाददाता, कैथल : फर्जी प्रमाण पत्रों से लाखों रुपये लेने के मामले को सिविल सर्जन कार्यालय में कार्यरत डॉक्टर ने उजागर किया। कुछ प्रमाण पत्रों में बीमारी का नाम ही गलत लिखा गया था। जैसे एक्यूट माइलॉइड ल्यूकीमिया की जगह ब्लीड कैंसर लिखा हुआ था। इसी तरह मायोकार्डियल इंफाकेशन की जगह हार्ट अटैक लिखा गया था। जो भाषा लिखी गई थी उसे डॉक्टर इस्तेमाल नहीं करते। डॉ.संदीप जैन चिकित्सा अधिकारी के पद पर काम कर रहे हैं। करीब सात महीने पहले उन्हें डीसी कार्यालय की ओर से आने वाले आवेदनों को लेकर नोडल अधिकारी लगाया गया। मुख्यमंत्री राहत कोष के तहत गंभीर बीमारियों के लिए आर्थिक सहायता दी जाती है। डॉ. संदीप ने बताया कि छह महीने पहले उनके पास डीसी कार्यालय से प्रमाण पत्र आए। उनमें चार से पांच लाख रुपये की आर्थिक सहायता का क्लेम किया गया था। क्लेम की राशि ज्यादा होने पर कुछ शक हुआ। कुछ दिन बाद फिर चार से पांच लाख रुपये की सहायता राशि का क्लेम आया। ज्यादा राशि का क्लेम करने वाले प्रमाण पत्रों की जांच करने की सोची। सबसे पहले जिस अस्पताल से प्रमाण पत्र जारी किए गए थे उन्हें पत्र लिखा गया। उनसे पूछा गया कि क्या आपके अस्पताल से यह प्रमाण पत्र जारी किया गया तो वहां से जवाब आया नहीं। मामले की जानकारी सिविल सर्जन व डीसी को दी गई। अब 24 लोगों के खिलाफ केस दर्ज करवाया गया है। दो साल का रिकार्ड जांच

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    डॉ.संदीप ने बताया कि कुछ मामले फर्जी दिखे तो मामले की गहराई तक जाने की सोची। दो साल पहले के सभी प्रमाण पत्रों की जांच की। 31 प्रमाण पत्रों का फर्जी होने का शक हुआ। संबंधित सभी अस्पतालों से प्रमाण पत्रों के बारे में लिखित जानकारी मांगी गई। जानकारी में 24 प्रमाण पत्र फर्जी पाए गए, जिनमें संबंधित अस्पताल ने प्रमाण पत्र जारी करने से मना किया। सात अस्पतालों की ओर से जवाब आना बाकी है। प्रमाण पत्रों में लिखी गई थी एक जैसी लिखाई

    जिन प्रमाण पत्रों का फर्जी होने की आशंका थी सभी में एक जैसी लिखाई लिखी गई थी। प्रमाण पत्र का स्टाइल भी एक जैसा था, लेकिन अस्पतालों के नाम अलग-अलग थे। प्रमाण पत्र पर डॉक्टरों के हस्ताक्षर भी फर्जी हैं। लिखाई और स्टाइल से ही फर्जी होने का प्रमाण मिला।