आत्म अवलोकन करना ही शिक्षा का सही मतलब
कैथल : शिक्षा का अर्थ मनुष्य का मन, शरीर और आत्मा का संपूर्ण विकास होता है। एक शिक्षित व्यक्ति प्रत्
कैथल : शिक्षा का अर्थ मनुष्य का मन, शरीर और आत्मा का संपूर्ण विकास होता है। एक शिक्षित व्यक्ति प्रत्येक कार्य अपने विवेक से करता है। बुद्धि के साथ आत्मा का अवलोकन अनिवार्य है। हम जो भी कार्य करते हैं, हमारा मन स्वयं यह बता देता है कि यह कार्य सही है या गलत है।
कई बार हम परिवार रिश्तेदारियां, जाति बिरादरी व धर्म जैसी भावनाओं में बह जाते है। कुछ विशेष प्रकार के प्रबुद्ध व्यक्ति जनता की भावनाओं के साथ खेलते है। राजनीतिक लोग वोट बटोरने के लिए ओछे हथकंडे अपनाने से भी चूकते नहीं। अलग अलग संप्रदाय के लोगों को प्रलोभन देकर वोट के लिए उन्हें बांटना कहां तक उचित है। आरक्षण के नाम पर लोगों को गुमराह करना व जाति विशेष के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करना। ऐसा भेदभाव अकसर देखने को मिलता है।
कभी कभी तो शाकाहारी व मांसाहारी भोजन को लेकर विवाद खड़ा हो जाता है। एक ही जगह पर मिलजुल कर रहने वाले लोग नेताओं की बातों में आकर धर्म, जात के नाम पर एक दूसरे के दुश्मन बन जाते है और एक दूसरे के साथ मरने मारने को उतारू हो जाते है। राजनीतिज्ञ अपने फायदे के लिए शहरी और ग्रामीण लोगों को भी आपस में बांट देते हैं।
जो लोग जातिवाद, धर्म व सम्प्रदाय तथा धार्मिक भावनाओं द्वारा लोगों को भड़कातें हैं। असल में उनका मकसद हमारा भला करना नहीं होता, वो हमें मोहरा बनाकर अपना उल्लू सीधा करते है। अकसर जब हम छोटे थे तो अकसर स्कूल की छुट्टी होने पर नारा लगाया करते थे कि ¨हदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आपस में हम भाई भाई। अब लगता है कि यह नारा कहीं खो गया है। अब चारो ओर मैं ¨हदू तु मुस्लिम ऐसा ही सुनने में आ रहा है। मैं सर्वप्रथम भारतीय हूं या इंसान हूं, ऐसी कोई आवाज कहीं से सुनाई नहीं दे रही है।
एक अध्यापक के लिए उसकी कक्षा के सभी बच्चे समान होने चाहिए। एक अध्यापक को बच्चों में भेदभाव नहीं करना चाहिए। अध्यापक को कभी भी पूर्वाग्रह से ग्रस्त किसी भी बच्चे के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। जिससे की बच्चे माता पिता के मन को ठेस पहुंचे। अध्यापक बच्चों के लिए आदर्श होता है। इसलिए अध्यापक को सोच समझ कर व्यवहार करना चाहिए।
गलती करने पर हम अपने बच्चे को तो माफ कर देते हैं, लेकिन किसी ओर बच्चे से गलती होने पर मारपीट करने लगते हैं, जो कि सरासर गलत है। एक आदर्श अध्यापक पग पग पर अपनी बुद्धि और विवेक से बच्चों का दृष्टिकोण भी सकारात्मक बनाता है। स्वामी दयानंद सरस्वती एवं स्वामी विवेका नंद इसी प्रकार के दृष्टिकोण से महान व्यक्ति बने। अत हमें अपनी भावनाओं को नियत्रंण में रखते हुए अपने विवेक से कार्य लेना चाहिए। जब तक समाज में भेदभाव रहेगा, तबतक समाज में खुशहाली नहीं आ सकती है। जब समाज में एकता होगी और हर व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के एक दूसरे का सहयोग करेगा तभी समाज के लोग खुशहाल जीवन बिता सकतें हैं। आत्म अवलोकन करना ही शिक्षा का वास्तविक अर्थ है।
प्रिंसिपल फूल सिंह मान
जाट वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय कैथल।
आत्म अवलोकन करना चाहिए
बाल विकास शिक्षा सदन की नर्सरी कक्षा की छात्रा सिमरन ने कहा कि हर व्यक्ति को आत्म अवलोकन करना चाहिए। यदि हम अपने अंदर झांकते है तो हमें अपनी बहुत सी कमजोरियां दिखाई देती है और जब हम उन पर कार्य करना आरंभ करते है तो हम धीरे धीरे अपनी कमजोरियों से निजात पा लेते है। हम अकसर समय समय पर आत्म अवलोकन करना भूल जाते है। हमारी सोच ऐसी बनती जा रही है कि मैं तो सही हूं, लेकिन बाकी के लोग गलत है। लेकिन ऐसा नहीं है हमार मत उससे भिन्न हो सकता है, लेकिन क्या पता वह इंसानियत के मामले में हमसे बेहतर हो।
दूसरों की मद्द के लिए आगे आना चाहिए
लिटिल फ्लावर स्कूल की कक्षा 12वीं की छात्रा चेतना ने कहा आज लोग भावना रहित होते जा रहे है। लोगों की आत्मा मर चुकी है। अकसर देखने में आता है कि सड़क पर एक घायल पड़ा व्यक्ति तड़प रहा है और लोगों की भीड़ जमा हो जाती है। लेकिन कोई उसकी मदद नहीं करता, बस तमाशबीन खड़े लोग देखते रहते है।
इसी प्रकार हर पेशे में भ्रष्टाचार तेजी से फैलता जा रहा है और यह समाज के लोगों की वजह से ही हैं, ये सभी लोग कहीं बाहर से नहीं आए, यह हमारे समाज से ही आए है।
हम अकसर कहते हैं कि जमाना खराब है, क्योंकि कोई भी स्वयं को खराब कहने का साहस नहीं जुटा पा रहा है। अकसर किसी को मुसीबत में देखकर हम सोचते हैं, यह तो उसके साथ हुआ है तो हमें क्या लेना, लेकिन आज उसके साथ हुआ है। कल आपके साथ भी हो सकता है। आज का युवा नशे के कारण खोखला होता जा रहा है। जो युवा नशा नहीं करते, वह भी अच्छे विचारों के अभाव में खोखले हो रहे है।
हम समाज को आगे ले जाने की बात करते और अकसर नेताओं को आदर्श भरी बातें कहते भी सुनते है। आजतक एक भी नेता ने यह नहीं कहा कि यह मैने कहा था और यह अच्छा काम मैने किया है।
गलतियों को खोजना चाहिए
आ एसडीएवी स्कूल की जसमीत सिंह ने कहा कि समाज में रह रहे लोगों ने आत्म अवलोकन करना छोड़ दिया है। हम अकसर दूसरे के धर्म में सौ कमियां निकालते है और दूसरे व्यक्ति में भी। कभी आत्म अवलोकन नहीं करते है। कभी यह सोचा है कि हमारे भीतर कौन सी कमियां है। क्योंकि माइंड सेट हो चुका है कि हम सही हैं और दूसरा तो गलत ही है। क्या हमने सप्ताह के अंत में बैठकर सोचा है कि इस सप्ताह हम से कौन सी गलती हुई और कौन सा सही कार्य किया है। यदि हम आत्म अवलोकन भी करें तो हम अकसर हमारी गलतियों को नहीं खोजते हमारा इस ओर कोई ध्यान नहीं होता। हमें अपने आपको बेहतर बनाने के लिए आत्म अवलोकन करना ही होगा। जबकि आत्मा को भी जिंदा रखना होगा।
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