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    झज्जर में किसानों को जलभराव ने किया परेशान, अब धान की फसल में आग लगने से हुआ नुकसान

    By Jagran NewsEdited By: Naveen Dalal
    Updated: Sat, 26 Nov 2022 09:37 AM (IST)

    झज्जर के गांव गोच्छि निवासी सुनील कुमार पुत्र जगत सिंह ने बताया कि उसने 6 किले ठेके पर जमीन ले रखी है। शाम को उसने धान की फसल को निकलवा कर खेत में रखा था। सुबह जब खेत में पहुंचा तो देखा कि पूरी फसल जलकर नष्ट हो चुकी है।

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    झज्जर के गांवों में जलभराव से परेशान किसान।

    झज्जर, जागरण संवाददाता। झज्जर के गांव गोच्छि में एक किसान की 6 किले फसल आग लगने की वजह से जलकर बर्बाद हो गई। किसान शाम के समय अपनी धान की फसल को खेत में रखवा कर घर चला गया था। सुबह जब आकर देखा कि फसल  में आग लगी हुई है। उसके बाद उसने मामले की जानकारी पुलिस को दी। फिलहाल पुलिस ने शिकायत के आधार पर केस दर्ज कर लिया है। 

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    पीड़ित किसान के अनुसार

    गांव गोच्छि निवासी सुनील कुमार पुत्र जगत सिंह ने बताया कि उसने 6 किले ठेके पर जमीन ले रखी है। शाम को उसने धान की फसल को निकलवा कर खेत में रखा था, रात अधिक होने के कारण वह घर चला गया। अगले दिन सुबह जब खेत में पहुंचा तो देखा कि पूरी फसल जलकर नष्ट हो चुकी है। 

    सुनील ने बताया कि उसके पास केवल खेती के लिए यही जमीन थी। वह भी उसने ठेके पर ले रखी थी। धान में आग लगने के बाद अब उसके पास कोई भी जरिया आय का नहीं बचा है। उसे लगभग लाखों का नुकसान हुआ है। उसके पास केवल 2 किले अपने खुद के हैं। वहां पर भी हमेशा पानी जमा रहता है। 

    सुनील का कहना है कि इसी साल उसने 6 किले ठेके पर लिए थे। क्योंकि हर साल उसके 2 किले खेत में जलभराव होने के कारण फसल बर्बाद होती रही है। इस बार उसने सोचा कि 6 किले में खेती करने के बाद उसे कुछ फायदा होगा। अब खेत का किराया भी देना है। ऐसे में काफी समस्या आ चुकी है। सुनील की दो लड़कियां और एक लड़का है। तीनों पढ़ाई करते हैं। उन्होंने बताया कि स्कूल की फीस भी देनी है, नुकसान होने की वजह से मानसिक तनाव से जूझना पड़ रहा है। केवल खेती का कार्य ही आय का जरिया था। 

    खेत में था जलभराव, मजदूर लगवा कर की थी धान की कटाई

    सुनील ने बताया कि जलभराव के कारण वैसे भी बहुत नुकसान हो चुका था। 2 किले तो डूब कर बर्बाद हो चुके थे। मगर जो 6 किले ठेके पर ले रखे थे, उसमें थोड़ा बहुत पानी अभी बचा हुआ था। किसी तरह से 5 हजार रूपये प्रति किले के हिसाब से मजदूरों को धान काटने के लिए लगाया था।