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    शिक्षक की नौकरी छोड़ जरूरतमंद बच्‍चों में जगाई शिक्षा की अलख, अब इन विधाओं में कर रहे निपुण

    By Anurag ShuklaEdited By:
    Updated: Mon, 14 Nov 2022 02:06 PM (IST)

    जींद (Jind) की रहने वाली शारदा आसरी गरीब और जरूरतमंद बच्‍चों के बीच शिक्षा की अलग जगा रही हैं। शिक्षक की नौकरी छोड़कर बच्‍चों को पढ़ाना शुरू किया। अब तक 150 से ज्यादा बच्चों को दिलवाया स्कूल में दाखिला।

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    जींद की शिक्षिका शारदा आसरी जरूरतमंद बच्‍चों में जगा रहीं शिक्षा की अलख। जागरण

    जींद, जागरण संवाददाता। शारदा आसरी। जींद में टीचर की जाब छोड़कर जरूरतमंद बच्‍चों को पढ़ाने लगीं। अब ये कारवां बढ़ता जा रहा है। धर्मशाला में शिक्षा के साथ-साथ अन्‍य विधाओं में भी बच्‍चों को निपुण कर रहीं।

    इस तरह से आया बदलाव

    सात साल पहले शारदा आसरी नहर के किनारे से होकर टपरीवास कालोनी से जाते हुए बाबा की मजार पर मासूम बच्चों को प्रसाद चढ़ाने का इंतजार करते पाया। इनकी इस हालात को देखकर शारदा आसरी व उनके पति मोहित आसरी को तरस आता था और इनके लिए कुछ करने की मन में आई। इसके बाद दोनों ने बच्चों के जीवन को सुधारने का प्रण लिया।

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    छोड़ दी थी नौकरी

    शारदा आसरी ने खुद स्कूल की नौकरी छोड़ जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। आसरी दंपति के सामने जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाने के लिए जगह नहीं मिलना भी परेशानी का विषय था। इसके बाद उन्होंने टपरीवास कालोनी में ही एक बदहाल धर्मशाला में सफाई करवाकर बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। इसमें भी बड़ी समस्या थी कि बच्चों को पढ़ाने के लिए अभिभावक भी सहयोग नहीं कर रहे थे और न ही बच्चे इनके पास निरंतर आते थे।

    बुजुर्ग ने की मदद

    इसके बाद पहले तो अभिभावकों को जागरूक किया बाद में कालोनी में एक बुजुर्ग व्यक्ति इनके सहयोग में आया और सभी बच्चों को इनके पास पढ़ने के लिए भेजने लगा। इसके बाद प्रशासन की सहायता से धर्मशाला का सुधार करवाया ताकि बच्चों के बैठने के लिए जगह उपयुक्त हो सके। इतना ही नहीं इस दंपति ने इन बच्चों को आर्ट व नृत्य में निपुण करने के लिए भी अन्य निजी स्कूलों में कार्य करने वाले अध्यापकों से सहायता मांगी। इन अध्यापकों ने भी बच्चों को नृत्य तथा कला की कक्षाएं निरंतर दी।

    150 से ज्‍यादा बच्‍चों को स्‍कूल भेजा

    अब तक इस दंपति ने 150 से ज्यादा बच्चों का सरकारी स्कूलों में दाखिला करवाया है। इनके लिए समय-समय पर स्टेशनरी भी वितरित की जाती है। इस दंपति के पास पांच से 14 आयु के बच्चे शिक्षा लेने के लिए आते हैं। जिन बच्चों को स्कूलों में दाखिला करवाया है, उन बच्चों को स्कूल से मिला होमवर्क भी यह दंपति प्रतिदिन पूरा करवाते हैं।

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