मुफलिसी के दौर से गुजरे बृजमोहन पंवार की मेहनत का नतीजा है वंडर गर्ल जाह्नवी पंवार
अमित पोपली, झज्जर : वंडर गर्ल जाह्नवी के पिता के रूप में मिली नई पहचान से स्वयं को उर्जावान मह
अमित पोपली, झज्जर : वंडर गर्ल जाह्नवी के पिता के रूप में मिली नई पहचान से स्वयं को उर्जावान महसूस करने वाले बृहमोहन पंवार का जीवन संघर्ष से तपकर यहां तक पहुंचा है। देखा जाए तो अमूमन संघर्ष हर ¨जदगी का हिस्सा होता है, लेकिन संघर्ष की आंच में खुद तपकर दूसरों की ¨जदगी सोना बनाने वाले बहुत कम लोग होते हैं। प्राथमिक शिक्षक होने के नाते उनका सपना है कि हर बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा अगर बेहतर हो जाए तो वह जीवन पर्यंत मुड़कर नहीं देखेगा। इसी फलसफे पर अमल करते हुए ही उन्होंने अपनी बेटी पर बचपन से काम करना शुरू कर दिया।
बेशक ही आज उनकी बेटी जाह्नवी मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में नामी गिरामी संस्थाओं सहित बड़े-बड़े आयोजनों का केंद्र बन रही है। लेकिन जिस तरह से उन्होंने जाह्नवी को तराशा है वह स्वयं में एक मिसाल है। बेशक ही बृहमोहन एक प्राथमिक शिक्षक है। लेकिन उनका व्यक्तित्व, उनकी सोच, एक चलता फिरता स्कूल है। उन्हें यह बखूबी समझ है कि बच्चों को किस ढंग से तैयार किया जाए और कैसा माहौल दें तो वह बेहतर इंसान बनने के साथ-साथ जीवन में कामयाब भी हो सकते हैं।
जयपुर में मिली ट्रे¨नग के अनुभव आए काम
बृजमोहन पंवार बताते है कि करीब 20 वर्ष पूर्व वह जयपुर में शिक्षकों के लिए होने वाले एक ट्रे¨नग प्रोग्राम का हिस्सा बने थे। ट्रे¨नग में देखा कि कैसे कूड़ा बीनने वाले बच्चे बगैर किताबी ज्ञान के अंग्रेजी बोलते है। सामान्य ज्ञान तो उनका ऐसा था जैसा किसी अच्छे खासे स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे का भी नहंी हो। उसी अनुभव को अपने साथ लेकर लौटे बृजमोहन ने बेटी जाह्नवी के जन्म के बाद हुबहू उतारा। प्रारंभिक दौर से ही उसे किताबी ज्ञान के स्थान पर प्रैक्टिकल के नजदीक लेकर गए। जाह्नवी ने नर्सरी, एलकेजी की बजाए सीधे यूकेजी में एडमिशन लिया। फिर पहली कक्षा के बाद जाह्नवी ने 2, 4 और 9 की बजाए इससे अगली क्लास के बाद 10, 11 पास की। सरोजनी नायडू के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ही यह संकल्प धारण कर लिया था कि अपनी बेटी को भी वैसा ही बनाएगे।
बृजमोहन के लिए बेटियां ही हैं उनका संसार
एक साधारण शिक्षक बृजमोहन के यहां आमदनी आज भी सामान्य ही है। पारिवारिक पृष्ठभूमि की बात हो तो जब वह पांचवीं कक्षा में पढ़ते तो पिता का साया सिर से उठ चुका था। बड़ा परिवार था और मां मजदूरी करती थी। परिवार का बड़ा होने के नाते वह भी मां के साथ मजदूरी पर जाने लगे। रेहड़ी लगाई और मेले में छोले-कूलचे के खोमचे। दसवीं के बाद परिवार के हालात इस स्तर पर नहीं थे कि पढ़ाई शुरू की जा सके। फिर दर्जी का काम सीखा। पानीपत में जाकर खड्डी में काम किया। चार साल खड्डी में काम करने के दौरान ही अपनी स्नात्तक की। स्नातक करने के बाद वह भी मजदूरी करते थे। इसी दौरान एक स्कूल में पढ़ाने का निमंत्रण मिला। अंग्रेजी और गणित में महारत यहां उनके काम आई। जिसके बाद उन्होंने मुड़कर नहीं देखा। पढ़ाई की अहमियत को समझते हुए वह डबल एमए और एमफिल कर चुके है। सपना है कि बेटी सामाजिक बदलाव की गवाह बने। दो बेटियों के पिता बृजमोहन का कहना है कि उनकी दोनों बेटियां उनका संसार है। हर अभिभावक को उनका संदेश है कि आपका बच्चा खास है। बस उस पर ध्यान दीजिए।

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