घरों में काम करती थी मां, बेटी बनी कैथल की पहली इंटरनेशनल महिला बॉक्सर; अब कर रही देश सेवा
कैथल निवासी भावना धीमान की कहानी प्रेरणादायक है जिन्होंने गरीबी और मुश्किलों से लड़कर बॉक्सिंग में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। उनकी मां कुदरत रानी ने घरों में काम करके उनका पालन-पोषण किया। भावना ने अपनी मेहनत और लगन से 2017 में एसएसबी में नौकरी हासिल की और विश्व पुलिस बॉक्सिंग खेलों में स्वर्ण पदक जीता। आज वह कैथल की लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

सुनील जांगड़ा, कैथल। बचपन में पिता ने पत्नी और बच्चों से दूरी बना ली थी। परिवार चलाने की जिम्मेदारी मां पर आ गई थी। मां ने लोगों के घरों में साफ-सफाई का काम किया और बच्चों का पालन पोषण करने लगी। हम बात कर रहे हैं प्रताप गेट निवासी 30 वर्षीय भावना धीमान की। मां कुदरत रानी के संघर्ष के कारण भावना आज अंतरराष्ट्रीय स्तर की बॉक्सर बन चुकी हैं।
भावना की बड़ी बहन टीना और भाई अमित की शादी हो चुकी है। कुदरत रानी ने बताया कि उसने जो संघर्ष किया उसका फल उसे मिल चुका है। उसका एक ही सपना था कि बेटी कामयाब हो जाए। आज बेटी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत रही है, जिससे उसका सिर गर्व से ऊंचा हो गया है। खिलाड़ी की मां घरों में काम करती थी और बेटी जिला की पहली महिला बॉक्सर बनी थी।
भावना धीमान ने करीब 14 साल पहले बॉक्सिंग खेलना शुरू किया था। भावना को देखकर लड़कियों ने बॉक्सिंग खेलना शुरू किया था। अपनी मेहनत के दम पर भावना 2017 में खेल कोटे से एसएसबी में भर्ती हो गई थी। वह खेल के साथ-साथ देश सेवा भी कर रही हैं। पिछले साल कनाडा में हुए विश्व पुलिस बॉक्सिंग खेलों में स्वर्ण पदक भी हासिल कर चुकी हैं। इस समय जिले में करीब 200 महिला बॉक्सिंग खिलाड़ी हैं।
जिले में दस अंतरराष्ट्रीय स्तर की बॉक्सिंग खिलाड़ी हैं, जिनमें विश्व चैंपियनशिप में पदक जीत चुकी मनीषा मौण भी शामिल हैं। भावना ने अंबाला रोड स्थित आरकेएसडी कालेज में चल रहे खेल सेंटर पर कोच राजेंद्र सिंह, विक्रम ढुल और गुरमीत सिंह के पास अभ्यास किया था।
दिन में काम करती और सुबह-शाम करती थी अभ्यास
खिलाड़ी भावना ने बताया कि उन्होंने राजकीय कन्या स्कूल से पढ़ाई शुरू की थी। शरारती होने के कारण स्कूल के पीटीआइ महेंद्र ने उसे वालीबाल टीम में शामिल कर लिया। करीब चार साल तक यह खेल खेला। आरकेएसडी कालेज के स्टेडियम में गई तो वहां लड़कों को बॉक्सिंग खेलते देखा था। घर जाकर मां को कहा कि अब उसे बॉक्सिंग खेलनी है।
उस समय कोई भी लड़की कैथल में बॉक्सिंग का अभ्यास नहीं करती थी। कोच राजेंद्र सिंह ने भी पहले सिखाने से मना कर दिया था। उसके बाद भावना अपनी मां के साथ पहुंची और मां के कहने पर कोच ने सिखाने के लिए हां कर दी। उसके बाद लगातार भावना ने रिंग में पसीना बहाया और राष्ट्रीय स्तर पर पदक हासिल किए।
नौकरी पर लगने से पहले भावना ने तीन साल शहर के एक प्राइवेट अस्पताल में भी काम किया। दिन में काम करती थी और सुबह-शाम बॉक्सिंग का अभ्यास करती थी। भावना जब भी कोई पदक जीत कर आती थी तो सबसे ज्यादा खुशी मां को होती थी। मां बेटी की जीत की खुशी में पड़ोस में मिठाई बांटती थी।
नौकरी लगी तो हालात हुए ठीक भावना की मेहनत के कारण खेल कोटे में साल 2017 में एसएसबी में भर्ती हो गई थी। नौकरी मिलने के बाद घर के हालात ठीक हो गए। अब दिल्ली एसएसबी कैंप में ही अभ्यास कर रही है। पहले भी खिलाड़ी आल इंडिया पुलिस खेल में स्वर्ण पदक हासिल किया था। भावना 75 किलोग्राम भार में खेलती है। बॉक्सिंग कोच राजेंद्र सिंह, विक्रम ढुल और गुरमीत सिंह ने बताया कि भावना एक बेहतरीन खिलाड़ी है। उसकी कड़ी मेहनत से वह अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच चुकी है।
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