किताब की समीक्षा
मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई किताब प्रतिज्ञा का सार तत्व समाज में विधवा महिलाओं की दयनीय स्थिति के
मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई किताब प्रतिज्ञा का सार तत्व समाज में विधवा महिलाओं की दयनीय स्थिति के इर्द- गिर्द ही घूमती है। इस कहानी के मुख्य पात्र अमृतराय, दाननाथ, प्रेमा, पूर्णा, कमला प्रसाद व उसके पत्नी सावित्री है।
बनारस शहर में सभा का आयोजन किया जाता है। इसमें अमरनाथ विधवा महिला से विवाह करने के बारे में वहां उपस्थित श्रोता का मन टटोलता है। वह लोगों से पूछता है कि क्या कोई विधवा से शादी करने की हिम्मत रखता है, इसे सुनकर अमृतराय हामी भर देता है। यह देखकर उसके अभिन्न दोस्त दाननाथ उसकी खिल्ली उड़ाते हुए कहता है कि उसने बिना सोचे समझे ही इस जटिल समस्या को सिर पर उठाने के लिए क्यों तैयार हो गया। इस पर अमृतराय कहता है कि सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ किसी न किसी को तो पहल करनी ही पड़ती है और कठिन निर्णय लेने की उसकी आदत है।
अमृतराय सुखी संपन्न परिवार से नाता रखता है। अमृतराय की पत्नी का देहांत हो चुका है। प्रेमा का उसके प्रति झुकाव व प्यार शहर के सभी लोगों को मालूम है। इस फैसले के बाद प्रेमा समझ जाती है उसकी शादी अब अमृतराय से नहीं हो सकेगी, लेकिन उसके माता इसे मानने के लिए तैयार नहीं है। दाननाथ भी प्रेमा की सादगी पर फिदा है, लेकिन अपने दोस्त अमृतराय को नाराज नहीं करना चाहता है।
पूर्णा साधारण परिवार से आती है और उसके पति गंगा में तैरता कमल के फूल को लाने के चक्कर में अच्छे तैराक होने के बावजूद डूब जाता और उसकी मौत हो जाती है। इसके बाद प्रेमा का भाई कमलाप्रसाद पूर्णा के घर जाता और उससे हमदर्दी जताते हुए उसे अपने घर पर रहने के लिए अनुरोध करता है। विधवा जीवन की कठिनाई को समझते हुए उसने काफी ना नुकूर करने के बाद उसके घर पर आकर रहने लगती है।
कमला प्रसाद की पत्नी सावित्री धनवान परिवार की है। इसलिए वह पति पर काफी धौंस जमाती है। उसे पूर्णा का घर पर आना नागवार लगा। उसने पूर्णा को सचेत कर दिया कि उसके पति देर रात सिनेमा देखकर आता है और वह रंगीनमिजाज का आदमी है।
कमला प्रसाद एक दिन दुकान से दो सिल्क की साड़ी लेकर आता है। एक अपने पत्नी के लिए और दूसरा पूर्णा के लिए। वह पूर्णा को अपने मोहपाश में फंसाना चाहता, लेकिन पूर्णा पर इसका कोई असर नही होता। उधर दाननाथ की शादी प्रेमा के साथ हो जाता है, लेकिन वह अपने को उसके लायक नहीं समझता। वह शुरू से ही प्रेमा का अमृतराय के प्रति झुकाव को लेकर सशंक्ति रहता है।
इधर अमृतराय महिलाओ की आजादी पर आघात को लेकर एक आश्रम बनवाने के लिए चंदा उगाही करता है। इससे दाननाथ क्रोधित हो जाता और उन दोनों के बीच दूरियां खींच जाती है।
इधर पूर्णा अपने भाग्य को कोसते हुए अब कमला प्रसाद के घर पर अब नहीं रहना चाहती। वह उसके मस्त मिजाज से पूरी तरह वाकिफ हो जाती है। वह कहती है कि वह अमृतराय के आश्रम जाना चाहती। इस पर कमलाप्रसाद उसे तांगा में बिठाकर उसे आश्रम पहुंचाने की बात कह अपने बगीचा लेकर चला जाता है। वहां वह उसके अस्मत लूटने का प्रयास करता है, लेकिन पूर्णा इसका प्रतिकार करते हुए उसे डंडा से पिटती है। इससे उसके दांत टूट जाते है और वह लहूलूहान हो जाता। डाक्टर से उपचार कराने के चलते पूरे शहर में यह बात आग की तरह फैल जाती है।
पूर्णा एक बूढ़े की मदद से अमृतराय के आश्रम पहुंच जाती है।
उधर दाननाथ को भी इस घटना की जानकारी मिलती है। वह कमलाप्रसाद से मिलने जाता है तो देखता है कि उसके चेहरे पर बैंडएज लगा हुआ है। वह अपना बचाव करते हुए पूर्णा को धिक्कारते हुए कहा कि कैसी कूल्टा महिला है उसे रहने के लिए घर पर शरण दिया। उसने ही बगीचा लेकर जाने की जिद की थी। कमला प्रसाद की झूठ पकड़ी जाती है और उसके पिता बदरीनाथ उसके इस कारनामे पर फटकार लगाते है।
दाननाथ अमृतराय के वनिता भवन पहुंचता है और अपने करतूत पर पश्चाताप करता है। वह अमृतराय से पूछता है कि क्या उसने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और किसी विधवा से शादी कर ली। इस पर अमृतराय कहता है कि पूर्णा से शादी करने के लिए कई परिवार के अच्छे लड़के तैयार है। उसने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और विधवाओं के लिए आश्रम खोला लिया है। अमृतराय के अनुसार वह पत्नीव्रता है और बहु-विवाह का जमाना अब लद चुका है।
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