प्राचीन नवग्रह कुंड हो पर्यटन के रूप में विकसित
शहर के नवग्रह कुंड ऐतिहासिक धरोहर हैं। महाभारत काल में महाराजा युधिष्ठर ने युद्ध में मारे गए सैनिकों की आत्मा की शांति के लिए इन कुंडों की स्थापना की थी। नवग्रह कुंडों में से अब मात्र चार कुंड ही शेष हैं अन्य कुंडों पर कब्जा हो चुका है।
जागरण संवाददाता, कैथल :
शहर के नवग्रह कुंड ऐतिहासिक धरोहर हैं। महाभारत काल में महाराजा युधिष्ठर ने युद्ध में मारे गए सैनिकों की आत्मा की शांति के लिए इन कुंडों की स्थापना की थी। नवग्रह कुंडों में से अब मात्र चार कुंड ही शेष हैं, अन्य कुंडों पर कब्जा हो चुका है। इस ऐतिहासिक धरोहरों को बचाने के लिए पहल तो कई बार हुई, लेकिन सिरे नहीं चढ़ पाई। इन कुंडों को पर्यटन के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। सरकार और पुरातत्व विभाग की अनदेखी से महाभारत कालीन इतिहास संजोए नवग्रह कुंडों में से पांच कुंड लुप्त हो गए हैं। इन दिनों केवल चार कुंड बचे हैं। इन कुंडों को लेकर भी प्रशासन व पुरातत्व विभाग के अधिकारियों की ओर से जीर्णोद्धार के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। लोगों का कहना है कि महाभारत कालीन इस धरोहर को बचाने के लिए सरकार और प्रशासन को आगे जाने की जरूरत है। यह नवग्रह कुंड हमारी संस्कृति की पहचान है। इनके जीर्णोद्धार के लिए पहल शुरू करने की जरूरत है।
समाजसेवी सतपाल गुप्ता ने बताया कि पांडवों के सबसे बड़े भाई महाराज युधिष्ठिर ने महाभारत काल में नौ कुंडों की स्थापना की थी। कुंडों की स्थापना युद्ध में शहीद हुए पितरों की आत्मा की शांति के लिए की गई थी। कैथल वैदिक काल से ही धर्म-कर्म, राजनीतिक योगदान में आगे हैं। यहां के लोगों ने धर्म में भी अपना प्रभाव जमाया। 3100 ई. पूर्व जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो पांडवों के बड़े भाई युधिष्ठिर ने युद्ध में मारे गए पितरों की आत्मा की शांति के लिए कैथल में नवग्रह कुंडों की स्थापना की थी। 687 ई. में आदि शंकराचार्य ने इस कुंडों को रक्षा का निर्देश अपने शिष्यों को दिया। 1860-1900 के बीच में शिष्यों ने इन कुंडों को काशी के दशनामी जूना अखाड़े को सौंप दिया। डेरा बाबा परमहंस पुरी ने इन कुंडों की देखभाल शुरू की। उनकी मृत्यु के बाद जूना अखाड़े की गद्दी इन कुंडों की देखभाल करती रही। यह इतिहास केवल कैथल में ही है, जो देश के किसी अन्य हिस्से में भी स्थित नहीं है।
यहां स्थापित हैं नवग्रह कुंड :
इनमें सूर्य कुंड कैथल के केंद्र में माता गेट पर, शनि कुंड परशुराम चौक से आगे, शुक्र कुंड माता गेट के पास, गुरु कुंड परशुराम चौक से आगे बुध कुंड वाल्मीकि चौक की ओर और मंगल, राहु केतु कुंड पुरानी जेल के पास स्थापित हैं।
पांच कुंड हो चुके हैं लुप्त
प्रशासन व पुरातत्व विभाग की लापरवाही व अनदेखी के कारण केवल चार कुंड ही शेष बचे हैं। अन्य पांच कुंड लुप्त हो चुके हैं। शेष बचे कुंडों में सूर्य, शनि, बृहस्पति, बुध कुंड तो आज भी मौजूद हैं। जबकि चंद्र, मंगल, राहु, केतु, शुक्र कुंड का अस्तित्व समाप्त हो गया है। इन कुंडों में प्रभावशाली लोगों ने कब्जा कर लिया है।
पर्यटन के रूप में करें विकसित :
साइकिल क्लब के प्रधान सचिन धमीजा ने बताया कि नवग्रह कुंड महाभारत कालीन है। इन कुंडों का जीर्णोद्धार जरूरी है। अनदेखी और लापरवाही के कारण प्राचीन इतिहास लुप्त हो गया है। सरकार व पुरातत्व विभाग के साथ-साथ प्राचीन धरोहरों को बचाने के लिए एकजुट होने की जरूरत है। यह महाभारत काल का इतिहास समेटे हुए हैं। ऐसे में प्राचीन धरोहर होने के कारण काफी पर्यटक यहां आ सकते हैं। इससे प्रशासन व सरकार को आर्थिक लाभ भी होगा।
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