अंतरराष्ट्रीय चुटकुला दिवस.. रोते हुए को हंसाना ही हास्य, मैं तो मातमपुर्सी पर भी हंसाकर आता हूं: गुड्डू
हास्य हमारी लोक परंपरा की विधा है। हंसी समाज में ही है। सही हास्य वह है जिसमें फूहड़ता व कटाक्ष न हो। दुश्मन के चेहरे पर हंसी लाना और रोते हुए को हंसाना ही हास्य है। मैं तो मातमपुर्सी पर भी लोगों को हंसाकर आता हूं। सबको हंसते रहना चाहिए। हंसने से भगवान भी खुश होता है। यह कहना है हरियाणा में हंसी का पर्याय बन चुके लोक कलाकार महावीर गुड्डू का।
कर्मपाल गिल, जींद
हास्य हमारी लोक परंपरा की विधा है। हंसी समाज में ही है। सही हास्य वह है, जिसमें फूहड़ता व कटाक्ष न हो। दुश्मन के चेहरे पर हंसी लाना और रोते हुए को हंसाना ही हास्य है। मैं तो मातमपुर्सी पर भी लोगों को हंसाकर आता हूं। सबको हंसते रहना चाहिए। हंसने से भगवान भी खुश होता है। यह कहना है हरियाणा में हंसी का पर्याय बन चुके लोक कलाकार महावीर गुड्डू का।
एक जुलाई को अंतरराष्ट्रीय चुटकुला दिवस पर दैनिक जागरण के साथ बातचीत में महाबीर गुड्डू कहते हैं आजकल मंचों पर नेहरू, राहुल व सोनिया के बारे में चुटकुले सुनाए जा रहे हैं। यह चुटकुलों के नाम पर व्यक्तिगत आलोचना है। चुटकुला वह होता है, जिससे किसी के दिल को ठेस न पहुंचे। हम दो लाठी मारकर किसी को भी रुला सकते हैं, लेकिन रोते हुए को हंसाना ही हास्य है। उदास या नीरस आदमी का चेहरा खिलाना बड़ा मुश्किल है। आदमी के मन को खिलाने के लिए अध्यात्म यानि भगवान के नाम के बाद हास्य ही दूसरा सबसे बड़ा साधन है। लेकिन आजकल शिक्षा बढ़ने के साथ हास्य समाज से दूर होता गया है और स्वार्थ बढ़ गया है। घरों में टेंशन बढ़ गई है। पहले चार-पांच भाई भी इकट्ठे एक घर में रहते थे। अब पढ़े-लिखे दो भाई भी एक साथ नहीं रह सकते। कारण यही है कि ये पढ़े-लिखे कैलकुलेशन करने लग जाते हैं कि मैं इतना कमाता हूं, भाई इतना कमाता है। मेरी कमाई भाई पर खर्च करने के बजाय अपने बच्चों पर खर्च करूं। गुड्डू कहते हैं कि उनका मानना है कि आजकल की शिक्षा विद्वान बनाने के साथ स्वार्थी भी बना रही है और भाईचारा तोड़ रही है। जबकि पहले के शिक्षित लोग समाज को जोड़कर रखते थे। आज पैसे कमाने और आगे निकलने की अंधी दौड़ के कारण हंसी गायब हो गई है और जिदगी में नीरसता आ गई है।
हंसने की कला सिर्फ मानव के पास, गांवों में बचा है मस्तमौलापन
लोक कलाकार महावीर गुड्डू कहते हैं कि जब कोई पशु मरता है उसके साथ वाले पशुओं की आंखों में आंसू आ जाते हैं। हमने पशुओं की आंखें गीली देखी हैं। लेकिन भगवान ने 80 लाख योनियों में हंसने की कला सिर्फ इंसान को दी है। हंसी जीवन का जरूरी पहलू है। उन्होंने हमेशा अपने चुटकुलों के जरिए समाज सुधार के संदेश भी दिए हैं। कॉलेज व विश्वविद्यालयों के मंच पर कभी द्विअर्थी चुटकुले नहीं सुनाए। गुड्डू कहते हैं गांवों में अभी मस्तमौलापन बचा हुआ है। लोग एक-दूसरे पर चुटकुले सुनाकर खूब हंसते हैं। जबकि शहर के लोगों में पैसे कमाने की होड़ है। शहर में अड़ोसी-पड़ोसी के संस्कार, विचार भी नहीं मिलते। इस कारण हंस भी नहीं पाते।
जवान बेटे की मौत पर पांच दिन से भूखे पिता को हंसाकर रोटी खिलाई
महावीर गुड्डू ने बताया कि तीन साल पहले सफीदों के गांव मुआना में जवान लड़के की मौत हो गई थी। शादी के डेढ़ महीने पहले ही उसकी शादी हुई थी। खेत में गेहूं निकालते समय थ्रेशर मशीन में गर्दन फंस गई थी। वह मातमपुर्सी के लिए उनके घर गए। उन्हें बताया कि लड़के के पिता ने पांच दिन से रोटी नहीं खाई हैं। पहले पंडित लख्मीचंद की बातें सुनाईं। फिर कुछ धार्मिक बातें की और माहौल के हिसाब से चुटकुले सुनाकर उसे हंसाया। उसे समझाया कि ऐसे तो परिवार बिखर जाएगा। समझाने पर वह रोटी खाकर आया और अपनी पत्नी को भी रोटी खिलाई। रोटी खाने के बाद उसने कहा पंडितजी आपकी मेहरबानी हो। गम दूर करने के लिए हास्य बड़ी चीज है।