चलो गांव की ओर : सामाजिक सौहार्द के साथ खोरड़ा के ग्रामीणों ने बनाईं अपनी खास पहचान
ग्रामीणों के मुताबिक गांव खोरडा का निकास राजस्थान के सीकर जिले के मंडावा तहसील के चाहरावास गांव से है।
संवाद सूत्र, साल्हावास : करीब 925 साल पहले बसा गांव खोरडा आज अपनी अलग ही पहचान बना रहा है। ग्रामीणों के मुताबिक गांव खोरडा का निकास राजस्थान के सीकर जिले के मंडावा तहसील के चाहरावास गांव से है। जो झज्जर जिले का आखिरी गांव है। खडगा सिंह खोरडा ने बसाया और रूड़ा सिंह ने रूडियावास और घासी ने घसोला बसाया। खोरडा गांव से आगे चरखी दादरी की सीमा शुरू हो जाती है।
गांव खोरड़ा में विभिन्न प्रतिभावान व्यक्तियों ने जन्म लिया जो कि आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। अभी तक के इतिहास को देखें तो यहां के युवाओं में कुछ कर गुजरने का जोश है। देश की रक्षा में भी यहां के युवा पीछे नहीं हटते। चाहे इसके लिए अपने प्राणों की आहुति ही क्यों न देनी पड़े। गांव दूसरों के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत हैं। वर्तमान समय में गांव की आबादी लगभग दस हजार है और वोटों की संख्या लगभग चार हजार है। जिला मुख्यालय झज्जर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर बसे इस गांव में सभी लोग आपसी भाईचारे से रहते है। गांव में दो स्वतंत्रता सेनानी भी हुए, जिनमें टेकचंद और सुरजन सिंह का नाम शान से लिया जाता है। रिटायर्ड डीएसपी धर्मपाल, रिटायर्ड डीएसपी रामकिशन, रिटायर्ड डीएसपी सुमेर, ज्वाइंट कमिश्नर रिटायर्ड बाबूलाल इंदौरा, बिजली विभाग एओ रामकुमार इंदौरा, लेफ्टिनेंट सुरेश, लेफ्टिनेंट प्रदीप, लेफ्टिनेंट रहमत अली की वजह से गांव का नाम शान से लिया जाता है। गांव के निवर्तमान सरपंच भूपेंद्र सिंह हैं। गांव के लोगों की मान्यता है कि दुर्गा पुरी महाराज का शंखनाद करते ही प्राकृतिक आपदा ओलावृष्टि आदि रुक जाती है। गांव में सेठ उदमी राम हुए। जिन्होंने धर्मशाला, स्कूल, बनवाए। गांव में रतन पुत्र सुभाष चंद ने लगभग डेढ़ सौ से 200 बड़ और पीपल के पेड़ लगाए। गांव युवा साहिल पुत्र ओमप्रकाश का प्रो कबड्डी में हाल ही में चयन हुआ है जो कि यूपी योद्धा आर्मी में खेलेंगे। फिलहाल वे आर्मी में सेवारत हैं।
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