सुलेख प्रशिक्षक के नाम से मशहूर हैं उचाना के सुरेश चौहान
उचाना निवासी सुरेश चौहान की पहचान प्रदेशभर में सुलेख प्रशिक्षक के नाम से है। सुरेश चौहान प्रदेशभर के 500 से ज्यादा स्कूलों में 15 हजार विद्यार्थियों और अध्यापकों को सुंदर लेखन का प्रशिक्षण दे चुके हैं।

जागरण संवाददाता, जींद : उचाना निवासी सुरेश चौहान की पहचान प्रदेशभर में सुलेख प्रशिक्षक के नाम से है। सुरेश चौहान प्रदेशभर के 500 से ज्यादा स्कूलों में 15 हजार विद्यार्थियों और अध्यापकों को सुंदर लेखन का प्रशिक्षण दे चुके हैं। इतना ही नहीं, सुरेश चौहान पिछले 28 साल से सुलेख प्रशिक्षण केंद्र उचाना में लेखन का कार्य कर रहे हैं। साल 1997-98 में उन्हें जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम जींद में बतौर सुलेख विशेषज्ञ नियुक्त किया गया था।
सुरेश चौहान का कहना है कि यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि किसी भी प्रकार की सुंदरता का अपना आकर्षण होता है। इसी प्रकार सुंदर लेखन का भी शिक्षा में अपना महत्वपूर्ण स्थान है। इसे विशेष तौर पर प्राथमिक शिक्षा से अलग नहीं किया जा सकता। सुंदर लेखन के लिए शिक्षाविदों द्वारा जो स्वीकृत वर्णमाला, शिक्षा जगत को दी है, उसे गंभीरता से सीखने और समझने की जरूरत है। अच्छे लेखन की चाहत तो सभी रखते हैं, परंतु उसकी जड़ में बहुत कम लोग जा पाते हैं। 1980 में राष्ट्रपति ने सुरेश चौहान को किया था सम्मानित
सन 1980 में सुरेश चौहान को सुंदर लेखन में तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी द्वारा नई दिल्ली में सम्मानित किया गया था। इसके बाद कई बार राष्ट्रीय स्तर पर सुरेश चौहान को सम्मानित किया गया। सुरेश चौहान का कहना है कि 1997-98 में जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम में बतौर सुलेख विशेषज्ञ नियुक्त हुए थे। सुलेख प्रशिक्षण केंद्र उचाना में लेखन के क्षेत्र में 28 वर्ष पूरे कर बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं। उनसे सुलेख का प्रशिक्षण लेकर काफी विद्यार्थियों ने जिला एवं राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में दस्तक दी है और उच्च स्थान प्राप्त किया है। सुंदर लेखन के लिए कई बातें जानना जरूरी : सुरेश चौहान
सुरेश चौहान बताते हैं कि लेखन से पहले कुछ नियमितताएं हैं, जिनकी जानकारी होना बहुत जरूरी है। बच्चों का लिखते समय बैठने का ढंग, पेन, पेंसिल पकड़ने का ढंग, एकदम अधिक दबाव, अक्षर का आकार और आपस का अंतर, शब्द से शब्द का अंतर, बारहखड़ी का अध्ययन तथा सुलेख नियमावली को ध्यान में रखते हुए लेखन का कार्य करना चाहिए। प्रत्येक वर्ण की अपनी पहचान व रचना होती है। वर्णो की वास्तविक पहचान तथा रचना प्रक्रिया को क्रियान्वित करना ही सुंदर लेखन है।
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